जातिवादी उत्पीड़न का सिलसिला थमने की कौन सोचे, यह उलटा बढ़ता ही जा रहा है| हालिया घटना पंजाब के संगरूर जिले की है| चांगलीवाल गाँव के 37 वर्षीय जगमेल सिंह को गाँव के ही एक दबंग जाट जमींदार परिवार ने इतनी बुरी तरह मारा कि दस दिनों के भीतर दिनांक 16 नवंबर 2019 को उनकी मौत हो गई| 7 नवंबर को जगमेल का टार्चर किया गया था| टार्चर इतना वीभत्स था कि चंडीगढ़ के अस्पताल पीजीआइ में जगमेल की दोनों टांगें काटनी पड़ीं| समय से उचित इलाज न हो पाने की वजह से उनकी हालत बिगड़ती गई| रॉड से पीटे जाने और प्लास्क से जगह-जगह पांवों के मांस निकाल लिए जाने के कारण जगमेल को सेप्टिक हो गया था| यह उनके लिए जानलेवा साबित हुआ| जातिवादी ‘सेप्टिक’ ने एक और दलित को निगल लिया !
हिंदी मीडिया ने इस हत्याकांड को भरसक नज़रंदाज़ किया| अंग्रेजी अखबार ‘द ट्रिब्यून’ (चंडीगढ़ संस्करण) ने 24 नवंबर 2019 को अपने खोजी पत्रकार विश्वभारती की विस्तृत रपट छापी| कवि-कार्यकर्ता और दलित लेखक संघ के पदाधिकारी कर्मशील भारती से इस घटना की भयावहता की सूचना मिली| पंजाबी दलित कवि और कार्यकर्ता मदन वीरा ने स्थानीय लोगों के संपर्क नंबर उपलब्ध कराए और वहाँ तहकीकात की यथासंभव व्यवस्था की|
प्रतिष्ठित अनुवादक राजेन्द्र तिवारी के ज्ञान और अनुभव का लाभ मिला| तथ्य संग्रह हेतु मैं दो दिनों (11-12 दिसंबर) संगरूर में रहा| वहाँ साथ मिला कवि और संपादक सुखविंदर पप्पी का| प्रतिबद्ध रचनाकार सुखविंदर इन दिनों पंजाब की जमीन समस्या पर शोधपूर्ण उपन्यास लिख रहे हैं| उन्हीं के सहयोग से मैं पंजाब में भूमिहीन दलितों के लिए काम करने वाले संगठन ‘ज़मीन प्राप्ति संघर्ष समिति’ (ZPSC) के मुखिया और कई कार्यकर्ताओं से मिल पाया| इस दोआबे में भूमिहीन दलितों को ज़मीन दिला पाना कितना कठिन है, यह बात शब्दों के जरिए बयाँ नहीं की जा सकती| ज़ेडपीएससी का गठन नज़ूल और पंचायती ज़मीन की शिनाख्त करने, उस ज़मीन को सरकारी नियमानुसार भूमिहीनों को दिलवाने के मकसद से किया गया था|
2014 से इसके मुखिया मुकेश हैं| ज़ेडपीएससी का कार्यक्षेत्र मुख्यतः चार जिलों संगरूर, पटियाला, बरनाला और मानसा है| इसकी करीब 100 शाखाएं हैं| ज़ेडपीएससी की गाँव, ब्लॉक और जिला स्तरीय समितियाँ हैं| पुलिस, स्थानीय प्रशासन और राजनेताओं ने मिलकर जगमेल की हत्या को रफा-दफा कर दिया होता अगर ज़ेडपीएससी इसे मुद्दा न बनाती| जगमेल के भतीजे गुरदीप सिंह स्वयं समिति के कार्यकर्ता हैं| वे धंधीवाल गाँव में ज़ेडपीएससी के प्रतिनिधि के तौर पर काम करते हैं| प्रेम बस्ती, गली नंबर दो, संगरूर स्थित ज़ेडपीएससी के कार्यालय पर उनसे मेरी मुलाकात भी हुई| ज़ेडपीएससी के प्रयासों से हिंसा में शामिल चारों अभियुक्त गिरफ्तार किए गए और राज्य सरकार ने मृतक के परिवार को मुआवजा दिया|
