जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) की जस्टिस राजेन्द्र सच्चर को श्रद्धांजलि
नई दिल्ली. आज न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर जी पंचतत्व में विलीन हुए. सच्चर साहेब न्याय के लिए आजीवन लड़ने वाले शख्स के रूप में पहचाने जाएंगे.
वे पीयूसीएल जैसे मानव अधिकार संगठनों के साथ तो थे ही , वे देश के मुस्लिमों पर बनी सच्चर कमेटी के अध्यक्ष भी रहे.
देश के जन आंदोलनों में शायद ही कोई ऐसा जनपक्षीय और पर्यावरणपक्षीय आंदोलन होगा जिसके हक में सच्चर साहेब खड़े ना हुए होंगे . 90 वर्ष से ऊपर की उम्र में भी वे अपनी लरजती टांगो से देश के किसी भी कोने में एक पुकार पर पहुंच जाते थे.
लगभग 15 साल पुरानी बात है, नर्मदा घाटी में सच्चे साईं सुरेंद्र मोहन जी जैसे लोग जा रहे थे तो गुजरात पुलिस ने नाकेबंदी की और बहाने बनाये कि रस्ते में सड़के चिकनी है , वाहन फिसल सकते हैं, शांति भंग होने का अंदेशा है और सब लोगों को एक कमरे में कैद करके रखा. इसके बावजूद भी सच्चर साहेब विचलित नहीं हुए। 2006 में जब जंतर मंतर के फुटपाथ पर मेधा पाटकर साथियों के साथ भूख हड़ताल पर थी तो तो वे भी बराबर आकर फुटपाथ पर बैठे। फुटपाथ से सर्वोच्च न्यायालय तक वह लगातार चले हैं.
सर्वोच्च न्यायालय में टिहरी बांध के सवाल पर भी वह खड़े हुए थे. वह बहुत ही सरल स्वभाव के थे. सहज इतने कि कोई भी उन्हें फोन करके बात कर सकता था. अगर फोन मिस हुआ तो पलट कर उनका कॉल आ जाता था. चिट्ठियों के जवाब देना उनकी आदत में शुमार था. देशभर के कार्यकर्ताओं के लिए वे छतरी की तरह थे.
1996 में सुंदरलाल बहुगुणा जी उपवास पर थे. पुलिस ने कार्यकर्ताओं पर झूठे केस लगाए थे. बहुत मारपीट की थी. किसी तरह कुछ साथी बचकर दिल्ली आए. रविवार के दिन सच्चर साहब ने एनएचआरसी में बात की, समय दिलवाया और उनकी पैरवी की.
बल्लभगढ़ में 2017 में मुस्लिम घरों पर हमला हुआ था. हम लोग सच्चर साहेब के साथ दौरे पर गए थे. हम उनका हाथ क्या संभालते उसके पहले ही वह आगे पैदल गलियों में गए और लोगों से मिले वहां पर उपस्थित पुलिस अधिकारियों से बात की और फिर लौटते समय कार में से जितने कार्यकर्ता साथ में थे सबके लिए नाश्ता निकाल कर दिया . बड़े मुद्दे से लेकर छोटे-मोटे तक इतनी मानवीय है धरातल की सोच और समझ वाले सच्चर साहिब थे।
सच्चर साहेब का आज हमारे बीच नही रहना जैसे सर से आसमां टूट जाना महसूस हो रहा है । सच्चर साहेब हम सबके लिए प्रेरणा और ऊर्जा का स्त्रोत रहे हैं। उनके आदर्शों को ज़िंदा रखना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।
ज़िंदाबाद साथी जिंदाबाद।
