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आरा : आर पार जंग है, इम्तिहान सख्त है

लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण है। सभी दलों ने अपनी अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। बंगाल में नवजागरण के पुरोधा ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मूर्ति ढहाकर उन्माद फैलाने की कोशिश की जा रही है तो उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में दलित बस्ती पर भाजपा समर्थक गुंडा वाहिनी के हमले की खबर है। वहीं कुशीनगर में ईवीएम मशीनें जहां स्ट्रांग रूम में रखी गई थी, वहां एक ट्रक ईवीएम लेकर आने की खबर पर सपा-बसपा गठबंधन व स्थानीय लोगों ने घेर लिए जाने और किसी भी गड़बड़ी के अंदेशे को लेकर सतर्कता बरतने की भी खबर मिली है।

सबके अपने अपने दावों के बीच अंतिम चरण में बिहार की भी 8 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो रहे हैं जिसमें लालू यादव की बेटी मीसा भारती पाटलिपुत्र से शत्रुघ्न सिन्हा बनाम रविशंकर प्रसाद पटना साहिब की सीटों के साथ लोकसभा की वामपंथ के लिहाज से बहुचर्चित सीट आरा भी है। बिहार की इस लोकसभा सीट से जहां भाजपा के निवर्तमान सांसद आरके सिंह दोबारा चुनाव मैदान में है वहीं उनके खिलाफ भाकपा माले से आरा के ही चर्चित युवा नेता राजू यादव हैं जिन्हें राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन का समर्थन प्राप्त है।

सामाजिक आर्थिक विषमताओं और विकास के मानकों पर पिछड़ने के बावजूद आरा राजनीतिक समझ और आंदोलनों के लिहाज से ऐतिहासिक रूप से आगे बढ़ा हुआ इलाका है। बाबू कुँवर सिंह के नेतृत्व में 1857 में भारत के आजादी के आंदोलन में अगुवाई करने वाली भूमिका से लेकर स्वामी सहजानंद के किसान आंदोलन से होता हुआ दलित गरीबों के मान-सम्मान न्याय और हक की लड़ाई को राजनीतिक दावेदारी के स्तर तक उठा देने तक की इसकी निरंतरता और समय के अलग अलग काल खंडों में गरीबों के आंदोलनों का बदलता स्वरूप सहज ही आपको खींच लाता है।

आजादी मिलने और उसके दो दशक बाद उपजे मोहभंग के बाद से ही सोन नदी का यह इलाका नए रूप में आंदोलन का केंद्र बना। सामाजिक आर्थिक गैरबराबरी के खिलाफ चले आंदोलन और समाज की गति को पीछे धकेलने वाली ताकतों के तमाम प्रतिगामी संगठनों, नृशंसतम नरसंहारों के बावजूद जो चीज नहीं बदली वह है गरीबों की एक आधुनिक, बराबरी और सांप्रदायिक सौहार्द पर आधारित समाज को रचने की प्रतिबद्धता। यह अलग बात है कि चुनावों में कई रंग आते जाते रहे हैं और आरा के लोगों ने 1989 से लेकर आज तक पिछले 9 लोकसभा चुनाव में कभी भी एक व्यक्ति को दोबारा सांसद नहीं चुना।

7 विधानसभाओं आरा मुफस्सिल, तरारी ,अगियांव, शाहपुर बरड़हरा, जगदीशपुर और संदेश को मिलाकर आरा लोकसभा की सीट पर 20 लाख से ऊपर मतदाता हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में 5 पर राजद एक पर भाकपा माले और एक पर जदयू प्रत्याशी विजयी हुआ था । 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राजद को हराकर जीत हासिल की थी । सभी प्रमुख दल भाजपा राजद जदयू भाकपा माले अलग-अलग चुनाव लड़े थे लेकिन इस बार लड़ाई आमने-सामने की है। भाजपा-जद यू बनाम भाकपा माले । जिसे राजद के नेतृत्व वाले महा गठबंधन का समर्थन प्राप्त है। तीसरा कोई प्रभावी उम्मीदवार नहीं दिखता हालांकि बसपा से लेकर तमाम निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में है। आरा राजनीतिक रूप से खुलकर बहस करने वाला शहर है और इस समय जिधर जाइए चुनाव को लेकर जोरदार बहस आपको सुनने को मिल जाएगी।

