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यह कैसा फागुन आया है !

( मुजफ्फरपुर के धरमपुर गांव में भाजपा नेता द्वारा बोलेरो गाड़ी से कुचलकर 9 बच्चों को मार डालने की घटना पर कवि एवं संस्कृतिकर्मी संतोष सहर की मार्मिक कविता.  इस कविता को ‘ हिरावल ’ के नाट्यकर्मी संतोष झा की आवाज में आप यहाँ सुन भी सकते हैं )

 

यह कैसा फागुन आया है !

(बिहार में भाजपा नेता की गाड़ी से कुचलकर मार डाले गए बच्चों के लिए )

हंसते-खेलते ही तो गये थे घर से!
हालत हुई ऐसी, किसकी नजर से!

देखो आये गोपी भइया
तुझे खिलाने दूध-मलइया
कैसे होगी कठिन पढ़इया
धमा-चौकड़ी, खेल-कूदइया
उठो जगाती तेरी मइया
हाथ पसारे लिये बलइया

सत्ता मद है बरसा बन के काल!
मिट्टी में मिल गये हमारे लाल!

फूल धूल में गिरे पड़े हैं
रौंदे, कुचले औ छितरे हैं
दिन में ही छा गया अंधेरा
मौत खड़ी है डाले डेरा
चहुंदिस ही कोहराम मचा है
घर-घर हत्याकांड रचा है

मुनिया मेरी धरती पर है पड़ी हुई!
लस्त-पस्त, तुड़ी-मुड़ी सी, मरी हुई!

यही हमारी मुनिया है
यही हमारी दुनिया है
फूल सी इसकी रंगत है
चांद सी उसकी सूरत है
नदियों-सी मुसकाती है
चिड़ियों जैसा गाती है

वहशी है, कातिल है, सज़ावार है!
कौन इस फागुन का गुनहगार है?

यह कैसा फागुन आया है
हर-सूं मातम सा छाया है
हर दिल में घाव समाया है
हर जन दुख से मुरझाया है
जब छाती कूटती मायें हैं
अब्बा रोयें-चिल्लायें हैं

हम पड़े हैं मोदी औ योगी के पाले।
हर पल है अब अपनी जान के लाले।

ये खाकी निक्करधारी हैं
ये लाशों के व्यापारी हैं
ये पूंजी के सहकारी हैं
नीयत इनकी हत्यारी है
यह झूठ-लूट की यारी है
आदत इनकी मक्कारी है

अस्पताल दमघोंटू, कत्लगाह स्कूल।
ऐसा राज मिटाना ही जीवन का मूल।

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