(यह लिली पोटपारा द्वारा लिखित स्लोवेनियन भाषा की कहानी है। लिली पोटपरा स्लोवेनियन साहित्य की एक प्रसिद्ध व पुरस्कृत लेखिका व अनुवादिका हैं। इस कहानी के अंग्रेज़ी के कई अनुवाद हुए हैं। उनके कहानी संग्रह (Bottoms up stories) को 2002 में प्रोफ़ेशनल एसोसिएशन ऑफ़ पब्लिशर्स एंड बुकसेलर्स ऑफ़ स्लोवेनिया की तरफ़ से प्राइज़ फ़ॉर बेस्ट लिटरेरी डेब्यू” सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रस्तुत अनुवाद क्रिस्टीना रेयरडन के अंग्रेज़ी अनुवाद का अनुवाद है, जो ‘एल्केमी जर्नल ऑफ़ ट्रांसलेशन’ में प्रकाशित हुआ था। समकालीन जनमत के पाठकों के लिए हिंदी अनुवाद कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क के हिन्दी-उर्दू के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉक्टर आफ़ताब अहमद ने किया है )
***
सिमोन बहुत तंग कर रहा है। माँ झुंझलाई हुई है। उसके पास पहले से ही कई मसले हैं। कभी-कभी ऐसा वक़त भी आता है जब बच्चे अपनी माँ के लिए भी मुसीबत बन जाते हैं। ऐसी हालत में वह हार जाती है। वह सोचने लगती है कि वह एक अच्छी माँ नहीं, और उसकी ख़्वाहिश होती है कि काश उसकी अपनी माँ उसे एक छोटी बच्ची की तरह अपनी बाँहों में समेट ले।
सिमोन चीज़ें तोड़ने लगता है। वह चीज़ें फ़र्श पर फेंककर चिल्लाता है। माँ यहाँ वहाँ से चीज़ें उठाकर उसे शांत करने की कोशिश करती है। लेकिन वह उसे शांत नहीं कर पाती क्योंकि वह ख़ुद ही शांत नहीं है। माँ कहती है कि सिमोन एक मनहूस प्रेतात्मा की तरह चिल्लाता है, हालाँकि सिमोन कभी नहीं पूछता कि मनहूस प्रेतात्मा कौन और क्या है? माँ भी एक मनहूस प्रेतात्मा की तरह चिल्लाना चाहती है। लेकिन माएँ चिल्लाया नहीं करतीं, क्योंकि माएँ माँ होती हैं, और माएँ हमेशा जानती हैं कि क्या करना चाहिए।
फिर अचानक माँ नहीं जानती कि क्या करना चाहिए और अनायास चटाक से उसका थप्पड़ नन्हे से चेहरे पर पड़ता है। सिमोन के नर्म गाल पर पाँचों उँगलियाँ छप जाती हैं। सिमोन दर्द से बिलबिला उठता है और चुप हो जाता है। उसकी शरारत रुक जाती है। माँ भी रुक जाती है और जिस हाथ ने थप्पड़ मारा था उसे स्लो-मोशन में अपने जिस्म की तरफ़ वापस होते देखती है। “बस! बहुत हो चुका,” वह बेबसी से कहती है। उसने यह जुमला किसी और से कहने के बजाय स्वयं से कहा था।
सिमोन अपने कमरे में चला जाता है और माँ वहीं स्तंभित खड़ी रह जाती है। अब न वह नाराज़ है और न उदास। वह बेबस है। यह ऐसी दशा है कि कोई आत्म-सम्मान रखने वाली माँ कभी स्वीकार नहीं करती। इसके बजाय वह छोटा सिमोन, बल्कि छोटी सिमोना होना पसंद करेगी। वह अपने चेहरे की जलन से तो निपट सकती है, लेकिन उसे नहीं मालूम कि इस अजीब हाथ का क्या करे जो इतने हिंसात्मक रूप से उसके क़ाबू से बाहर हो गया।
माँ को मालूम है कि बच्चे को पीटना नहीं चाहिए। उसे यह भी मालूम है कि थप्पड़ कितना दर्द करता है। माँ को यह इसलिए मालूम है क्योंकि वह भी कभी बच्ची थी। माँ को मालूम है कि “”सॉरी” शब्द कितना भारी होता है और यह सुनने वाले के कानों को कैसे भर लेता है। फिर भी कभी-कभी यह सच्चे मन से नहीं कहा जाता और इसीलिए सहजता से मुँह से नहीं निकलता।