मुआवजे में बीस लाख रुपये तथा एक आश्रित को सरकारी नौकरी स्वीकृत हुई| मकान बनाने के लिए सवा लाख रुपये अतिरिक्त मंजूर हुए| जगमेल के तीनों बच्चे अभी नाबालिग हैं| पत्नी मंजीत कौर (32 वर्ष) कक्षा पाँच तक पढ़ी हैं| दस दिसंबर को उन्हें बेनड़ा गाँव स्थित सीनियर सेकेंडरी स्कूल में चतुर्थ श्रेणी पद पर जॉइनिंग मिली| मैं उनसे 11 दिसंबर को मिला| मंजीत कौर ने बताया कि उन्होंने चिंगालीवाल गाँव छोड़ दिया है| वहाँ दबंगों से खतरा था| अब वे तीनों बच्चों सहित बेनड़ा पिंड में रहेंगी| पंजाब में गाँव को ‘पिंड’ कहते हैं| जिस दिन गुरमेल पर हिंसा हुई, मंजीत कौर अपने मायके पट्टीवाल कलां में थीं| उन्होंने मुझे घटना का मय पृष्ठभूमि ब्योरा दिया| इसके साथ अन्य स्रोतों से मिली सूचना को मिलाकर पूरे वाकये की जो तस्वीर बनी वह कुछ यों थी- संगरूर जिले के लहरा गाँव में एक दलित परिवार में पैदा हुए जगमेल सिंह के बचपन का नाम जग्गा था| पिता इलाके के मशहूर मोची थे| बाद में यह परिवार चांगलीवाल गाँव आ गया| तीन भाई और दो बहनों वाले इस परिवार में कोई प्राइमरी स्कूल से ज्यादा नहीं पढ़ा था| बिचित्तर सिंह, गुरुतेज सिंह के बाद जगमेल ने भी पांचवीं तक पढ़ाई की थी| चांगलीवाल गाँव के जाट जमींदार अमरजीत सिंह के खेतों पर इस परिवार का बिचित्तर सिंह काम करता था| कई दूसरे मजदूर भी इस जमींदार के यहाँ काम करते थे|
इन्हीं मजदूरों में से एक को अमरजीत ने बहुत बुरी तरह मारा-पीटा और पुलिस केस होने पर एक दूसरे मजदूर बिचित्तर पर केस लगवा दिया| बिचित्तर साल भर जेल में रहे| उनके जेल से छूटने के 3 महीने बाद ही पिटाई के बाद घायल हुए मजदूर की मौत हो गई| अमरजीत ने एक बार जगमेल के दूसरे भाई गुरुतेज की बांहें तोड़ दी थीं| ये बांहें फिर ठीक न हो सकीं| अमरजीत सिंह के पिता गुरविंदर सिंह तो इलाके के माने हुए जालिम आदमी थे| उन्होंने एक दलित को काट कर अपने कुत्तों को खिला दिया था| उनके आतंक से शेरी नामक एक नक्सली कार्यकर्ता ने छुटकारा दिलाया था| शेरी ने जमींदार की हत्या की थी| यह घटना अप्रैल 1971 की है|
बचपन से ही जगमेल थोड़े बेपरवाह किस्म के व्यक्ति थे| किसी जमींदार के खेत पर मजदूरी करना उन्हें गवारा नहीं था| उन्होंने पहले दूध का कारोबार किया| बाद में ड्राइवरी सीखी| ट्रक से लेकर कार तक सभी वाहन चलाने लगे| उन्होंने कई साल तक पंजाब की पूर्व मुख्यमंत्री राजेंदर कौर भट्टल के यहाँ कार चलाई| करीब चार वर्ष पहले उन्हें मानसिक परेशानी हुई| यह दिक्कत सीजनल थी| सर्दियों में उनका व्यवहार कुछ बदल जाता था| वे रात में किसी पड़ोसी का दरवाज़ा खटखटा दिया करते थे और कभी गली में झाडू लगाने में जुट जाते थे| इससे उनकी ड्राइवरी की नौकरी जाती रही| वे गाँव में ही रहने लगे| अब किसी को ड्राइवर की जरूरत पड़ती तो जगमेल को बुला लिया करता| वे कभी-कभी खेत मजदूरी भी करने लगे| कुछ महीने पहले उन्होंने लाडी के यहाँ काम किया था| इस काम के उन्हें दो सौ रुपये मिलने थे| तगादा करने पर लाडी ने कहा था कि उनकी मजदूरी रिंकू देगा|
