हरिशंकर शाही,युवा पत्रकार
बनारस यानी काशी यानी धर्म की नगरी, या शुद्ध में कहें तो वाराणसी, कई नामों और विशेषणों वाली यह नगरी मंगलवार 15 मई की शाम से मौत की चीखों से गूंज रही हैं. इसका कारण वाराणसी शहर के मध्य के पुराने इलाके में निर्माणाधीन एक ओवरब्रिज पर लगाई जा रही दो बीमों का नीचे सड़क पर मौजूद वाहनों और लोगों पर गिर जाना रहा. तकरीबन 50 फुट लंबी और कई टन भारी इन बीमों के गिर जाने की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हादसे के बाद बीमों को हटाने के लिए आनन-फानन में बुलाई गईं 11 सामान्य क्रेन मिलकर भी किसी एक बीम को भी खिसका ना सकीं.
इस पूरे हादसे में असली खेल मौतों को लेकर हो रहा है कई प्रत्यक्षदर्शियो और पीड़ितों का कहना है कि मरने वालों की संख्या 100 से अधिक है, वहीं शासन प्रशासन इस घटना में मृतकों की संख्या 15 और घायलों की संख्या 12 बता रहा है. प्रशासन कितना सच्चा है वह इसी से पता चल जाता है कि मृतकों की संख्या में ही प्रशासन और हादसे में मदद पहुँचाने के लिए लगाई गई एनडीआरएफ के आंकड़ों में अंतर है, क्योंकि एनडीआरएफ के अनुसार मरने वाले 18 है. मौत सिर्फ आंकड़े नहीं होते हैं बल्कि एक भी आंकड़ा एक जिंदा इंसान के लाश बदल जाने तक की कहानी होती है. जो कई रिश्ते नातों में जुड़ा होता है.
जिस तरह से यह बीम गिरने का हादसा हुआ है इसे पूरी तरह से सरकारी हत्याकांड कहा जाए तो गलत ना होगा. जब हजारों टन वजनी दो बीमों को चढ़ाया जा रहा था तो उस समय सुरक्षा के इंतजाम कहाँ थे, और सबसे बड़ी बात इस ब्रिज के नीचे से कैसे ट्रैफिक को जाने दिया जा रहा था. यह दुर्घटना हुई ही इसलिए क्योंकि हर तरह की लापरवाही यहाँ थी. सड़क पर जाम लगा हुआ था जिसमें परिवहन निगम की एक बस फंसी हुई थी और तभी मौत का सामान बनकर वह बीम नीचे गिर पड़ी. बीम गिरते ही बजाए कोई उपाय करने के बजाय सभी कर्मचारी भाग खड़े हुए जबकि वहाँ पर शक्तिशाली क्रेन होनी चाहिए थी जो ऐसे हादसों ने निपट सकती हो. वहाँ मौजूद लोगों का आरोप था कि करीब एक से डेढ़ घंटे के बाद कोई मदद आई, तब तक कई लोगों को आँखों के सामने मरते देखने के लिए लोग मज़बूर थे.
हजारों टन वजन की कोई चीज़ अगर ऊपर से गिर पड़े तो इलाके में भूकंप सा आ जाता है. कुछ यही महसूस करते हुए लोग पहले चौंक गए कि हुआ क्या है. लेकिन जब लोगों को होश आया तो मदद करने की कोशिश की गई पर भारी बीमों को कैसे हटाया जाए यह दिक्कत रही. प्रशासन की ओर से बात समझने और मदद पहुँचने की व्यवस्था में जितना समय लगा उतने ही लोग मौत के करीब पहुँच गए.
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक कई लोग तो सामने मदद मांगते-मांगते मर गए. इस हादसे में फंसी एक गाड़ी की महिला तो लोगों से उसे छोड़कर अपने बेटे को बचाने की मदद मांग रही थी, लेकिन मदद आने में ही इतनी देर हो गई महिला और उसके बेटे दोनों की मौत हो गई. किसी तरह से गैस कटर से गाड़ियाँ काटने की कोशिशें की गई थीं. लेकिन बिना बीम हटाए बहुत कुछ होना ही मुश्किल था.
इस घटना का जिम्मेदार बनारस के चौकाघाट से लहरतारा मार्ग पर बनने वाला ओवरब्रिज, अपनी शुरूआत से ही सरकारी कामगारी का नमूना रहा है. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और अपने संसदीय क्षेत्र को भारत के काशी से जापान के क्योटो में बदल देने दौड़ में यह ओवर ब्रिज भी शामिल था. अक्टूबर 2015 में इस ब्रिज का काम शुरू हुआ और 2017 में इसे पूरा होना था, लेकिन यह अपने तय समय से पीछे चल रहा था. ऐसे में 2017 में मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ ने जब बनारस का दौरा किया तो उन्होंने इसके जल्दी निर्माण का आदेश देते हुए इसकी समयसीमा 2018 अक्टूबर तक बढ़ा दी थी. लेकिन आज भी सरकारी रिकार्ड के अनुसार इसका काम मात्र 47 प्रतिशत ही हो पाया है. इस ब्रिज को बनाने वाली संस्था सरकारी है जिसका नाम है सेतु निर्माण निगम.
