प्रयागराज। प्रख्यात उर्दू साहित्यकार एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो अली अहमद फातमी का लूकरगंज स्थित घर सोमवार को इलाहाबाद विकास प्राधिकरण ने ढहा दिया। प्राधिकरण ने सिर्फ एक दिन पहले घर ध्वस्त करने की नोटिस दी थी। उनके घर के करीब ही बना उनकी बेटी नायला फातमी का घर भी ढहा दिया गया।
प्रो फातमी का घर ढहाने का साहित्यिक-सांस्कृतिक व सामाजिक संगठनों ने निंदा की है।
प्रोफेसर फातमी ने वर्ष 1988 में महमूदा बेगम से इस जमीन की बाकायदा रजिस्ट्री कराई थी, लेकिन इलाहाबाद विकास प्राधिकरण का आरोप है कि उक्त मकान नजूल लैंड पर बना था, जिसकी समय सीमा वर्ष 1999 में पूरी हो गई लेकिन उसका नवीनीकरण नहीं कराया गया था। लीज खत्म होने के बाद यह अवैध हो गया। वहीं प्रोफेसर फातमी कहते हैं कि वर्ष 1999 में ही पहली किस्त के तौर पर उन्होंने 14 हजार रुपये जमा कराए थे, लेकिन वह कार्रवाई आगे ही नहीं बढ़ी।
छह मार्च की शाम को उनके घर के आहाते में एक नोटिस फेंक कर घर खाली करने को कहा गया था। प्रो फातमी ने किसी तरह घर का सामान और लाइबे्ररी में रखी छह हजार से अधिक किताबों को हटाया। घर ढहा दिए जाने के बाद प्रो.फातमी ने करेली स्थित एक रिश्तेदार के घर रह रहे हैं। उनके पास इलाहाबाद में कोई और आशियाना नहीं है।
जसम के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर राजेंद्र कुमार ने कहा कि प्रो फातमी का घर ढहा दिए जाने से उन्हें बहुत धक्का लगा। बिना मोहलत दिए आनन-फानन में ऐसे घर गिराना अमानवीय है।
लेखकों व संस्कृतिकर्मियों तथा उनके संगठनों ने उर्दू के मशहूर लेखक व आलोचक और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डा.अली अहमद फातमी का लूकरगंज स्थित मकान को जिला प्रशासन और विकास प्राधिकरण द्वारा ज़मींदोज़ किये जाने की घटना पर गहरा रोष प्रकट किया है तथा इसे ज्यादती भरी कार्यवाही कहा है।
आज प्रलेस, इप्टा, जलेस, जसम और समानांतर की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि न सिर्फ प्रो फातमी बल्कि पास में स्थित उनकी बेटी और करीब 6 व 7 निवासियों के घर भी प्रशासन ने गिराये हैं। फातमी साहब, उनकी बेटी व अन्य सभी परिवार अब सड़क पर हैं। सभी का घर गिराने के लिए सिर्फ एक दिन पहले नोटिस मिली और बिना मौका दिए मकान ध्वस्तीकरण की निर्मम कार्रवाई कर दी गयी।
यह बयान प्रगतिशील लेखक संघ, उ.प्र. के महासचिव संजय श्रीवास्तव, जन संस्कृति मंच, उ.प्र. के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर, जनवादी लेखक संघ के प्रदेश महासचिव नलिन रंजन सिंह , इप्टा के प्रदेश महासचिव संतोष डे , प्रलेस (उर्दू) के महासचिव सुहैब शेरवानी और समानांतर इंटिमेट थिएटर,इलाहाबाद के महासचिव अनिल रंजन भौमिक ने जारी किया है।
गौरतलब है कि हरदिल अज़ीज़ फातमी साहब पूरे देश में अपने साहित्यिक अवदान के लिए जाने जाते हैं। उर्दू आलोचना में उनकी पुस्तकों का विशेष महत्व है। इलाहाबाद हिंदी-उर्दू साहित्य की समृद्ध परंपरा के लिए जाना जाता है। मौजूदा समय में फातमी साहब एक अहम शख्सियत के रूप में हमारे सामने हैं जिन पर इलाहाबाद की जनता भरोसा करती और उन्हें अपना लेखक मानती है। यह भी गौरतलब है कि वे अब बुजुर्ग भी हो चले हैं और उनकी पत्नी काफी बीमार रहती हैं। ऐसे हालात में वे और उनकी बेटी इस वक्त सड़क पर आ गये हैं। शासन-व्यवस्था की इस संवेदनहीन कार्यशैली से समूचा साहित्य-जगत हतप्रभ है।
बयान में कहा गया है कि इस दौर में लेखकों,संस्कृतिकर्मियों, महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती का दौर चल रहा है। लगता है जानबूझकर इन्हीं कारणों से फातमी साहब को भी इस हुकूमत ने निशाने पर लिया है। बहरहाल, सरकार की इस कारगुजारी की जितनी भी निन्दा की जाय कम है। लेखक, बुद्धिजीवी व संस्कृतिकर्मी व उनके संगठनों की सरकार मांग है कि प्रो.अली अहमद फातमी, उनकी बेटी तथा अन्य सभी प्रभावित परिवारों को मुआवजा देते हुए उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाय, वरना हम सभी आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।