माँ उस रात यह शब्द बोलती है, लेकिन सच्चे मन से और बहुत साल बीत जाने के बाद। अब सिमोन एक बड़ा लड़का हो चुका है। माँ से भी बड़ा। और उसके हाथ भी बेक़ाबू होकर उठने ही को हैं। तब माँ को लगता है यही सही समय है। यह सही समय है भी। तब उसके मुँह से बहुत सहजता से “आई एम सॉरी” निकलता है और सिमोन फिर से एक छोटा बच्चा बन जाता है, और फिर अचानक दोनों एक ही क़द के हो जाते हैं। एक ही साथ छोटे भी और बड़े भी— इतने छोटे कि वे जानते हैं कि किस चीज़ से दर्द होता है, और इतने बड़े कि यह भी जानते हैं कि कैसे हाथ को क़ाबू में रखा जाए। माँ सिमोन को प्यार से गले लगाती है और वह ख़ुद को छुड़ाने की कोशिश नहीं करता, हालाँकि अब वह इतना बड़ा है कि माँ को गले लगाना उसे सहज नहीं लगता। और सिमोन कहता है, “आई एम सॉरी, टू।”
***
लिली पोटपरा
लिली पोटपरा स्लोवेनियन साहित्य की एक प्रसिद्ध व पुरस्कृत लेखिका व अनुवादिका हैं। उनका जन्म 1965 में मारीबोर, स्लोवेनिया में हुआ। उन्होंने लुबलाना विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी और फ़्रांसीसी भाषाओं में 1992 में स्नातक किया। वे स्लॉवेनियन भाषा से अंग्रेज़ी में और अंग्रेज़ी, सर्बियन, और तुर्की भाषाओं से स्लोवेनियन भाषा में फ़िक्शन और नॉन-फ़िक्शन दोनों प्रकार की रचनाओं का अनुवाद करती हैं। उनके कहानी संग्रह (Bottoms up stories) को 2002 में “प्रोफ़ेशनल एसोसिएशन ऑफ़ पब्लिशर्स एंड बुकसेलर्स ऑफ़ स्लोवेनिया” की तरफ़ से “प्राइज़ फ़ॉर बेस्ट लिटरेरी डेब्यू” पुरस्कार से सम्मानित किया गया। क्रिस्टीना रेयरडन द्वारा किये गए उनकी कहानियों के अंग्रेज़ी अनुवाद “वर्ल्ड लिटरेचर टुडे” और “फ़िक्शन साउथईस्ट” , “दि मोंट्रियल रिव्यु” में प्रकाशित हो चुके हैं।
वर्तमान में लिली पोटपारा स्लोवेनिया के विदेश मंत्रालय में अनुवादिका के रूप में कार्यरत हैं। साथ ही स्लॉवेनियन भाषा में अनुवाद और साहित्य रचना का काम भी जारी है।
डॉक्टर आफ़ताब अहमद
जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी, दिल्ली से उर्दू साहित्य में एम. ए. एम.फ़िल और पी.एच.डी.डॉक्टर आफ़ताब अहमद कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क के हिंदी-उर्दू के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं। उन्होंने सआदत हसन मंटो की चौदह कहानियों का “बॉम्बे स्टोरीज़” नाम से, मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी के उपन्यास “आब-ए-गुम का अंग्रेज़ी अनुवाद ‘मिराजेज़ ऑफ़ दि माइंड’ और पतरस बुख़ारी के उर्दू हास्य-निबंधों और कहानीकार सैयद मुहम्मद अशरफ़ की उर्दू कहानियों के अंग्रेज़ी अनुवाद मैट रीक के साथ मिलकर किया है। उनकी अनूदित रचनाएं “अट्टाहास”, “अक्षर पर्व”, “आधारशिला”, “कथाक्रम”, “गगनांचल”, “गर्भनाल”,“देशबंधु अवकाश”,“नया ज्ञानोदय”, “पाखी”, “बनास जन”, “मधुमती”, “रचनाकार”, “व्यंग्य यात्रा” , “ समयांतर ”, “सेतु” और “हंस” पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं हैं। सम्पर्क: 309 Knox Hall, Mail to 401 Knox Hall, 606 West 122nd St. New York, NY 10027, ईमेल: aftablko@gmail.com