मेधा पाटकर, नर्मदा बचाओ आन्दोलन व जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम); अरुणा रॉय, निखिल डे व शंकर सिंह, मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस), नेशनल कैम्पेन फॉर पीपल्स राइट टू इनफार्मेशन व एनएपीएम; पी. चेन्निया, आंध्र प्रदेश व्यवसाय वृथिदारुला यूनियन (एपीवीवीयू), नेशनल सेंटर फॉर लेबर व एनएपीएम (आंध्र प्रदेश); रामकृष्णम राजू, यूनाइटेड फोरम फॉर आरटीआई व एनएपीएम (आंध्र प्रदेश); प्रफुल्ला सामंतरा, लोक शक्ति अभियान व एनएपीएम (ओड़ीशा); लिंगराज आज़ाद, समाजवादी जन परिषद, नियमगिरि सुरक्षा समिति, व एनएपीएम (ओड़ीशा); बिनायक सेन व कविता श्रीवास्तव, पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयुसीएल) व एनएपीएम; संदीप पाण्डेय, सोशलिस्ट पार्टी व एनएपीएम (उत्तर प्रदेश); रिटायर्ड मेजर जनरल एस. जी. वोम्बत्केरे, एनएपीएम (कर्नाटक); गेब्रियल दिएत्रिच, पेन्न उरिमय इयक्कम, मदुरई व एनएपीएम (तमिलनाडु); गीथा रामकृष्णन, असंगठित क्षेत्र कामगार फेडरेशन, एनएपीएम (तमिलनाडु); डॉ. सुनीलम व आराधना भार्गव, किसान संघर्ष समिति व एनएपीएम, राजकुमार सिन्हा (मध्य प्रदेश); अरुल डोस, एनएपीएम (तमिलनाडु); अरुंधती धुरु व मनेश गुप्ता, एनएपीएम (उत्तर प्रदेश); ऋचा सिंह, संगतिन किसान मजदूर संगठन, एनएपीएम (उत्तर प्रदेश); विलायोदी वेणुगोपाल, सी. आर. नीलाकंदन व प्रो. कुसुमम जोसफ, एनएपीएम (केरल); मीरा संघमित्रा, एनएपीएम (तेलंगाना व आंध्र प्रदेश);गुरुवंत सिंह, एनएपीएम, पंजाब; विमल भाई, माटू जनसंगठन, एनएपीएम (उत्तराखंड); जबर सिंह, एनएपीएम (उत्तराखंड); सिस्टर सीलिया, डोमेस्टिक वर्कर्स यूनियन व एनएपीएम (कर्नाटक); आनंद मज्गओंकर व कृष्णकांत, पर्यावरण सुरक्षा समिति व एनएपीएम (गुजरात); कामायनी स्वामी व आशीष रंजन, जन जागरण शक्ति संगठन व एनएपीएम (बिहार); महेंद्र यादव, कोसी नवनिर्माण मंच व एनएपीएम (बिहार); सिस्टर डोरोथी, एनएपीएम (बिहार);दयामनी बारला, आदिवासी मूलनिवासी अस्तित्व रक्षा समिति व एनएपीएम; बसंत हेतमसरिया (झारखंड); भूपेंद्र सिंह रावत, जन संघर्ष वाहिनी व एनएपीएम (दिल्ली); राजेन्द्र रवि, मधुरेश कुमार, अमित कुमार, हिमशी सिंह, उमा, व आकिब जावेद मजुमदार, एनएपीएम (दिल्ली); नान्हू प्रसाद, नेशनल साइकिलिस्ट यूनियन व एनएपीएम (दिल्ली); फैज़ल खान, खुदाई खिदमतगार व एनएपीएम (हरियाणा); जे. एस. वालिया, एनएपीएम (हरियाणा); कैलाश मीना, एनएपीएम (राजस्थान); समर बागची व अमिताव मित्रा, एनएपीएम (पश्चिम बंगाल); सुनीति एस. आर., सुहास कोल्हेकर, व प्रसाद बागवे, एनएपीएम (महाराष्ट्र);गौतम बंदोपाध्याय, एनएपीएम (छत्तीसगढ़); अंजलि भारद्वाज, नेशनल कैंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इनफार्मेशन व एनएपीएम; कलादास डहरिया, रेला व एनएपीएम (छत्तीसगढ़); बिलाल खान, घर बचाओ घर बनाओ आन्दोलन व एनएपीएम