8 दिसंबर 2024 दिन रविवार को बरामदपुर गांव (सुल्तानपुर) में डॉ. अम्बेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस समारोह के उपलक्ष्य में संविधान के मूल्यों को बनाए और बचाए रखने के उद्देश्य स्वरूप कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में सबसे पहले डॉ. अम्बेडकर भगत सिंह यूथ ब्रिगेड के सहयोगी रहे सार्जन कुमार को श्रद्धांजलि अर्पित की गई और डॉ. अम्बेडकर को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के साथ ही कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
सबसे पहले गांव की ही दो बच्चियों ने ‘आम आदमी की जेब हो गई है सफा- चट्’ गीत पर नृत्य प्रस्तुत किया।
फिर डॉ. प्रेमशंकर जी ने अंबेडकर- भगत सिंह यूथ ब्रिगेड जो कि इस प्रोग्राम का आयोजक था, को बधाई देते हुए आज के समय में इस तरह के संगठनों की जरूरत से बात की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि आज़ादी के आंदोलन के दौर में जो लोग इस बात को महसूस करते थे कि इस देश में सच्ची राजनीतिक स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ सत्ता का परिवर्तन नहीं होना चाहिए बल्कि हमारे समाज के भीतर के जो वास्तविक सवाल हैं, जातिगत असमानता, गरीबी, वर्णाश्रम के चक्के तले पिस्ते हमारे गरीब मजदूर- किसान और स्त्रियां, उनकी भी सच्ची आजादी की पटकथा इसी आजादी के आंदोलन के साथ की जानी चाहिए। इसको न सिर्फ एक सपने की तरह बल्कि अपने आंदोलन, अपने विचार, अपने चिंतन और अपनी कार्यवाही के जरिए जो लोग जमीनी स्तर पर उतारना चाहते थे उनमें भगत सिंह और डॉ. अंबेडकर का नाम सबसे आगे है। इसलिए भगत सिंह और डॉ.अंबेडकर मंच की जरूरत है और ऐसे मंच गांव-गांव घर-घर बनने चाहिए और बड़े पैमाने पर इसमें युवाओं की भागीदारी होनी चाहिए। डॉ. अम्बेडकर को आज देश की सारी राजनीतिक पार्टियां अपने हिसाब से भुनाने में लगी हुई हैं। 1936 में डॉ. अंबेडकर ने ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ की स्थापना की थी। जिसकी शुरुआती प्रस्तावनाओं में दो महत्वपूर्ण प्रश्नों को डॉक्टर अंबेडकर ने एड्रेस किया था कि इस पार्टी का जो घोषित लक्ष्य होगा उसमें पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद दोनों का एक साथ खात्मा हो सके तभी भारत में सच्ची राजनीतिक और सामाजिक स्वतंत्रता का अवसर फूटेगा। डॉ.अंबेडकर किसी भी आधुनिक समाज में श्रम के विभाजन को तो स्वीकार करते हैं लेकिन श्रमिकों के विभाजन के कतई विरोधी रहे क्योंकि ये भारत में दलित और निचले तबके से आने वाले लोगों की जातियों का उत्पीड़न और उनके श्रम के उत्पीड़न का भी मामला है। जैसे वर्ग के उन्मूलन का प्रश्न मार्क्स के लिए जरूरी था, भारतीय संदर्भ में भारतीय राजनीति के लिए जाति के उन्मूलन का संदर्भ डॉ. अंबेडकर के लिए सबसे प्रासंगिक बिंदु था। अपनी बात को समाप्त करते हुए प्रेमशंकर जी ने 6 दिसंबर की तारीख को वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से जोड़ते हुए ये बताया कि वर्तमान की भाजपा सरकार ने किस प्रकार इस तारीख को बाबरी विध्वंस के उत्सव के रूप में मानना शुरू कर दिया है जो की भारत की अखंडता को तार- तार करता है, इन सब से हमें सचेत रहने की जरूरत है।
