(बाबासाहब भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891-6 दिसम्बर 1956 ) को उनके जन्मदिन पर समकालीन जनमत टीम की ओर से श्रद्धांजलि)
डॉ. आर. राम
इस 14 अप्रैल को देश बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर की 128वीं जयंती मना रहा है।इस साल की अम्बेडकर जयंती बहुत ही खास और महत्वपूर्ण हो गई है।
लोकसभा के आम चुनाव के बीच इस बार बाबा साहब की याद देश और संविधान बचाने के संघर्ष की प्रेरणा की तरह है।आज बाबा साहब अम्बेडकर भारत की सभी राजनैतिक धाराओं के लिए स्वीकार्य हैं।
यहां तक कि बीजेपी जैसी मनुवाद समर्थक पार्टी भी बाबा साहब की पूजा कर रही है।इस चुनाव में सभी बाबा साहब की कसमें खाएंगे.आज अम्बेडकर की लोकप्रियता चुनावी कारणों से सबसे ज्यादा है।
दलित सामाजिक आधार से संवाद बनाने का पहला आधार बाबा साहब का चित्र है।ठीक ऐसे समय में ही बाबा साहब अम्बेडकर द्वारा बनाये गए और आकार दिए गए संविधान, संस्थाओं और लोकतांत्रिक प्रणाली को खत्म करने की कोशिश हो रही है।
उन महान व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने में कुछ गलत नहीं है, जिन्होंने जीवनपर्यंत देश की सेवा की हो। परंतु कृतज्ञता की भी कुछ सीमाएं हैं। जैसा कि आयरिश देशभक्त डेनियल ओ कॉमेल ने खूब कहा है, ”कोई पुरूष अपने सम्मान की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता, कोई महिला अपने सतीत्व की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकती और कोई राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता।”
यह सावधानी किसी अन्य देश के मुकाबले भारत के मामले में अधिक आवश्यक है, क्योंकि भारत में भक्ति या नायक-पूजा उसकी राजनीति में जो भूमिका अदा करती है, उस भूमिका के परिणाम के मामले में दुनिया का कोई देश भारत की बराबरी नहीं कर सकता। धर्म के क्षेत्र में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है, परंतु राजनीति में भक्ति या नायक पूजा पतन और अंतत: तानाशाही का सीधा रास्ता है।”
आज जब देश अपने लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे निर्णायक मौके पर आम चुनाव में भागीदारी कर रहा है तब देशवासियों को अपने संविधान के प्रखर शिल्पी की बातों को जेहन में रखना होगा।
डॉ अम्बेडकर ने अपने इसी भाषण में कहा था कि भारत के लिए लोकतंत्रात्मक प्रणालि कोई नई चीज नहीं है।बुद्ध के काल मे भारत मे लोकतांत्रिक गणतंत्र का अच्छा अनुभव था जहां चुनाव,बहुमत के निर्णय,चर्चा,व्हिप सबकी लोकतांत्रिक व्यवस्था थी,लेकिन भारत ने ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति के कारण उस लोकतंत्र को खो दिया था।अम्बेडकर ने सवाल किया कि क्या भारत दूसरी बार अपने लोकतंत्र को खोएगा?
आज हम इस दुःस्वप्न के कगार पर खड़े हैं जहां हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था दूसरी बार संकट में है।इस बार अम्बेडकर जयंती पर बाबा साहब को इस संकल्प के साथ याद करना चाहिए कि हम अपने लोकतंत्र और संविधान को बचाने और राजनैतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र को बहुआयामी और व्यापक बनाने के संघर्ष को जारी रखेंगे और अपनी आजादी और लोकतंत्र को अधिनायक के चरणों मे समर्पित होने नही देंगे।