शहर का नवादा चौक

17 मई रात 9:00 बजे भी गहमागहमी है। काशी के अस्सी पर चर्चित पप्पू की चाय की दुकान की तरह यहां मंटू की चाय दुकान है जो शहर के राजनीतिक मिजाज का पता देती है। एक दूसरे के समर्थक यहां कई बार भोजपुरी भाषा में कटाक्ष और कई बार उसके भीतर गालियों के इस्तेमाल की सामर्थ्य का पता देते हैं। मैं चाय, जिसमें कॉफी मिली होती है, एक खास तरह का तीखापन लिए हुए , उसका एक गिलास लिए बैठ जाता हूं । अंदर एक मेज के इर्द-गिर्द चार पांच लोग शहर के विकास को लेकर बहस कर रहे होते हैं । यह समूह सोन नदी पर बन रहे सिक्स लेन पुल और सड़क और स्टेशन पर बने सीढ़ी ब्रिज को पिछले 5 सालों की देन मानता है। शहर की बिजली व्यवस्था अपेक्षाकृत पहले से बेहतर हुई है, इसे सकारात्मक मानते हुए उसे लगता है कि भाजपा इस बार भी आएगी। तभी दूसरी तरफ बैठे दो लोग इसका प्रतिवाद करते हैं। वह बताते हैं कि कैसे पहले की योजना थी और वादा न सिर्फ इस सड़क और पुल को 2018 तक ही पूरा कर देने का था बल्कि अभी रेलवे स्टेशन का काम अधूरा ही पड़ा है ।

अस्पताल को बेहतर बनाने का वादा था उसमें कुछ नहीं हुआ । सहजानंद सरस्वती के नाम पर जो समिति है , पुस्तकालय है , उसके लिए सांसद ने कुछ नहीं किया और बड़हरा में जिसे कोई नहीं जानता , वहां राजपूतों के गांव में 15 लाख दे आए। यहां से बात बदलकर समीकरणों पर आ जाती है । सबका अपना-अपना समीकरण, गुणा गणित चलने लगता है। पहले से ज्यादा वोट मिलने की बात होती है ।भाजपा को 2 लाख ज्यादा मिलने की। तभी चाय दुकान के अधेड़ उम्र के मालिक सामने खड़े लोगों में से 2-3 से जोर जोर से पूछने लगते हैं ”  का हो तोहरा लोग क कतना वोट बा, आ हमनी के केतना बा….तुम जोड़ ल के जीती। ” उनका दावा था कि राजू यादव को 7 लाख वोट से कम नहीं आएगा।

दोपहर 3:00 बजे स्टेशन रोड

बब्लू शू हाउस। थोड़ी देर पहले ही कड़ी धूप में भाकपा माले का पैदल मार्च निकला है । माले के प्रत्याशी राजू यादव, शहर विधायक अनवर आलम, तरारी विधायक सुदामा प्रसाद, माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य , पूर्व विधायक और महागठबंधन के चुनाव समन्वय समिति के संयोजक विजेंद्र यादव के नेतृत्व में । दुकान पर जुलूस निकल जाने के बाद चुनाव को लेकर बात शुरू हो जाती है । मैंने लोगों से जानने की कोशिश की कि उन्हें क्या लग रहा है। सामने बैठे सज्जन मेरा परिचय पूछते हैं।यह बताने पर कि मैं इलाहाबाद से एक पत्रिका निकालता हूं और इंटरनेट पर एक पोर्टल से जुड़ा हूं।

वे थोड़ा इत्मीनान से हो जाते हैं। तभी बगल के सज्जन पूछते हैं कौन अखबार से हैं तो पहले वाले सज्जन उन्हें समझाते हैं , “कई तरह का मीडिया है , अख़बार वाला,दूसरा जी न्यूज़, ई न्यूज़ चैनल वाला , अ इ ह इंटरनेट वाला, लिखबो करेला अउर देखाईबु करेला। कई तरह का मीडिया बा, सोशल मीडिया बा।”

