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नोबेल पुरस्कार विजेताओं सहित 57 अंतरराष्ट्रीय हस्तियों ने भीमा कोरेगांव के आरोपित कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग की

नोबेल पुरस्कार विजेताओं, अध्यापकों, मानवाधिकार रक्षकों, वकीलों, संस्कृतिकर्मियों और यूरोपीय साँसदों समेत 57 अंतरराष्ट्रीय व्यक्तियों के समूह ने भारत के प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की “सुरक्षित स्थितियों” में अविलम्ब रिहाई का अनुरोध किया है. इस आवेदन पत्र पर जिन लोगों के हस्ताक्षर हैं उनमें 2018 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता पोलिश लेखिका ओल्गा तुकार्चुक, 1986 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता नाइजीरियाई लेखक वोले सोयिंका, यूनाइटेड नेशंस वर्किंग ग्रुप के पूर्व अध्यक्ष जोसे एंटोनियो गुएवारा बेरम्युदेज़ और कैंटरबरी के पूर्व आर्चबिशप रोवन विलियम्स के नाम शामिल हैं.

अपने पत्र में इन ख्यातिप्राप्त अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों ने कहा है कि भारत सरकार और अधिकारियों को वर्तमान कोविड-आपातकाल में सहानुभूति और उत्तरदायित्व का प्रदर्शन करते हुए इन्हें रिहा कर देना चाहिए ताकि कोविड का प्रसार भारतीय जेलों में न हो जाय. उन्होंने आगे कहा कि चूंकि कानूनी कार्यवाही में समय लगता है और सभी गिरफ्तार लोग अभी भी विचाराधीन कैदी हैं, इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में जीवन जीने और सम्मान के साथ मरने के उनके संवैधानिक अधिकारों की गारंटी दिया जाना जरूरी है.
पूरी दुनिया में फैले हुए विभिन्न शैक्षणिक एवं पेशेवरों के समूह- इंटरनेशनल सॉलिडेरिटी फॉर एकादमिक फ्रीडम इन इंडिया (इंसाफ इंडिया) के साथ-साथ जर्मनी, इंग्लॅण्ड, स्पेन, आयरलैंड और दूसरे देशों के अनेकों प्रसिद्ध वकीलों और सांसदों की पहल पर यह अपील की गयी.

अपील का मूल पाठ :

कोविड-19 से विश्व भर में हुई मौतों की लगभग एक तिहाई मौतें भारत में हुई हैं, इसलिए यहाँ स्थिति बहुत ही गंभीर है. हम इस बात से चिंतित हैं कि भारतीय जेलों में अपनी सुनवाई के लिए प्रतीक्षारत अनेकों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में जेल में अत्यधिक भीड़-भाड़, लापरवाही और उचित देखभाल और साफ-सफाई की दुखद स्थिति के कारण स्वास्थ्य का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है.
वर्तमान में इन राजनितिक कैदियों में वायरस से संक्रमित हो जाने का बड़ा खतरा आन पड़ा है- उनमें से कुछ तो संक्रमित हो भी गए है- और जीवन की रक्षा के लिए वहां अविलम्ब आवश्यक चिकित्सा-सुविधा का भी अभाव है. इसलिए हम मांग करते हैं कि महामारी के चलते भारत में राजनितिक कैदियों की रिहाई के अस्थायी प्रशासकीय आदेश अविलम्ब निर्गत किये जांय.
हमारा दृढ़ मत है कि कोविड के कारण संभाव्य मौतों के प्रति विचाराधीन कैदियों की ओर से आँखें मूँद कर सरकार इन नागरिकों के जीवन की रक्षा के अपने संवैधानिक दायित्वों की अनदेखी कर रही है.

“ राजनीतिक अपराधों ” के चलते भारत में गिरफ्तार हजारों कैदियों में एक समूह भीमा-कोरेगांव (बीके-16) का भी है: इसमें चार अकादमिक, तीन वकील, दो स्वतंत्र पत्रकार, एक संगठनकर्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता, एक कवि, तीन कलाकार और एक पादरी हैं. इनमें से अधिकांश वरिष्ठ नागरिक हैं और उनमें से कुछ को दूसरी बीमारियाँ भी हैं जो उन्हें इस संक्रमण के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बना देती हैं.
ये सभी मानवाधिकारों की वकालत करते हैं, इनका शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीकों से लेखन, व्याख्यान और मजदूरों, अल्पसंख्यकों, दलितों, और आदिवासियों को उनके अधिकारों के लिये संगठित करने का रिकॉर्ड रहा है. जिस तरह से कोविड की दूसरी मारक लहर चल रही है और भयानक तीसरी लहर संभावित है, उसके मुकाबिले जेलों में भारी भीड़ है, पानी की बहुत कमी है और कोविड से निपटने के लिए ज़रूरी चिकित्सा-उपकरणों और कर्मचारियों की भी भारी कमी है.

गिरफ्तार लोगों में से कम से कम छ: को कोविड-19 का संक्रमण हो चुका है, दूसरों को विभिन्न गंभीर संक्रमण हो चुके हैं और उनकी सेहत बड़ी तेजी से गिरती जा रही है. परिवार के लोगों और दूसरे चिंतित लोगों की लगातार मिन्नतों के बाद बीके-16 के दो लोगों को हाल में ही मल्टी-स्पेशलिटी अस्पतालों में स्थानांतरित किया जा चुका है. अस्पताल में कई हफ्ते गुजारने के बाद पिछले साल बीके-16 के एक 80 वर्षीय कवि को चिकित्सकीय आधार पर उस समय अस्थायी जमानत दी गयी थी जब यह लगने लगा कि उनकी मौत हिरासत में ही हो जाएगी.

अकल्पनीय राष्ट्रीय आपदा के इस क्षण में किसी दूसरी त्रासदी से बचने के लिए हम सरकार और न्यायालय से बीके-16 को आजाद करने के लिए निर्णायक कार्यवाही किये जाने की मांग करते हैं. जब जेलें कैदियों को स्वास्थ्य एवं सुरक्षा देने में अक्षम हैं तो परिवार के लोगों को यह अधिकार है कि वह उन्हें आवश्यक देखभाल करने का प्रस्ताव दे.

किसी भी कैदी के देश से भाग जाने का कोई खतरा नहीं है. हम मानते हैं कि जब बॉम्बे उच्च न्यायालय ने गिरफ्तार किये गए इन 16 कैदियों में से तीन को निजी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया तो ये बाकी समस्त राजनीतिक कैदी भी एक मानवीय संकट झेल रहे हैं, कोविड-19 के चलते इन सभी का जीवन खतरे में है.

इस पत्र के माध्यम से हम भारतीय अधिकारियों से इस मामले में निम्नवत तुरंत एवं त्वरित कार्यवाही करने का अनुरोध करते हैं.

• भीड़ भरी और असुरक्षित जेलों से बीके-16 को अविलम्ब रिहा किया जाय.
• उनके निकट सम्बन्धियों को उनकी देखभाल करने की अनुमति दी जाय.
• अनर्थकारी परिस्थितियों से बचाव के लिए सहानुभूति एवं उत्तरदायित्वों का प्रदर्शन किया जाय.
• उनके जीवन एवं सम्मानजनक मृत्यु सम्बन्धी संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित किया जाय

 

( काउंटर व्यू से साभार. अनुवाद दिनेश अस्थाना )

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