शहर के सबसे व्यस्तम और अपनी संकरी गलियों के लिए मशहूर बनारस के मुख्य स्थल पर अगर ओवर-ब्रिज का निर्माण हो रहा है. तो सुरक्षा के इंतजाम क्यों नहीं किए गए थे, हजारो टन वजनी बीमा को अगर लगाया जा रहा है, तो सड़क का ट्रैफिक क्यों नहीं रोका गया था यह सबसे अहम सवाल है. इस तरह से अगर दोषी ढूँढे जाएँ तो स्थानीय प्रशासन से लेकर शासन तक सब इसमें आते हैं. सेतु निर्माण निगम के प्रोजेक्ट मैनेजर से लेकर तमाम इंजीनियर और बाकी लोग क्या कर रहे थे.
लीपा-पोती कार्यवाही करते हुए उप मुख्य-मंत्री केशव प्रसाद मौर्या, जिनके अंर्तगत यह विभाग भी आता है, उन्होंने निगम के 4 अधिकारियों जिसमें चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर एचसी तिवारी, प्रोजेक्ट मैनेजर राजेंद्र सिंह, प्रोजेक्ट मैनेजर के आर सूदन और अवर अभियंता लालचंद थे उनको निलंबित कर दिया है. काम शुरू होने से लेकर अब तक सरकारी आंकड़ों के अनुसार मात्र 47 प्रतिशत बने इस ब्रिज को लेकर सरकारी तंत्र कैसा सहयोगी रहा है वह आपको इसी से पता चल जाएगा कि सारे हादसों के बावजूद ठेकेदार कौन है यह नाम लेने में सबको दिक्कत हो रही है. बाकी हादसे की जाँच के लिए आदेश दे दिए गए हैं.
हादसे के बाद सरकारी संवेदनहीनता का आलम यह रहा है कि घायलों को बीएचयू के हास्पिटल में भर्ती कराया गया वहाँ उनसे जाँच के नाम पर पैसे मांगे गए. और तो और मृतकों के परिजनों से भी पैसे मांगने वाला कर्मचारी पकड़ा गया. बीएचयू में पहुँच रहे मंत्रियों के सामने भी यह मुद्दा आया, बीएचयू हास्पिटल में घायलों से मिलने पहुँचे मंत्री अनिल राजभर के सामने एक घायल नीरज के पिता ने रोते हुए यह बात बताई. प्रशासन और शासन के जिम्मेदार होने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हास्पिटल में निशुल्क जाँच नहीं होती है इसकी जानकारी लेकर पहले से कोई व्यवस्था नहीं की गई.
जहाँ प्रशासन और शासन घायलों की मुफ्त स्वास्थ्य-जाँच की व्यवस्था नहीं कर पा रही है, वो किस तरह से दोषियों को सजा देगी और उस ठेकेदार को कैसे सलाखों के पीछे पहुँचाएगा जिसने इतने लोगों की जिंदगी को चंद पैसों बचाने के लिए ले लिया. अगर उसने तमाम सुरक्षा व्यवस्थाएँ कराई होतीं तो शायद यह हादसा ना होता.
फिलहाल बनारस की रोडवेज पुलिस चौकी के इंचार्ज की तहरीर पर सिगरा थाने में सेतु निर्माण निगम के अधिकारियों, कर्मचारियों और ठेकेदार व उसके कर्मचारियों पर अपराधिक मानव वध और सार्वजनिक संपत्ति को नुक्सान पहुँचाने का आरोप दर्ज किया गया है. लेकिन क्या यही काफी है इसमें पुलिस-प्रशासन के उन लोगों पर क्यों नहीं कार्यवाही हो रही है, जो नागरिक सुरक्षा के जिम्मेदार हैं. आखिर ट्रैफिक रोका क्यों नहीं गया और इतने समय से यह पुल बन रहा है तो इस दौरान सुरक्षा का जायजा कौन ले रहा था.
यहाँ साजिश तो इससे भी लग रही है क्येंकि ठेकेदार का नाम कहीं नहीं आ रहा है यहाँ तक कि सरकारी वेबसाइट और आर्थिक मामलों के मंत्रालय इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप दर्ज इस ओवर ब्रिज का ठेकेदार कौन है और इस कार्य स्थिति क्या है इस पर कोई अपडेट नहीं है. ऐसा क्यों हैं, यह किसी बड़े आदमी के करीबी होने के कारण तो नहीं है.
चौकाघाट-लहरतारा ब्रिज पर बीम चढ़ाते वक्त सुरक्षा ना रखने के लिए केवल सेतु निर्माण निगम के चंद लोग ही कैसे जिम्मेदार हैं. इस पर तो पूरा विभाग और मंत्रालय शामिल है आखिर वे कौन से मानक हैं जिन पर इतने समय से बनते रहने के बावजूद इस प्रोजेक्ट को लगातार एक्सटेंशन मिलता रहा. सेतु निर्माण निगम को वैसे भी काले मार्केट में सबसे कमाऊ पूत माना जाता है.
मुख्यमंत्री ने मदद राशि की घोषणा की है लेकिन जब मृतकों और घायलों की संख्या सरकार ही छिपा रही है तो ऐसे में कैसे कहा जाएगा कि मदद पहुँचेगी और लाश के लिए व जाँच के नाम पर पीड़ितों से पैसे मांगने की घटनाएँ प्रशासन की जिम्मेदारी को साफ दिखा देती है.