रिंकू जमींदार अमरजीत के बेटे का नाम है| 27 अक्टूबर (2019) को दीवाली थी| अपना बकाया लेने जब जगमेल जमींदार के घर गए, देर शाम हो गई थी| रिंकू और लाडी छत पर पटाखे जला रहे थे| जगमेल ने दरवाज़ा खटखटाया तो बदले में गालियाँ मिलीं| जगमेल का बड़ा बेटा करनवीर (उम्र 15 वर्ष, नवीं का छात्र) अपने पिता को समझा-बुझा कर घर ले आया| जगमेल को सबक सिखाने के मकसद से कुछ समय बाद रिंकू उनके घर गया| रिंकू के साथ एक आदमी और था| दोनों ने मिलकर जगमेल को पीटा| जगमेल को चोटें आयीं| उनका एक अंगूठा बुरी तरह जख्मी हो गया| कहते हैं उस अंगूठे को रिंकू ने चबा लिया था| पिटाई के बिहान सुबह रिंकू फिर जगमेल के घर गया| तब तक जगमेल पुलिस थाने में रपट दर्ज कराने जा चुके थे| बाद में पुलिस आयी| 6 नवंबर को पंचायत बैठी| समझौता कराया गया कि घाव का इलाज कराने के लिए रिंकू जगमेल को चार हज़ार रुपये देगा| पंचायत में हामी भरने वाला रिंकू बाद में मुकर गया| अपना पैसा मांगने जगमेल एक बार रिंकू के खेत पर भी गए और दबाव बनाने के लिए चलते ट्रैक्टर के सामने लेट गए| जमींदार का दिल न पसीजा|
थाने में दर्ज एफआइआर के अनुसार रिंकू अपने दो साथियों बिंदर सिंह उर्फ़ बीटा और लखवीर सिंह उर्फ़ लाखी के साथ जगमेल के घर आया| यह कहकर कि चोट का इलाज कराएंगे, जगमेल को अपने साथ ले गया| अस्पताल ले जाने के बजाए अपनी हवेली की ओर गया| यहाँ जमींदार अमरजीत पहले से इंतज़ार कर रहा था| जगमेल को खंभे से बाँध दिया गया| गेट खुला रखा गया जिससे बाहर जुटी भीड़ ‘दृश्य’ देखकर सबक ले सके| रिंकू और बिंदर ने जगमेल को लोहे की राड से टांगों को निशाना बनाकर पीटना शुरू किया और अमरजीत ने उस कुख्यात सोंटे से जिससे उस परिवार द्वारा दलितों को पीटा जाता रहा है| तमाशाई देखते रहे| ट्रिब्यून में छपी विश्वभारती की रपट के अनुसार कुछ दलित-मजदूरों ने हिम्मत की और अमरजीत की हवेली में जाकर उससे यह पिटाई रोक देने की विनती की| इस टीम में शामिल जगसीर ने बताया कि जमींदार ने हमें गालियाँ दीं हमारे सामने जगमेल के नाखून निकाल लिए| हम डरकर वापस लौट आए| करीब दो घंटे बाद पंचायत सदस्य पाल सिंह ने एक दलित युवक जग्गा को बुलाकर कहा कि अमरजीत के घर के पास के गुरुद्वारे के सामने जगमेल अचेत पड़ा है| जगसीर और जग्गा दोनों वहाँ गए| जगमेल को होश में लाने की कोशिश की लेकिन सफ़ल न हुए| पास में खड़े रिंकू ने कहा कि यह ड्रामा कर रहा है| इसे एक ठोकर और लगाने की देर है| होश में आ जाएगा| जगमेल को बाइक पर लादकर लाया गया| वे अपने घर में दो दिनों तक पड़े रहे| 9 नवंबर को उन्हें पास के लहरा सिविल हॉस्पिटल ले जाया गया| अन्यमनस्क डाक्टरों ने मरहम-पट्टी करके वापस भेज दिया| अब तक उन्हें गैंग्रीन हो चुका था|
