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सरकार के जन-विरोधी रवैये का एक और उदाहरण है राजधानी के दाम पर सिर्फ वातानुकूलित ट्रेन को आरंभ करना

सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) ने राजधानी के दाम पर सिर्फ वातानुकूलित ट्रेन को आरंभ करने को सरकार के जन-विरोधी रवैये का एक और उदाहरण बताया है.
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ संदीप पाण्डेय, प्रवक्ता सुरभि अग्रवाल और बॉबी रमाकांत द्वारा 11 मई को जारी बयान में कहा गया है कि सरकार ने घोषणा की है कि 12 मई से अनेक स्थानों के लिए रेलवे ट्रेन पुन: आरंभ की जाएँगी. परन्तु इन ट्रेन में सिर्फ वातानुकूलित कोच-डब्बे होंगे जिनका किराया राजधानी ट्रेन के बराबर होगा. यह निर्णय अत्यंत भेदभावपूर्ण है और समाज के एक बड़े हिस्से को नज़रंदाज़ करता है जो ट्रेन से यात्रा करने के लिए इतना भाड़ा नहीं दे सकता.
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के नेताओं ने कहा कि वातानुकूलित ट्रेन में राजधानी जैसा भाड़ा दे कर यात्रा करने वाले तो समाज के संपन्न वर्ग के ही लोग हो सकते हैं. लोकतान्त्रिक व्यवस्था में, सिर्फ संपन्न वर्ग के लिए ट्रेन सेवा प्रदान करने का क्या मतलब है ? क्या अमीरों को कोरोना वायरस रोग होने का खतरा कम है (जब कि, देश में कोरोना वायरस रोग लाने का ‘श्रेय’ तो विदेशी हवाई यात्रा करने वाले इन अमीर तबके को ही जायेगा). क्या अमीर-संपन्न लोगों की यात्रा करने की ज़रूरत आम जनता से अधिक महत्वपूर्ण है?
तालाबंदी ने दर्शाया है कि मेहनतकश श्रमिक वर्ग, जिनमें अधिकाँश दलित-बहुजन और आदिवासी लोग शामिल हैं, की भूमिका अति-महत्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करने में अहम् रही है. किसान, मजदूर, ट्रक चालक, सफाईकर्मी, भोजन बनाने वाले कारीगर, परचून और अन्य आवश्यक दुकान आदि में कार्यरत लोग, घर-घर आवश्यक सामान पहुचाने वाले लोग, आदि ऐसे लोग हैं जो घर में बैठ कर काम नहीं कर सकते. इन लोगों के आधार पर ही तो समाज में अन्य संपन्न लोग अपना जीवन सुचारू रूप से जी पाते हैं. तो फिर किस आधार पर श्रमिक वर्ग को अनदेखा कर, ट्रेन यात्रा सिर्फ अमीर-संपन्न वर्ग की सुविधानुसार आरम्भ की जा रही है?
पार्टी ने कहा कि कोरोना वायरस रोग महामारी के दौरान ही सरकार ने अनेक ऐसे कदम उठाये हैं जिनसे गैर-बराबरी और भेदभाव बढ़ता है, और आम जनता अनदेखा होती है. तालाबंदी के दौरान प्रवासी मजदूर वर्ग ने जितना अमानवीय कष्ट झेला है वह पूर्णत: अनावश्यक था. एक ओर तो हवाई जहाज भेज कर विदेश में फंसे लोगों को सरकार घर वापस लाती है और दूसरी ओर, इतनी भारी संख्या में दैनिक मजदूर और श्रमिक वर्ग के लोग, अपने घर जाने के लिए, किस कदर कष्ट और यातना से गुजरने को मजबूर होते हैं. कोरोना वायरस रोग का टेस्ट भी सबको मुहैया नहीं है और निजी अस्पताल में इसकी कीमत सरकार ने अधिकतम रुपया 4500 तय कर दी है, जबकि यह टेस्ट सरकार के ही अनुसार, अनेक गुणा कम का है. अर्थ-व्यवस्था को बढ़ावा देने के नाम पर, सरकार श्रमिकों के अधिकार को ही नज़रंदाज़ करने की बात कर रही है, जिसके कारण, उनका उद्योगपतियों द्वारा शोषण भी बढ़ेगा.
सरकार ने पिछले महीने ही मार्गनिर्देशिका निकाली थी जिसके अनुसार, बंद स्थानों पर वातानुकूलित होने से परहेज़ करने को कहा गया था (जैसे कि बड़े कार्यालय, मॉल, अस्पताल आदि) क्योंकि संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ता है. यह तो वैज्ञानिक सत्य है कि खुली हवा और वायु संचालन से एवं सूरज की रौशनी से अनेक संक्रमण होने का खतरा कम होता है. दुनिया की सबसे घातक संक्रामक रोग तपेदिक या टीबी के लिए भी यह एक सलाह रहती है. चीन के घुन्जू में एक बंद रेस्टोरेंट में (जहाँ वायु संचालन नहीं था) 90 लोग भोजन कर रहे थे परन्तु वहां पर एक संक्रमित व्यक्ति भी था जिसके कारणवश 9 को कोरोना वायरस संक्रमण हो गया. इसी तथ्य को मद्देनज़र रखते हुए सरकार ने मार्गनिर्देशिका जारी की थी.
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) की मांग है कि जो ट्रेन 12 मई से आरंभ हो रही हैं, सरकार उन सब ट्रेन में सिर्फ, गैर-वातानुकूलित ट्रेन का ही किराया लोगों से ले. सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) की यह भी मांग है कि सरकार मानव समानता, आत्म-सम्मान और मर्यादा, और सबकी बराबर की भागीदारी के साथ ही कोरोना वायरस रोग महामारी को रोकने का प्रयास करे. हमें यह याद रखना चाहिए कि हम भले ही इंसानों के बीच भेदभाव करें पर कोरोना वायरस भेदभाव नहीं करता. जब तक हर इंसान सुरक्षित नहीं होगा, कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा.

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