हमें प्रायःऐसे लोग मिलते हैं, जो चित्रों के बारे में दो सवाल तो जरूर पूछते हैं. पहला यह , कि चित्र बनाना उन्हें बहुत अच्छा तो लगता है , पर चित्र में क्या बनाये यह समझ में नहीं आता.
और दूसरा, कि किसी चित्र का मतलब या अर्थ क्या होता है ? या कि किसी चित्र को कैसे समझा जाये ?
दरअसल, चित्र बनाने के लिए हमें अपने आस पास की चीजों को, जो हर पल बदलती रहती है ; उसे देखना जरूरी होता है. और अगर हम सही ढंग से अपने आस पास घटित होते चीज़ों को देख पाते है, तो चित्र में क्या बनाये इसकी कभी कोई समस्या नहीं रह जाती. चित्र का अर्थ , चित्र के भीतर से ही निकलता है, जिसके लिए चित्र को थोड़ा ध्यान से देखने की जरूरत होती है.
आज इसी बात को समझने के लिए एक चित्र देखते हैं.
इस चित्र के बारे में अगर हम कुछ भी न जाने तब भी हमें इस चित्र में दो लोग, बाँस और पुआल से बने एक ‘ स्ट्रचेर ‘ पर एक बछड़े को , जो अभी अभी खेत में ही पैदा हुआ है ; लेकर घर लौटते दिखते हैं . बछड़े की माँ भी साथ साथ चल रही है और अपने बछड़े को प्यार से चाट रही है. चित्र में, यह दिन के ढलने का वक़्त है, क्योंकि रौशनी में एक लालिमा है जो केवल दिन के ऐसे वक़्त ही दिखाई देती है. यह रौशनी तेज नहीं है, इसलिए दीवार पर पेड़ की परछाइयाँ नहीं बन रही है. इस तरह से जैसे जैसे हम चित्र को देखते जाते हैं, चित्र हमारे सामने अपने आप खुलता जाता है , यानि इसे समझने के लिए किसी कहानी की जरूरत नहीं होती.
यह चित्र फ्रांस में जन्में चित्रकार ज्याँ फ्रांसोआ मिले (1814-1875) ने 1860 में बनाया था , जिसका शीर्षक उन्होंने, ‘ खेत में जन्मे बछड़े को किसान घर ला रहे हैं ‘ रखा था।
हमें आश्चर्य होता है कि क्या इतने साधारण विषय पर इतना महान चित्र बन सकता है ! चित्रकार ज्याँ फ्रांसोआ मिले ने अपने आस पास के साधारण से साधारण विषयों को बहुत ध्यान से देखा था-अनुभव किया था (इसी स्तम्भ में पूर्व प्रकाशित चित्र ‘अनाज बीनती तीन औरतें ‘ ( देखें, 10 अप्रैल 2018 ) .
जिन उत्कृष्ट कलागुणों की उपस्थिति के साथ यूरोप में सदियों तक धार्मिक चित्रों और राजा-रानी-सामंतों के चित्र बनाने की परंपरा चली आ रही थी, उसे चुनौती देते हुए ज्याँ फ्रांसोआ मिले जैसे जनपक्षधर चित्रकारों ने ऐसे आम लोगों के चित्र बनाये . और ऐसा करते हुए उन्होंने कलागुणों की कतई उपेक्षा नहीं की. आम लोगों के प्रति ज्याँ फ्रांसोआ मिले का प्रेम और आकर्षण पहले से ही था और वे उन प्रमुख चित्रकारों में से एक थे जिन पर मार्क्स और एंगेल के ‘ द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो ‘ (1848) को असर पड़ा था.
ज्याँ फ्रांसोआ मिले आरंभिक कम्युनिस्ट चित्रकारों में से एक थे जिन्होंने सर्वहाराओं के लिए अपने चित्र में स्थान बनाया था.
वास्तव में , हम अपने अनुभव से ही चीज़ों को देखते हैं , उसे अनुभव करते हैं. ज्याँ फ्रांसोआ मिले ने सर्वहारा की मुक्ति के जरूरत को ‘ महसूस ‘ किया था . एक चित्रकार के रूप में उन्होंने समाज में सर्वहारा वर्ग का उनका अधिकार दिलाने की दिशा में , एक जरूरी कदम के रूप में चित्रकला में स्थापित किया था.
चित्र में ऐसा कुछ भी नहीं होता जिसे हम एक कहानी की तरह ‘ समझ ‘ सकते हैं. चित्र समझने की नहीं, बल्कि ‘ अनुभव ‘ करने की कला हैं और हम सब उसे बिना किसी व्याख्या के अनुभव कर सकते हो, बशर्ते हम चित्र के बाहर की हमारी इस नायाब दुनिया को देखना सीखें , उसे अनुभव करना सीखें.
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