जानलेवा टार्चर के तीन दिनों बाद 10 नवंबर को जगमेल का बयान दर्ज करने पुलिस उनके घर आयी| जगमेल ने अपने बयान में बताया कि जब उन्होंने पानी माँगा, उन्हें पेशाब पिलाया गया| जगमेल की बिगड़ती हालत देखकर पुलिस ने एम्बुलेंस की व्यवस्था की| दलित बस्ती के कुछ लोगों ने चंदे से दस हज़ार रुपये जुटाए| उन्हें संगरूर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया| पीड़ित के बयान के बावजूद अब तक पुलिस ने एफआइआर दर्ज नहीं किया था| 13 को केस रजिस्टर हुआ| इधर वामपंथी संगठनों का धरना-प्रदर्शन शुरू हो गया था| जगमेल की हालत बिगड़ती जा रही थी| घावों में तेजी से मवाद बन रहा था| उन्हें संगरूर से पटियाला के राजेन्द्र अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया था| 14 नवंबर को पुलिस ने तीनों आरोपियों –अमरजीत, रिंकू और लखी सिंह को अरेस्ट किया| 15 नवंबर को जगमेल पीजीआई चंडीगढ़ ले जाए गए| उनकी दोनों टांगें काटनी पड़ीं| मगर, अब तक स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी| अर्धचेतन अवस्था में जगमेल चीखते थे, “देखो, रिंकू आ गया है| मेरी पिटाई हो रही है|“ 16 नवंबर की रात जगमेल ने दम तोड़ दिया|
अगर जमीन प्राप्ति संघर्ष समिति (ZPSC) जैसे संगठन इस हिंसा पर लामबंद न होते तो मुमकिन है पुलिस मामले को रफा-दफा कर चुकी होती| स्थानीय लोगों ने बताया कि इस ‘हत्याकांड’ की खबर पाकर कॉमरेड बंत सिंह भी आए और अपने क्रांतिकारी गीतों से न्याय के लिए संघर्ष हेतु जनमानस तैयार करने की कोशिश की| मैं बंत सिंह से उनके आवास पिंड बुर्ज झब्बर, जिला मानसा जाकर मिला| बंत सिंह ने बताया कि वे पूरी रात अपने इंकलाबी गीत गाते रहे| इसके बाद ही आंदोलन का माहौल बना| लोग जुटे| सरकार को संज्ञान लेना पड़ा| अल्प समय में मुआवजा मिला और मृतक की पत्नी को नौकरी दी गई| बंत सिंह की संघर्ष-गाथा जितनी प्रेरक है उन पर हुई हिंसा उतनी ही हृदय विदारक है| क्रांतिकारी दलित कवि संतराम उदासी के गीत गाने वाले बंत सिंह मजदूरों के मुद्दों को लेकर सक्रिय रहे हैं| वे स्वयं को भगत सिंह के विचारों का प्रबल समर्थक और डॉ. आंबेडकर का अनुयायी मानते हैं| उनका जुड़ाव नौजवान भारत सभा से रहा है|
इस सभा की स्थापना भगत सिंह और उनके साथियों ने 1926 में की थी| पिछली शताब्दी के सातवें दशक में पंजाब में नक्सल आंदोलन के उभार के समय यह सभा फिर सक्रिय हुई| बंत इसके मेंबर रहे और दलितों-मजदूरों को संगठित करने में दिलचस्पी ली| उनका संबंध सीपीआइ-एमएल से तथा इंडियन पीपल्स फ्रंट से भी रहा| कुछ समय के लिए वे बीएसपी से भी जुड़े| लेकिन, वे मजदूर मुक्ति मोर्चा में आए तो यहीं के हो गए| उनकी बड़ी बेटी बलजीत कौर दसवीं की छात्रा थी| पढ़ाई के साथ खेलकूद और गायन में निपुण| माता-पिता ने उसकी शादी तय कर दी थी| बोर्ड परीक्षा के बाद शादी होनी थी| जुलाई 2002 में वह सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई| गाँव के ही एक जाट मनधीर और दूसरे तरसेम (चिकित्सक) ने उसे अपना शिकार बनाया|
