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अपराजिता चली गईं, लेकिन अलबेलियाँ रहेंगी!

नवाचारी कलाकार और हिंदी की लोकप्रिय अध्यापिका अपराजिता शर्मा के आकस्मिक निधन से हिंदी के युवा संसार में शोक की लहर है। अपराजिता दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में हिंदी पढ़ाती थीं। उनके सभी छात्र याद करते हैं कि वह न केवल एक समर्पित अध्यापिका थी बल्कि अपने छात्रों के साथ उनका अपनेपन से भरा दोस्ताना व्यवहार और रचनात्मक मार्गदर्शन ऐसा होता था कि वे टीचर से ज़्यादा मेंटर नज़र आती थीं।

हिन्दी इमोजी ‘हिमोजी’ की निर्माता अपराजिता एक अलबेली जीनियस थीं.

अपने रचे स्केच चरित्र अलबेली की तरह. हिमोजी हिन्दी की इमोजी इसलिए नहीं थी कि उसके साथ हिन्दी का कोई मुहावरा , किसी गीत का मुखड़ा या कविता की कोई लाइन जुडी होती थी.

असल में ये इमोजियाँ हिन्दी की सबसे आधुनिक, प्रगतिशील और इंकलाबी चेतना को प्रकट करती थीं, इसलिए हिन्दी की थीं. इनमें कबीर-मीरा से लेकर फैज़-मुक्तिबोध तक की ज्ञानात्मक सम्वेदना झलकती थी.
‘अलबेली’ से बड़ा कोई स्त्रीवादी चरित्र हिन्दी में नहीं है, लेकिन वह उतनी ही जमीनी भी है. हिन्दी परम्परा से उपजे फक्कड़पन, अल्हडपन और अलमस्ती का मूर्तिमान जीवंत रूप अलबेली में दिखाई देता है.

अपराजिता ने भारत में प्रचलित सभी तरह के त्योहारों के लिए चैट स्टिकर बनाए। होली, दिवाली, ईद, बकरीद, गुरु परब, क्रिसमस, स्वाधीनता दिवस, गणतंत्र दिवस, बाबा साहब जयंती, गांधी जयंती और भगत सिंह के शहादत दिवस जैसे सभी महत्वपूर्ण दिनों पर उनकी बनाई हुई आकृतियां लोग एक दूसरे को भेंट करते ।

ये आकृतियां लोगों को बहुत मजेदार और रचनात्मक लगती थी। लेकिन उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे सभी त्योहारों और परंपराओं की अंतर्निहित प्रगतिशील संवेदना को उजागर कर पाने में सफल होती थी।

उनकी रेखाकृतियां बिना कोई शोर मचाए जेंडर समानता का संदेश प्रदान करती थीं। उनकी सबसे प्रमुख चरित्र थी एक अलमस्त स्त्री का जिसका नाम था अलबेली। यह स्त्री न केवल अपने को हर जगह पुरुषों से आगे रखती है, हर जगह एक नेतृत्व कारी भूमिका ग्रहण करती है, बल्कि वह स्त्री चेतना के बारीक पहलुओं को भी उजागर करती है।

ऐसा करते हुए वह त्योहारों को पुनर्परिभाषित भी करती है। होली पर बनाए गए उनके एक इमोजी को याद किया जा सकता है, जिसमें रंगों की मस्ती है, लेकिन नायिका कहती है कि बुरा मानो हर जबरदस्ती का। होली की बहुत सारी इमोजियाँ उन्होंने बनाई हैं, जिनमें उल्लास है, मस्ती है, लेकिन वह अपने मित्रों को यह संदेश देना नही भूलतीं कि त्यौहारों का इस्तेमाल पुरुष प्रधान समाज में स्त्री की हीन स्थिति का बेजा फायदा उठाने के लिए और उसे अपमानित महसूस कराने के लिए नहीं होना चाहिए।

अलबेली और उसकी साथी प्यारी सी चिड़िया ललमुनिया अपनी तरह तरह की मजेदार मुद्राओं और क्रियाओं से मनुष्यों की एक ऐसी दुनिया की परिकल्पना करती हैं, जिसमें लोग पक्षियों की तरह उन्मुक्त होंगे, जिसमें सबके उड़ने के लिए भरपूर आकाश होगा और जिसमें प्यार के और खुशी के बादलों की कोई कमी नहीं होगी।
अपराजिता ने अपनी हिंदी इमोजी में न केवल उर्दू के मुहावरों और अल्फाज का इस्तेमाल किया बल्कि उन्होंने अनेक जगहों पर उर्दू लिपि को भी जगह दी। हिंदी उर्दू लिपि का यह मेलजोल हिंदुस्तानी गंगा जमुनी तहजीब के हजारों साल पुरानी विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम करती है।

अपराजिता की ईमोजियों में छात्रों किसानों मजदूरों और समाज के दीगर उत्पीड़ित वर्गों के साथ न्याय की पुकार भी सुनाई देती है। लेकिन यह सब कुछ इस तरह होता है कि वह जीवन का सहज हिस्सा जान पड़े, अलग से पढ़ाया गया पाठ नहीं।

नई पीढ़ी की भाषा में रची बसी और उसे भविष्य के भारत की तस्वीर में शरीक करने वाली और हिंदी को नई रचनाशीलता के सशक्त माध्यम के रूप में अपनाने वाली अपराजिता का आकस्मिक बिछोह सबके लिए दुखदाई तो है, लेकिन याद रखना चाहिए उन शब्दों को जो अपराजिता ने कमला भसीन को श्रद्धांजलि देते हुए कहे थे- सलाम कमला भसीन, अलविदा नहीं।


सलाम अपराजिता, हम आपके सपनों के हिंदुस्तान के लिए काम करते रहेंगे।

जन संस्कृति मंच और समकालीन जनमत की तरफ़ से अपराजिता को भावभीनी श्रद्धांजलि!

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