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देश विरोधी व्यावसायिक मंसूबा है लाल किला को डालमिया समूह की गोद में देना

जहाँ तक मुझे याद है राजनीति में गाँवों और ऐतिहासिक जगहों को गोद लेने का प्रस्ताव पहली बार मोदी सरकार ही लेकर आयी थी। जब सांसदों को गाँव गोद लेने को कहा गया था तब उस समय मैंने लिखा था कि यह पूरा प्रस्ताव ही अपनी प्रकृति में लोकतंत्र विरोधी है। क्योंकि किसी एक गांव को गोद लेने का मतलब यह हुआ कि उसके संसदीय क्षेत्र के बाकी गाँव उपेक्षित होंगे और यह संसद सदस्य के संवैधानिक और लोकतान्त्रिक उसूलों के खिलाफ होगा। हालाँकि यह योजना सफल नहीं हो पायी। केंद्र सरकार के बहुत सारे कैबिनेट मिनिस्टर भी अपने द्वारा लिए गए गांवों का विकास नहीं कर पाए।

इसी की तर्ज पर अब सरकार  ‘ एडाप्ट ए हेरिटेज ‘ के तहत ऐतिहासिक, सांस्कृतिक इमारतों और स्थलों को उद्योगपतियों को सौंप रही है। छोटी-छोटी जगहों को जब सौंपा जा रहा था तो लोगों ने संभवतः उतना ध्यान नहीं दिया लेकिन अब जब मामला लाल किले तक पहुँच गया है तब राजनीतिक दलों से लेकर स्वतंत्र बुद्धिजीवियों तक सक्रिय दिखने लगे हैं।

लाल किले को डालमिया समूह को सौंप देने की परिघटना को कैसे देखा जाय ? क्या यह रेलवे और रेलवे जैसे किसी दूसरे संस्थान की तरह है जिसको यह कहा जाय कि वह घाटे में चल रहा था ? क्या लाल किला कोई कंपनी है जिसकी हालत ख़राब है ? क्या लाल किला देखने आने वाले दर्शकों पर लगायी जाने वाली राशि से उसके रख रखाव का काम नहीं हो पा रहा था ? अगर ऐसा कुछ भी नहीं था तो सरकार की ऐसी क्या मज़बूरी थी कि उसने इसे डालमिया समूह को पाँच सालों के लिए सौंप दिया। जबकि उसकी सालाना आमदनी 6 करोड़ 12 लाख बतायी जा रही है।

डालमियां समूह ने 5 करोड़ सालाना देने का सौदा किया है। आखिर सालाना 1 करोड़ 12 लाख रुपये की जो बचत होगी वह किसके खाते में जायेगी। यही नहीं बाकी की व्यावसायिक गतिविधियों से होने वाली आमदनी का क्या होगा। उसका मालिक तो जाहिर है डालमिया समूह ही होगा। आखिर सरकार डालमिया समूह पर इतनी मेहरबान क्यों है । क्या कोई अंदर खाते समझौता हुआ है। लोग तो कुछ ऐसी ही आशंका जाहिर कर रहे हैं। सामान्य गणितीय जोड़घटाव तो यह सिद्ध कर रहा है कि सरकार की मंशा अवान्तर से लाभ लेने की है। इस तरह यह एक महाघोटाला है।

हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को सुरक्षित करना न केवल सरकार की संस्थाओं की जिम्मेदारी है बल्कि हम नागरिकों का भी दायित्व है। उच्चतम न्यायालय को इसका स्वतः संज्ञान लेना चाहिए और सरकार के इस देश विरोधी व्यावसायिक मंसूबे को सफल होने से रोकना चाहिए। लाल किला वैश्विक धरोहर घोषित हो चुका है, इसलिए यह मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का भी बनता है ।

इस पूरे मामले पर संस्कृति कर्मियों और लेखकों  को ‘ सांस्कृतिक, ऐतिहासिक विरासत को बचाओ, सरकार के जन विरोधी व्यावसायिक मंसूबों को हराओ ‘  जैसा व्यापक अभियान चलाना चाहिए।

( राम नरेश राम जन संस्कृति मंच की दिल्ली इकाई के सचिव हैं )

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