आगे कवि रूपम जी अपनी बातें हमसे साझा करते हुए कहती हैं कि अंबेडकर का नाम लेते ही एक ऐसे मनुष्य की छवि हमारी आंखों में उभरती है जो अनवरत सताए जा रहे मनुष्यों के लिए लड़ रहा है। दरअसल जब कोई हाशिये का मनुष्य, सहा हुआ झेला हुआ मनुष्य, बोलता है, कुछ प्रतिवाद करता है तो वह बात जाकर उन सारे मनुष्यो से जुड़ती है जो सताए हुए होते हैं, जो गैर बराबरी का जीवन जी रहे होते हैं और जिन्हें बोलने नहीं दिया गया होता है। मनुष्यगत इच्छाओं के साथ न जी पाने का दुख दलित और स्त्री दोनों का साझा दुख है और इस बिरादरी की पीड़ाओं को अंबेडकर ने एक आंख से ही देखा क्योंकि उन्हें पता था की ये दोनों उन्हीं सामंती व्यवस्थाओं के सताए हुए लोग हैं। यही वह जगह है जहां अंबेडकर दलित- मुक्ति के प्रश्न की तरह स्त्री- मुक्ति के प्रश्न से भी जुड़ते हैं। इसी प्रकार रूपम जी ने हिंदू कोड बिल का ज़िक्र करते हुए यह बताने की कोशिश भी की किस प्रकार डॉ. अंबेडकर स्त्रियों के अधिकारों के लिए अंतिम समय तक सचेत रहे और अपने समय से कई वर्ष आगे की चीजों को देख पा रहे थे। रूपम जी शिक्षा के भीतर उसकी सामंती होती जा रही चेतना और मूल्य का भी ज़िक्र करती हैं जो कि समाज को अतार्किक और संवेदनहीन बनाता जा रहा है साथ ही वो कहती हैं कि ये शिक्षा- व्यवस्था सामंती शिक्षा- व्यवस्था है जो की नए सामंत तैयार कर रहा है।
इसी क्रम में आगे शिवानी जी डॉ. अम्बेडकर, फातिमा शेख, सावित्रीबाई फूले इन सबको याद करते हुए कहती हैं कि संविधान के मूल्यों को बचाए और बनाए रखने के लिए हमें हमारे इन पुरखों के विचारों को जिंदा रखने की और सामूहिक रूप से याद किए जाने की जरूरत है। विचारों की इसी ताकत को साथ लिए हुए हमें खुद को मनुवादी, स्त्री विरोधी, जातिवादी ताकतों से लड़ने के लिए तैयार करना होगा। शिवानी जी ने विश्वविद्यालयों और अन्य सरकारी नौकरियों के पदों पर दलितों, आदिवासियों और महिलाओं के प्रतिनिधित्व को लेकर बात की और कहा कि तुलनात्मक रूप से आज भी इन तबकों की संख्या बहुत कम है। वर्तमान सरकार द्वारा देश की सरकारी संपत्तियों को बेचे जाने और नई शिक्षा नीति के तहत गरीबों मजदूरों किसानों, स्त्रियों और हाशिये के समाज को शिक्षा से बेदखल कर दिए जाने की स्थितियां, विश्वविद्यालयों की फीस में 400% की वृद्धि हमें फिर से उसी गुलामी के दौर में पहुंचा देने की साजिश है जहां से हमारे पुरखे अम्बेडकर, फूले, फातिमा हमें निकालकर ले आए थे और हमें सम्मानजनक जीवन, समानता और न्याय के मूल्यों पर आगे बढ़ा रहे थे।
सीमा जी ने रूढ़िवादी सामाजिक संरचना और उसकी व्यवस्था के खिलाफ एक मुकम्मल लड़ाई लड़ने के लिए शिक्षा को एक मुख्य हथियार के रूप में देखने की बात कही।