एक दलित महिला गुरमेल कौर ने दोनों बलात्कारियों की सहायता की| दलित स्त्रियों के साथ बलात्कार पंजाब के इस हिस्से में कहीं ज्यादा होते रहे हैं| यह दूसरी बात है कि अधिकांश बलात्कार छिपा लिए जाते हैं| कुछ मामलों में पुलिस मध्यस्थता करके समझौता करा देती है| थाने के पुलिस अधिकारी ने बंत सिंह को बेटी के भविष्य का हवाला देते हुए समझाया था और एफ़आइआर न करवाने की सलाह दी| बंत ने ऐसा करने से इनकार किया| केस रजिस्टर हुआ| उन पर गाँव के सवर्णों-जमीदारों ने सुलह-समझौते के लिए भरपूर दबाव बनाया| बंत न झुके| उन्होंने मुकदमा लड़कर अपराधियों को सजा दिलवाकर दम लिया| इसका बदला उनसे चुकाया गया| घात लगाकर उन पर हमले होने लगे| ऐसे दो हमलों में बंत अपने को बचा ले गए लेकिन तीसरा हमला खूब तैयारी के साथ हुआ| 7 लोगों के एक गैंग ने 5 जनवरी 2006 की रात में उन्हें घेर लिया| तब वे लोहड़ी त्यौहार के लिए खोया लाने पास के गाँव गए हुए थे| मजदूर मुक्ति मोर्चा के आने वाले कार्यक्रम के लिए पम्फलेट भी बांटना था| इसी में उन्हें देर हो गई| सातों हमलावरों ने हाकी स्टिक, लाठी और हैंडपंप के हत्थे से उन्हें मरणासन्न करके छोड़ा| बंत के एक दोस्त बेअंत अकाली को किसी हमलावर ने ही खबर दी| वे उन्हें मानसा सिविल अस्पताल ले गए| अस्पताल की हालत और डाक्टरों की उदासीनता ने बंत की स्थिति गंभीर कर दी| तब कामरेडों ने पैसा इकठ्ठा किया| उन्हें पटियाला के राजेन्द्र अस्पताल ले जाया गया|
यहाँ डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए| तत्काल उन्हें पीजीआइ पहुँचाया गया| आठ जनवरी को बंत के दोनों हाथ और एक पाँव काटे गए| फोरम फॉर डेमोक्रेटिक इनिशिएटिव की राधिका मेनन और तमाम अन्य कार्यकर्ताओं/ शुभचिंतकों की कोशिशों से बंत के इलाज के लिए पैसा इकठ्ठा किया गया| मुख्यमंत्री कोष से भी आठ लाख आवंटित हुए| बाद में बंत सिंह को दिल्ली के सेंट स्टीफेंस अस्पताल लाया गया| प्रसिद्ध फिल्मकार संजय काक ने उन पर एक वृत्तचित्र बनाया| इस फिल्म ने भी सहयोग राशि जुटाने में मदद की|
बुर्ज झब्बर गाँव के सरपंच सहित आठ लोगों पर मुकदमा चला| बंत के बड़े भाई इस मुक़दमे में अहम गवाह थे| वे प्रलोभन और दबाव में आ गए| उनके मुकर जाने से सरपंच छूट गए लेकिन शेष अभियुक्तों को सजा हुई| अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना बंत सिंह का मकसद रहा| वे अपने काम में लगे हुए हैं| मैं उनके साथ एक दिन ही रुक पाया| उनकी जिंदादिली अचरज में डालती है| आप उनसे संपर्क करना चाहें, उनका सहयोग करना चाहें तो उनसे फ़ोन नं. 9878182693 पर संपर्क कर सकते हैं|
(लेखक बजरंग बिहारी तिवारी चर्चित दलित चिंतक और आलोचक हैं. उनसे bajrangbihari@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )