कोरोना लाकडाउन ने लाखों लोगों को एक झटके में बेरोजगार, बेबस और लाचार कर दिया है. इसका सबसे गंभीर असर गरीबों , मजदूरों व निम्न मध्य वर्ग के लोगों पर पडा़ है. प्रवासी मजदूरों पर तो चौतरफा हमला है. उनके बारे में खबरें और तस्वीरें दिल दहलाने वाली है. बहरहाल प्रवासी मजदूरों का दर्द और पीडा़ किसी भी संवेदनशील कलाकार को झकझोर सकता है.
राकेश कुमार दिवाकर ऐसे ही चित्रकार हैं जो अपने रेखा चित्रों से प्रवासी मजदूरों की पीडा़ को अभिव्यक्त कर रहे हैं. उनके चित्र ऐक्रेलिक रंग से हस्त निर्मित कागज पर बने हैं मगर इन चित्रों में तकनीकी पक्ष को उन्होंने लगभग गौण रखा है. इन चित्रों में मूलतः मजदूरों की विवशता, असहनीय तकलीफ, अंतहीन संकट और हुक्मरानों की क्रुरता की अभिव्यंजना है. इन चित्रों में मजदूरों की पीडा़ को कम न कर पाने की विवशता भी है और तकलीफों को दर्ज करने की कोशिश भी. ये रेखा चित्र एक तरह से इस संकट काल की चित्रित डायरी है. इसमें अभिव्यंजना ही प्रमुख है.
राकेश कुमार दिवाकर बिहार के आरा के रहने वाले हैं और जन संस्कृति मंच से जुड़े हैं.
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