1 – विदेश नीति में अब तक की सबसे असफल सरकार
(क) अपने सभी पड़ोसियों नेपाल, चीन, पाकिस्तान, म्यांमार, बंग्लादेश, श्रीलंका से रिश्तों में दूरी और भारी कड़वाहट।
(ख) दुनिया में भारत के सभी पुराने मित्र राष्ट्रों से दूरी, अमरीका और इजराइल से नजदीकी।
2 – सकल घरेलू उत्पाद में ग्रोथ नकारात्मक
देश के जीडीपी ग्रोथ में भारी कमी। कोरोना पूर्व सरकार के आंकड़ों के अनुसार जीडीपी ग्रोथ 4.5 प्रतिशत थी, जबकि अर्थशास्त्रियों ने इसे तब भी नकारात्मक ही बताया था। अब कोरोना बाद जीडीपी ग्रोथ के भारी नकारात्मक 0.67 तक जाने का अनुमान खुद रिजर्व बैंक बता रहा है।
3 – खेती-किसानी की तबाही
घाटे की खेती के कारण किसानों की आत्महत्या में बढ़ोतरी. खेती के कारपोरेटीकरण और भूमि के भारी अधिग्रहण के कारण बड़े पैमाने पर आदिवासियों, गरीब व मध्यम किसानों की जमीनों से बलपूर्वक बेदखली की गई है। करोड़ों प्रवासी मजदूरों के गांवों में लौटने से खेती पर आबादी का भारी दबाव बढ़ रहा है।
4 – लघु और मध्यम दर्जे के उद्योग और व्यापार तबाह
नोटबंदी, जीएसटी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 100 प्रतिशत जैसे कदमों के कारण देश के सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग तबाह हो गए हैं। व्यापार और ट्रांसपोर्ट कारोबार की भी कमर टूटी है।
5 – बेरोजगारी दर चरम पर
सरकार के आंकड़ों में ही बेरोजगारी की दर कोरोना पूर्व 7.5 प्रतिशत थी। अब कोरोना बाद 27 प्रतिशत बताई जा रही है। जबकि हकीकत यह है कि देश की 40 करोड़ आबादी के सामने अब रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
6 – महिलाओं की सुरक्षा को ज्यादा खतरा
भाजपा राज में देश में महिलाओं पर यौन हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई। कठुआ और उन्नाव जैसी घटनाओं ने दिखाया कि कैसे यौन हिंसा और हत्या के आरोपियों को बचाने सत्ता और सत्ताधारी खुलेआम सामने आए। भाजपा राज में अपराधियों और सवर्ण सामंती ताकतों के मनोबल में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाओं, दलितों पर हमले बढ़े हैं।
7 – दलितों अल्पसंख्यकों पर हमले
ऊना, कोरेगांव, सहारनपुर जैसी बर्बर घटनाओं के जरिये दलितों पर हमलों में देश में बृद्धि और सत्ताधारियों द्वारा हमलावरों को खुला संरक्षण मोदी राज की विशेषता रही है। इसी तरह पूरे देश में मुस्लिमों और गो-पालक मुस्लिमों की संघ परिवार के संगठनों द्वारा भीड़ हत्या, उत्तर पूर्वी दिल्ली में सत्ता प्रायोजित दंगा और हत्यारों-दंगाइयों को सत्ता का खुला संरक्षण मोदी सरकार की एक और विशेष पहचान बनाई है।
8 – छात्रों व शिक्षण संस्थानों पर हमले
मोदी सरकार में सबसे ज्यादा हमले शिक्षण सस्थाओं और छात्रों पर हुए। जेएनयू, जामिया, अलीगढ़ विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, रोहित वेमुला कांड दिखाते हैं कि मोदी सरकार ज्ञान की दुश्मन है और इसीलिए ज्ञान की बात करने वाले उसके निशाने पर हैं।
9 – लोकतंत्र, संविधान और संवैधानिक संस्थाओं पर हमला
संसद, सुप्रीम कोर्ट, सीबीआई, रिजर्व बैंक, चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं को भारी बहुमत की आड़ में उनकी संवैधानिक भूमिका से हटा कर सत्ता का चाकर बनाया जा रहा है। सेना का राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। नागरिकता कानून में बदलाव के जरिये देश के नागरिकों को उनके मौलिक संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। मजदूरों के ट्रेड यूनियन अधिकारों को खत्म कर और 8 घण्टे की ड्यूटी के दुनिया भर में लागू कानून को बदल कर मजदूरों को एक बार फिर गुलाम बनाने का काम किया जा रहा है। अपने राजनीतिक और वैचारिक विरोधियों को तमाम साजिशों के जरिये दबाने और जेल में डालने की कार्यवाही के जरिये लोकतंत्र पर हमले जारी हैं।
10 – सार्वजनिक और सरकारी संस्थाओं की नीलामी
मोदी सरकार ने अपने 6 साल के शासन में देश के लिए कोई नया सरकारी या सार्वजनिक उद्योग स्थापित नहीं किया है। उल्टे यह विनिवेश और निवेश के नाम पर देश के सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों को नीलाम करती रही। अभी कोरोना संकट की आड़ में इस सरकार ने देश के सभी सार्वजनिक और सरकारी संस्थानों को बेचने का निर्णय ले लिया है।
11 – कोरोना संकट से निपटने में पूरी तरह फेल
(क) कोरोना संकट से निपटने में मोदी सरकार पूरी तरह फेल साबित हुई है। बिना योजना के लॉक डाउन लगाने के कारण देश के करोड़ों मजदूरों को दो माह से जिस विपदा का सामना करना पड़ रहा है वह असहनीय है। आज यह सरकार एक भूलभुलैया में फंसी नजर आ रही है, जहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता इसे नहीं सूझ रहा है।
(ख) अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए अब मोदी सरकार कोरोना के झूठे आंकड़े पेश कर रही है। अमेरिका और यूरोप के आंकड़ों से भारत की तुलना की जा रही है, जिनसे हमारी किसी भी स्तर पर तुलना नहीं हो सकती है। यही मोदी सरकार अप्रैल मध्य में घोषणा कर रही थी कि मोदी सरकार 15 मई के बाद कोरोना को कंट्रोल कर लेगी। 16 मई से कोई नया केस नहीं आएगा। अब वही सरकार जब स्थिति उनके नियंत्रण से बाहर हो गई तो फर्जी आंकड़े दे रही है कि लॉक डाउन न होता तो भारत में 20 लाख लोग संक्रमण और 65 हजार लोग मौत के शिकार होते।
(ग) जब कि सही यह है कि भारत की तुलना दक्षिण एशियाई देशों से ही हो सकती है। जिनकी आबादी की संरचना, जलवायु, आमदनी और औसत उम्र का स्तर एक सा है। अगर भारत के पड़ोसियों से तुलना हो तो कोरोना से भारत में संक्रमण और मौतों का प्रतिशत सर्वाधिक है। पाकिस्तान, चीन, नेपाल, म्यामार, बंग्लादेश, श्रीलंका जैसे देशों में कोरोना संक्रमण और मौतों का प्रतिशत भारत से काफी कम है।