मेरे पूछने पर उनका सीधा जवाब है,राजू यादव जीतेंगे। मैं कारण पूछता हूं तो पलट कर सवाल करते हैं आप बताइए, आपको क्या लग रहा है । मैं शहर में हुए विकास और 2014 में भाजपा जदयू को मिले पिछले वोट का जोड़ और राजद तथा माले को मिले वोट का तर्क रखता हूं । वह कहते हैं कि देखिए, मैं पाल जाति से आता हूं और पिछले बार मैंने भाजपा को वोट दिया था । हमारे समुदाय ने भी भाजपा को विकास के नाम पर वोट किया लेकिन हमको मिला क्या ?

बातचीत में पता लगा कि वह जगदीशपुर विधानसभा क्षेत्र के करमा पंचायत के 10 साल से मुखिया रहे हैं और अभी पिछला चुनाव हारे हैं। सामान्य पैंट शर्ट बल्कि सामान्य से भी कम, पैंट में छेद है,पहने हुए थे । उनका कहना था विकास तो हुआ नहीं। सड़क नहीं बनी । अस्पताल में बिना पैरवी के भी दवा तक नहीं मिलती, थाने में रिपोर्ट नहीं लिखी जाती,ऊपर से सांसद जी के पास जाओ तो कहते हैं एकल पैरवी नहीं करूंगा । अरे आप देखिए तो, किसी गरीब पर जुलुम हुआ है, अर्जी लेकर गए तो आप कहेंगे एकल है। बाकी अपने लोगों को तो ठेका पट्टा दे रहे हैं। मिलने जाओ तो लाइन लगाना पड़ता है। बाहर वहां जुटे 6- 7 और लोग भी उन्हीं की बात का समर्थन करते हैं ।

मैंने किसान सम्मान राशि की बात की तो बोले किसको मिला है । हमारे इलाके में तो किसी को नहीं मिला । सब फर्जी है। मैंने दुकान मालिक से पूछा, वह नौजवान हैं, शहरी हैं, शायद कुछ अलग राय रखते हों लेकिन वह भी मुखिया जी से ही सहमत दिखे। देश और विदेश में देश की साख और पाकिस्तान पर हमले की बाबत सवाल करने पर मुखिया जी ने मुझसे मेरा नाम पूछ लिया, के के पांडे बताने पर थोड़ा मुस्कुराए और बोले जाने दीजिए ई सब।

ग्रामीण क्षेत्र में भाकपा माले की एक सभा में जाने का मौका मिला। संदेश विधानसभा के उदवंतनगर ब्लॉक के पंचायत सरथुआ में दिन के 11:00 बजे सभा थी। सरथुआ में आज से 20 साल पहले रणवीर सेना ने पहला जन संहार किया था। यहां मंच पर माले के महासचिव , लोकसभा प्रत्याशी राजू यादव ,राजद और माले विधायकों समेत दोनों पार्टियों के तमाम वरिष्ठ नेता गण मौजूद थे । सभा स्थल पर मेले जैसा माहौल है । तीखी धूप और अंधड़ के बावजूद भारी संख्या में लोग अपने नेताओं को सुनने आए हुए हैं। लाल हरे झंडों के साथ वीआईपी पार्टी का झंडा भी दिखता है। यह बड़ी सभा है और सामाजिक आधार के लिहाज से भी दोनों पार्टियों के प्रमुख समुदायों की भागीदारी दिखती है।

 

इस मंच से नवादा गांव में भाकपा माले की प्रचार गाड़ी पर हुए हमले में जख्मी और प्रत्यक्षदर्शी योगेंद्र पासवान भी सभा को संबोधित करते हैं । वहां हुई घटना का जिक्र करते हुए वो कहते हैं कि हमें पहले भी बोलने, वोट देने, खटिया पर बैठने और राह चलने तक के लिए लड़ना पड़ा है । आज फिर से मोदी राज में यही हो रहा है। हमारे चलने पर रोक और जुबान पर ताला डालने की कोशिश है यह हमला । हमें फिर से इसके खिलाफ लड़ कर जीतना है।

