- आसिफ़ा की याद में ‘कोरस’ नाट्
य समूह द्वारा ‘आज़ाद वतन-आज़ाद जुबाँ’ नाट्योत्सव की शुरुआत आज से - महिलाओं का सवाल सिर्फ़ महिलाओं का नहीं, वरन पुरुषों का भी है, पूरे समाज का: प्रो. डेजी नारायण
- अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ख़तरे के दौर में हम, अंग्रेजों के समय से ही चला जा रहा है ड्रेमेटिक परफ़ारमेंस ऐक्ट : परवेज़ अख़्तर
आज शाम छः बजे से पटना के कालिदास रंगालय में ‘कोरस’ नाट्यसमूह द्वारा आयोजित ‘आज़ाद वतन-आज़ाद जुबाँ’ नाट्योत्सव की शुरुआत हुई। इस नाट्योत्सव में बम्बई की टीम ‘आरम्भ मुम्बई प्रोडक्शन’ अपना नाटक ‘बंदिश’, बेगूसराय से ‘द फ़ैक्ट रंगमंडल’ अपना नाटक ‘गबरघिचोर’ और पटना की ‘कोरस’ टीम अपना नाटक ‘कुच्ची का कानून’ पेश करेगी। नाट्योसव के लिए कालिदास रंगालय की सजावट देखने लायक थी। कपड़े के लटकते हुए टुकड़ों पर कटे हुए काग़ज़ से बनी हुई रंग-बिरंगी आकृतियाँ बेहद ख़ूबसूरत माहौल रच रही थीं। दर्शकों की प्रतिक्रिया के लिए मौजूद सफ़ेद काग़ज़ और स्केचपेन समारोह के लोकतंत्र की ओर इशारा कर रहे थे। प्रगतिशील-जनवादी पुस्तकों की बिक्री के लिए स्टॉल भी रंगालय परिसर में लगा हुआ था। इस अवसर पर बृजराज सिंह सम्पादित कविताओं की पुस्तक ‘आसिफ़ाओं के नाम’ का विमोचन जसम महासचिव मनोज सिंह, प्रोफ़ेसर डेजी नारायण और परवेज़ अख़्तर के हाथों हुआ।
उद्घाटन सत्र में बोलते हुए पटना के प्रसिद्ध रंगकर्मी परवेज़ अख़्तर ने कहा कि मैं कोरस के अभियान से ख़ुद को जोड़ना चाहता हूँ। उन्होंने कहा कि स्त्री आज़ादी के सवाल पर कोरस की सक्रियता पूरे हिंदी पट्टी में एक अनोखी और ज़रूरी पहल है। तमिलनाडु की ए मँगई और कर्नाटक की बी राजश्री ऐसे ही काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि आज हमारी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है और यह अंग्रेजों के समय से ही चला जा रहा है, उनका ही बनाया ड्रेमेटिक परफ़ारमेंस ऐक्ट आज भी चल रहा है। हम अघोषित प्रतिबंध के दौर में रह रहे हैं। ऐसे दौर में इस नाट्योत्सव में महिला निर्देशकों का काम हमें प्रेरित करेगा। उन्होंने कहा कि हमें कथ्य के सवाल को ही नहीं, शिल्प के सवाल को भी गम्भीरता से लेना होगा। हमें नए तरह की नाट्यभाषा चाहिए ताकि हम दर्शकों से और बेहतर तरीक़े से सम्बोधित कर सकें।
स्वागत समिति की अध्यक्ष पटना विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफ़ेसर डेजी नारायण ने कोरस की तरफ़ से सबका स्वागत करते और धन्यवाद देते हुए कहा कि कोरस के साथियों ने इस आयोजन के लिए बहुत मेहनत की। प्रासंगिक सवालों को उठाने की पटना व बिहार की मज़बूत नाट्य संस्कृति को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि इसी कड़ी में कोरस ने महिला विषयों पर नाटक-गीत-कविता सहित कई विधाओं में काम किया। उन्होंने कहा कि महिलाओं का सवाल सिर्फ़ महिलाओं का नहीं, वरन पुरुषों का भी है, पूरे समाज का है। इस सत्र का संचालन वीमेंस कॉलेज की अध्यापिका ऋचा ने किया।
नाट्योत्सव का पहला नाटक था ‘कुच्ची का कानून’। निर्देशक समता राय के कुशल संयोजन में रंगमंच पर उतारी गयी वरिष्ठ कहानीकार शिवमूर्ति की यह कहानी स्त्री के संघर्ष की दास्ताँ है। एक ऐसी ग्रामीण स्त्री इस नाटक के केंद्र में है जो अपने पूरे समाज से लड़ पड़ती है पर आत्मसमर्पण नहीं करती। महिला की कोख तक से उसका अधिकार छीन लेने वाला पितृसत्तात्मक समाज सिर्फ़ महिलाओं का उपयोग करता है, उसके व्यक्तित्व को हर तरह से दबाने की कोशिश करता है। पर इसी समाज में महिला प्रतिरोध का कभी न सूखने वाला सोता भी बहता है। नाटक संस्कृति के भीतर महिला के इसी प्रतिरोधी स्वर को उभारता-विकसित करता है। पात्रों ने अपने जीवंत अभिनय से स्त्री प्रतिरोध के जटिल विचार को और ऊँचाई पर पहुँचा दिया। मंच पर समय व स्थान के अनुसार प्रकाश संयोजन की व्यवस्था ने नाटक को और बोधगम्य बना दिया।
इस मौक़े पर सैकड़ों युवा संकृतिकर्मियों, नाटक प्रेमियों और बुद्धिजीवियों, छात्रों के अलावा प्रसिद्ध कवि आलोकधन्वा, लेखक व्यासजी मिश्र, सुमन्त शरण, रंजीत वर्मा, युवा कवि राजेश कमल, युवा आलोचक प्रियम अंकित, प्रेमशंकर, गीतेश व रुचि आदि शामिल थे।