मनीष जी कहते हैं कि भाजपा आरएसएस की सरकार द्वारा सांप्रदायिक उन्मादों में धकेलने, धार्मिक भावनाओं को भड़काने, झूठे फर्जी मिथकों और नायकों को गढने जैसी तमाम कोशिशें इस दौर में की जा रही है। डॉ.अंबेडकर देश की सभी संपत्तियों का सरकारीकरण और उन पर गरीबों मजदूरों और किसानों के बराबरी के अधिकार की बात करते थे। उच्च शिक्षा पर मंडरा रहे खतरे और लगातार शिक्षा के बजट में गिरावट साथ ही शिक्षा से जुड़ी सभी सामग्रियों पर बढ़ते जीएसटी को मनीष जी भविष्य में एक भयावह स्थिति के रूप में देखते हैं जो निम्न मध्यवर्गीय बच्चों की शिक्षा पर मंडरा रहे खतरे की ओर इशारा करता है। आगे मनीष जी डॉ. अंबेडकर के सपनों को जीने और चरितार्थ करने के लिए खुद से उसकी जिम्मेदारी लेने और एक बड़ी जन गोलबंदी के माध्यम से अपने हक और अधिकार के लिए सचेत रहने, संघर्ष करने और उसे हासिल करने की बात कहते हैं।
हमारे मुख्य वक्ता डॉ.जनार्दन जी कहते हैं कि विद्यालय और औषधालय दोनों ही सरकार की जिम्मेदारी है जनहित में इसके उपयोग के लिए किसी को भी कुछ भी अदा करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए ये पूर्णतः निःशुल्क होना चाहिए। साथ ही दवाई लड़ाई पढ़ाई और कमाई इन तीनों का अधिकार हमारा संविधान हमें देता है जिसे बचाना और बने रहना किसी भी आधुनिक समाज की प्रगति के लिए बहुत जरूरी है। आगे स्त्रियों के उत्थान के विषय में डॉ.जनार्दन कहते हैं की संविधान लागू होने के बाद ही महिलाओं को उनके वर्तमान अधिकार प्राप्त हुए थे इसलिए इस अधिकार को बचाए रखने की लड़ाई जारी रखनी ही पड़ेगी, संघर्ष करना ही पड़ेगा और साथ ही अपने मत का भी उपयोग उचित समझदारी के साथ करना होगा। कोई भी समाज जब सांस्कृतिक रूप से जागृत, सचेत हो जाता है और उसमें मेलजोल की संस्कृति का निर्माण हो जाता है तो राजनीतिक परिवर्तन करने में दिक्कत नहीं होती है। ओबीसी, एससी, एसटी की गहरी खाई को पाटे बिना और सांस्कृतिक मेलजोल के बिना सत्ता परिवर्तन संभव नहीं है और न ही कोई विशेष व्यवस्थागत बदलाव ही संभव है। इसलिए ऐसे आयोजनों के माध्यम से संवैधानिक मूल्यों, सामाजिक- राजनीतिक सचेतनता और आपसी सहयोग को बचाए रखने की जरूरत है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हमारे गांव के ही रामबलि मास्टर साहब अपने वक्तव्य और अम्बेडकर पर एक गीत के माध्यम से कार्यक्रम के समापन की घोषणा करते हैं। कार्यक्रम के बीच-बीच में गांव के भी कुछ साथियों ने हमसे अपनी बातें साझा की।
कार्यक्रम का संचालन विवेक और इन्द्रमणि जी ने किया।
कार्यक्रम में गांव के सैकड़ों लोग, बाहर से आए अतिथि, ग्राम प्रधान उदयभान, पशु चिकित्साधिकारी डॉ राजकुमार, राघवेन्द्र यादव, भरतराज यादव मो.सद्दाम, विनीत आदि शामिल रहे।
आयोजक- डॉ. अम्बेडकर भगतसिंह यूथ ब्रिगेड
स्थान- बरामदपुर गांव(सुल्तानपुर)