शाम 6:30 बजे वलीगंज

शहर के मुस्लिम आबादी की घनी बस्ती। रमजान का महीना है, अफ्तार है, सैकड़ों लोग जहूर आईटीआई के अहाते में इकट्ठा हैं। वहां पर पता लगता है कि पहली बार भाजपा के निवर्तमान सांसद वोट के लिए लोगों से मिलने आए थे। लोग बताते हैं कि इस बार यह एकदम नया है और वे लोग दलित बस्तियों में भी जा रहे हैं। रमजान के महीने और तेज बढ़ती गर्मी में वोट प्रतिशत कम होने के अंदेशे को जाहिर करने पर लोगों का जवाब होता है, हम अमन पसंद लोग हैं , हमें अमन चाहिए । हम जान देकर भी वोट करेंगे। हमें और कुछ नहीं चाहिए।

हां राजू यादव से एक ही मांग है कि हम लोगों का पोलिंग बूथ यहां से 3 किलोमीटर दूर है, जिससे औरतों को काफी मुश्किल होती है, उसे नजदीक करवा दें। यह औरतों पर जुल्म है । यहां सामुदायिक भवन से लेकर सरकारी स्कूल सब हैं लेकिन अर्जी देने के बावजूद अब तक यह नहीं हो सका है।

महागठबंधन द्वारा भाकपा माले के उम्मीदवार को समर्थन देने से जरूर भाजपा के लिए राह कठिन हो गई है। तरारी के विधायक सुदामा प्रसाद कहते हैं कि माले का यहां दलितों के बीच में काफी जबरदस्त जनाधार है जिसमें उसकी सभी जातियां उपजातियां आती है और इस आधार का मध्यवर्ती जातियों से पिछले कई दशकों से कोई टकराव भी नहीं रहा है । अतः ये मिलकर एक बड़ा सामाजिक दायरा निर्मित करता है, जिसके बल पर हम भाजपा को यहां पीछे छोड़ देंगे।

वहीं इस शासनकाल में स्कीम वर्करों के आंदोलन हों या छात्र नौजवानों के अथवा व्यवसायियों के, भाकपा माले और उसके प्रत्याशी राजू यादव ने आगे बढ़कर आंदोलनों की अगुवाई की है, जेल गए हैं, संघर्ष किया है, इसलिए हम जातीय समीकरणों को इनके भीतर से तोड़ सकेंगे। दूसरी तरफ भाजपा जदयू अपने समीकरणों और विकास और मोदी की लोकप्रियता के बल पर इस रण को जीत लेने का दावा कर रही है । दलित आधार के भीतर वह भाकपा माले द्वारा राजद से गठबंधन को भी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है और बसपा के मनोज यादव भी इसी को फैलाने की कोशिश कर रहे हैं । उनका यह प्रचार भाकपा माले के दलित वोटों में कितनी सेंधमारी कर सकेगा इसका तो अभी पता नहीं लेकिन एक दलित नौजवान कहते हैं कि दलितों से इतना ही प्यार था तो नवादा बेन में हमला क्यों किया ?

आज आरा शहर में सुशील मोदी और प्रत्याशी आर के सिंह के नेतृत्व में भाजपा का रोड शो हुआ तो दूसरी तरफ धरहरा से माले गठबंधन का प्रभावशाली मोटरसाइकिल जुलूस निकला। 3:00 बजे से भाकपा माले प्रत्याशी राजू यादव के पक्ष में गड़हनी ब्लॉक में काफी बड़ी सभा हुई जिसमें तेजस्वी यादव ने भाजपा और नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोलते हुए संविधान और आरक्षण को बचाने के लिए भाकपा माले उम्मीदवार को जिताने की अपील की.

आरा में निर्णायक लड़ाई विकास और हिंदुस्तान -पाकिस्तान पर नहीं होने जा रही है। यहां सचमुच लड़ाई लोकतंत्र, संविधान की रक्षा, बोलने की आजादी और सामाजिक सम्मान के सवाल पर केंद्रित होती दिख रही है । इसमें निश्चय ही समुदायों के भीतर तीखा ध्रुवीकरण होना स्वाभाविक है. कोई चाहे तो इसे जाति के चश्मे से भी देख सकता है लेकिन यहां लड़ाई का केंद्र लोकतंत्र ही बना हुआ है.

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