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वे सड़कों पर थीं आशाओं के चिराग लिए

आज दिन में 11 बजे से ही शहर के आसपास और दूरदराज के ग्रामीण इलाकों फतेहपुर और कौशाम्बी जिले से आशा वर्कर बस-टेंपो से समूह में सिविल लाइन्स पहुँच रही थीं. तमाम धमकियों और धारा 144 के बावजूद उन्होंने तय कर लिया था कि हम अपनी आवाज सुनाने इलाहाबाद की सड़कों पर उतरेंगे.

नहीं डरेंगे हुड़की से, खींच लेंगे कुर्सी से
आज करो अर्जेंट करो, हम को परमानेंट करो
योगी तेरे राज में, कटोरा लिए हाथ में.
2000 में दम नहीं, 21000 से कम नहीं 

ऐसे नारों के साथ आज आशा वर्कर्स यूनियन के राज्यव्यापी प्रदर्शन के आह्वान पर जिले की सैकड़ों आशा वर्कर्स का हुजूम इलाहाबाद की सड़कों पर उतर पड़ा. प्रशासन ने धारा 144 लगाकर, सिर्फ 25 लोगों के धरने की परमिशन देकर और ब्लॉक में जगह-जगह प्रशासन द्वारा नौकरी से निकाले जाने की धमकी देकर रोकना चाहा लेकिन आशा वर्कर पीडी टंडन पार्क सिविल लाइंस की सड़कों पर एक किलोमीटर तक नारे गुंजाती, जुलूस की शक्ल में पत्थर गिरजाघर के धरना स्थल पर पहुंच गईं और वहां दो घंटे तक सभा चली. ए. सी.एम. ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के नाम उनका जो मांग पत्र था, उसे वहीं आ कर लिया. इसके पहले भी इसी 13 मार्च को आशा वर्कर्स ने भारी संख्या में जिलाधिकारी कार्यालय तक जुलूस निकालकर अपना मांग पत्र सौंपा था.

आशा वर्कर्स यूनियन की जिला सचिव सरोज कुशवाहा एक वाक्य में ही आशाओं की पीड़ा बयान करते हुए कहती हैं कि ” हम दूसरे के बच्चों को कुपोषण से बचाते हैं और हमारे ही बच्चे कुपोषित हो रहे हैं “. वे कहती हैं कि ना तो हमारा काम निश्चित है और नहीं समय. हम 24 घंटे, सातों दिन ड्यूटी पर हैं लेकिन मानदेय ₹2000 है. भला इसमें कैसे कोई काम कर सकता है. यह राशि मानदेय नहीं अपमान देय है.

बमरौली से आई आशा वर्कर खतीजा जी बताती हैं कि वह 2007 से काम कर रही हैं. कोरोना जैसी महामारी में हम लोग घर-घर दवा बांटते रहे. पहले 4-5 काम हुआ करते थे. हमें मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में कमी लानी थी, यही उद्देश्य था. अब बीमारियों की लिस्ट लंबी होती जा रही है. बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाना तो हम फर्ज मानकर करते हैं लेकिन आप तो किसके घर में शौचालय है, किसके पास स्कूटर है, किसके घर में कितने पशु हैं, कौन-कौन गरीब है और जाने क्या-क्या सूचना मांगते जा रहे हैं और ऊपर से उसे मोबाइल में भरकर भेजो. सामान्य पढ़ी-लिखी आशा इसे कैसे करेगी. इसके लिए वह अपने पति या बच्चों या पड़ोसी की सहायता पर निर्भर है.

बहरिया ब्लॉक से आई स्वाति द्विवेदी बताती हैं कि हम लोगों की नियुक्ति चार मद पर काम करने के लिए हुई थी, अब यह लिस्ट 55 तक पहुंच गई है. जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने को कहा जाता है और तहसील में बिना पैसा दिए प्रमाण पत्र बनता नहीं तो लोग हम पर नाराज होते हैं. आयुष्मान कार्ड के लिए पहले प्रति कार्ड 5 रुपए और अब ₹10 की प्रोत्साहन राशि का भुगतान होना था, वह भी नहीं मिल पाया. सीएचसी में आशा रात- बिरात डिलीवरी करवाने जाती हैं।  गांव की महिला को लेकर तो वहां बैठने तक की व्यवस्था नहीं है. मेरे यह पूछने पर कि कभी देर रात दूर जाना पड़ता है तो क्या डर नहीं लगता. कई आशाएं एकसाथ बोल पड़ीं लगता है पर क्या करें. कभी पति को साथ लेते हैं, कभी गांव के लोग रहते हैं.

आशा वर्कर्स का ये आंदोलन लगातार अपना दायरा बढ़ाता जा रहा है। ये सभी जाति- धर्म- संप्रदाय से आने वाली मेहनती औरतें हैं. जिनमें नई उम्र से लेकर 50- 55 साल तक की महिलाएं हैं. आज के जुलूस- सभा में उनकी ऊर्जा इतनी थी कि प्रशासन द्वारा धारा 144 का बहाना बनाकर माइक की परमिशन ना देने के बावजूद जब वो सैकड़ों कंठों से समवेत स्वर से बोल रही थीं तो वह आवाज सत्ताधारियों के बहरे कानों तक जाने के लिए काफी थी.

सभा में बोलते हुए कोरावं की अध्यक्ष सरिता सिंह ने कहा कि सारे अधिकारी जब आते हैं तो कहते हैं कि आशा स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ है और आज उसी रीढ़ पर हमला कर रहे हैं. तब आम लोगों- गरीब लोगों के स्वास्थ्य का क्या हाल होगा.

ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (एआईसीसीटीयू) से संबद्ध आशा वर्कर्स यूनियन की जिला अध्यक्ष आशा देवी ने बताया कि हम लगातार अपने संगठन का विस्तार कर रहे हैं. आज की तारीख में इलाहाबाद की 8 तहसीलों में से 7 तहसील के 14 ब्लॉकों में हमारा सांगठनिक ढांचा है. अपने संगठन की ताकत के बल पर सत्ता से लड़ रहे हैं.

मंडल अध्यक्ष रेखा मौर्य ने संचालन करते हुए कहा कि हमने कौशांबी से लेकर फतेहपुर तक अपने संगठन का विस्तार किया है. पिछले आंदोलनों की कड़ी के बाद विधानसभा में मुख्यमंत्री ने आशा वर्कर्स के लिए 6700 प्लस और संगिनी के लिए 11000 प्लस की बात कही है लेकिन अभी तक यह जुमला ही है. इसका जीओ तक जारी नहीं किया गया है. हमारी मांग इसे ₹21000 करने की है. साथ ही विभिन्न कामों के भुगतान में जो वाउचर प्रणाली है वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है. हमारा जिस रजिस्टर में काम दर्ज होता है सीधे उसे देखकर भुगतान दिया जाए. हमारे सम्मान, सुरक्षा की गारंटी हो और जीवन जीने लायक मानदेय जो हमारी मांग है उसे पूरा किया जाए. हमें स्थाई कर्मचारी की मान्यता दी जाए.

इस धरने को एक्टू के प्रदेश सचिव अनिल वर्मा, एक्टू के जिला संयोजक देवानंद के अलावा विभिन्न ब्लाकों और जिले की आशा वर्कर्स यूनियन के पदाधिकारियों ने संबोधित किया.इस धरने को छात्र प्रतिनिधियों तथा नागरिकों ने भी अपना खुलकर समर्थन दिया दिया.

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