प्राची तेलतुंबड़े और रश्मि तेलतुंबड़े
16 मार्च 2020 को, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच में जज अरुण मिश्रा और मुकेश कुमार रसिकभाई शाह शामिल थे, जिन्होंने जनवरी 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और लेखक आनंद तेलतुंबड़े की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। पुणे पुलिस ने 2018 में कथित माओवादी लिंक के संदर्भ में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया। और भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आनंद और गौतम नवलखा को 6 अप्रैल 2020 को आत्मसमपर्पण करने के निर्देश दिये।
16 मार्च को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अगले कुछ वर्षों के लिए हमारे पिता के भाग्य का फैसला किया जाना था। 6 अप्रैल को राज्य सरकार एक ऐसे तथ्य को खत्म करने की प्रतीक्षा में थी — जिसके बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हम बोलेंगे या लिखेंगे।
जब से हमने फैसला सुना, ऐसा महसूस हुआ कि जीवन ठहर सा गया है, लेकिन हर दिन फोन और घर पर शुभचिंतकों से मिलने वाली सहानुभूति और समर्थन बिना रुके जारी रहा। थकी हुई आंखे और रातों की नींदों का हराम होना एक नियम सा बन गया। निराशा, बेचैनी और लाचारी की एक निरंतर भावना हम सभी में बस गई और हमारा पूरा परिवार इन हालातों का सामना करने की पूरी कोशिश कर रहा है। यह वह स्थिति है, जो एक निर्दोष व्यक्ति के गिरफ़्तार होने पर, उसके परिवार और प्यारे दोस्तों को चारों तरफ से घेर लेती है।
अगस्त 2018 की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भड़काने वाले झूठे पत्रों की सहायता से “कॉमरेड आनंद” शब्द को सबके सामने लाया गया – जिसमें कोई अन्य ब्योरा नहीं दिया गया – यह झूठ मीडिया के कैमरों से प्रदर्शित होता हुआ जल्द ही हमारे पिता की गिरफ़्तारी का सबब बना।
जब हम इन सभी घटनाओ को क्रमबद्ध तरीके से देखते है तो दो सवाल उठते है; पहला कि किसी अन्य व्यक्ति से प्राप्त पत्र में सिर्फ पहले नाम (आनंद) का उल्लेख होने के कारण कैसे हमारे पिता को इस मामले में फंसाया जा सकता है ? सिर्फ आनंद नाम कैसे आनंद तेलतुंबड़े से जुड़ा ? दूसरा सवाल जो हमे सबसे ज्यादा निराश करता है वह है कि इस मामले में यूएपीए धारा की मौजूदगी – कि बिना जमानत विकल्प के एक निर्दोष व्यक्ति क्यों कारावास मे डाला, जाए जबकि उसके खिलाफ़ एक भी सबूत या साक्ष्य मौजूद नहीं है ? हमे परेशान करता है कि क्यों हमारे पिता और अन्य अभियुक्तों के संवैधानिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता को छीना जा रहा है, जबकि आने वाले वर्षों में कानूनी परिक्रिया ही यह तय करेगी कि उन्होंने कोई अपराध किया है या नहीं।
अगस्त 2018 में यह प्रक्रिया शुरू होने के बाद से, कानून का पालन करने वाले नागरिकों के रूप में, हमने शांतिपूर्वक अपने घर पर हमारी अनुपस्थिति में छापा मारने की अनुमति दी; हमारे पिता ने खुद दो बार कई घंटों तक चलने वाली तनावपूर्ण पूछताछ को करने दिया; साथ ही अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का खंडन करने के लिए पर्याप्त सबूत के साथ अपना पक्ष रखा। फिर भी, हम राज्य के क्रोध के साथ सामना कर रहे हैं, सोशल मीडिया पर अनेकों आपत्तिजनक पोस्ट हमारे पिता और अन्य अभियुक्तों के खिलाफ़ उन लोगों द्वारा की जा रही है जिनको उनके काम के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है।
जब भी हम अपने माता-पिता की आंखों में देखते हैं, हमे सिर्फ कष्ट दिखाई देता है। वे दोनों 65 वर्ष से अधिक आयु के हैं। हमारी माँ बाबा साहेब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की प्रपौत्री है। हमारे पिता एक बेहद परिश्रमी व्यक्ति हैं, जिन्होंने एक मेधावी छात्र, एक विद्वान और एक जानेमाने कॉरपोरेट बनने के लिए बहुत संघर्ष किया है। उन्होंने उत्पीड़ित लोगों के हित में लिखना चुना, अटूट विश्वास के साथ कि वह अपने ही देश के लोगों की रक्षा के लिए ऐसा कर रहे हैं, जिन्हें वह बहुत प्यार करते हैं। क्या यह पुरस्कार उन्हें अनेक किताबों को लिखने और प्रकाशित करने के लिए मिल रहा है जिनकी पूरी दुनिया सराहना करती है, सिर्फ इसलिए क्योंकि बड़े संस्थान इनसे असहज हैं?
हालिया कोविड-19 महामारी दुनिया भर के अरबों लोगों के जीवन और आजीविका पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रही है। इस दौरान, हम भारत के लिए उड़ान नहीं भर सके जिस कारण गिरफ़्तारी से कुछ दिन पहले का समय हम अपने माता-पिता के साथ नहीं बिता सके जब उन्हे हमारी सबसे ज्यादा जरूरत थी। जीवन के हर मोड़ पर हमने अपने पिता को हमारे साथ हर समय खड़ा पाया, लेकिन आज यह बहुत कष्टदायक है कि हम अपने पिता को गले नहीं लगा सकते या उनका हाथ पकड़ने के लिए नहीं है।
हम यह बिल्कुल समझ नहीं आ रहा है कि वह कौन सा अपराध है जिसको करने के कारण उन्हे इस यातना से गुजरना पड़ रहा है। लेकिन जैसा कि हम, कोई विकल्प न होने के कारण इस केस के साथ आगे बढ़ रहे हैं और हमारे रास्ते में आने वाली सभी लड़ाइयों का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं, हम अपने परिवार, अपने पिता के दोस्तों और उनके किए काम के समर्थकों का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं, जिन्होंने हमें इस मुश्किल को सहने और मजबूत बने रहने में मदद की। इस कठिन यात्रा पर निकलते हुए हम एक विचार के साथ आप सभी को छोड़ना चाहते हैं। क्या मानवाधिकारों और मर्यादाओं का यह उल्लंघन किसी के लिए भी आवाज उठाने के लिए पर्याप्त नहीं है ?