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आरएसएस-भाजपा को शिकस्त देना फौरी कार्यभार – भाकपा (माले)

भाकपा-माले के 10वें राष्ट्रीय महाधिवेशन के चौथे दिन राष्ट्रीय राजनीतिक परिस्थिति और वामपंथी कार्यभार पर व्यापक चर्चा हुई

मानसा, पंजाब। भाकपा-माले के 10वें राष्ट्रीय महाधिवेशन के चौथे दिन 26 मार्च को राष्ट्रीय राजनीतिक परिस्थिति पर व्यापक चर्चा हुई जिसमें 30 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने बहस में हिस्सा लिया और 100 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने अपने लिखित सुझाव और संशोधन दिए।

निवर्तमान केंद्रीय कमिटी की ओर से राजनीतिक प्रस्ताव राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने पेश किया। राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया है कि ‘जिस राजनीतिक शून्य ने फासीवादी शक्तियों को अस्तव्यस्त और संकटग्रस्त वर्तमान में ‘रक्षक’ के रूप में स्वयं को पेश करने का अवसर दिया है, उसको बेहतर कल की भविष्य-दृष्टि और उसे हासिल करने के लिए संघर्षों से भरा जाना चाहिए। यह भविष्य-दृष्टि एक समृद्ध, बहुलतावादी और समतावादी भारत का है, जो हर भारतीय के लिए बेहतर जीवन और व्यापक अधिकारों की गारंटी कर सके। यदि स्वाधीनता संघर्ष और आजादी के बाद के आरंभिक वर्षों के दौरान राष्ट्र निर्माण को मिली गति समाप्त हो चुकी है, तो हमें दूसरे स्वाधीनता संघर्ष की ऊर्जा की जरूरत है, जो हर नागरिक के लिए पूर्ण सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता की गारंटी करते हुए हमारी राजनीतिक स्वतंत्रता को मजबूत करे।

उन्होंने कहा कि यदि बढ़ती सामाजिक और आर्थिक गैर-बराबरी ‘एक व्यक्ति-एक वोट’ की राजनीतिक समानता का मजाक उडा रही है, तो इस गैर-बराबरी के ढांचे से बाहर निकलने के लिए हमें सामाजिक बदलाव की जरूरत है। यदि भारत अलोकतांत्रिक भारतीय समाज की जमीन, सतह पर चढ़ी लोकतंत्र की परत को लगातार क्षतिग्रस्त कर रही है और फासीवाद हमारे संवैधानिक लोकतंत्र को पूरी तरह से अलोकतांत्रिक जमीन के मातहत लाने की धमकी दे रहा है, तो हमें इस समाज का लोकतंत्रीकरण करना होगा, ताकि लोगों के हाथ में वास्तविक सत्ता आ सके। फासीवाद को जनता को दरकिनार करने और कुचलने की इजाजत नहीं दी जा सकती। एकताबद्ध जनता फासीवाद के हमले को परास्त करेगी और अपने लिए अधिक मजबूत और गहरा लोकतंत्र हासिल करेगी।’

बहस में हिस्सा ले रहे प्रतिनिधियों ने इस बात पर जोर दिया है कि भारत की समस्त लोकतांत्रिक प्रगति और हजारों शहीदों की शहादत के आधार पर खड़े किए गए राष्ट्र निर्माण के मूल्यबोध तथा संविधान, लोकतंत्र और गंगा-जमुनी तहजीब को मोदी के नेतृत्ववाली सरकार व आरएसएस नष्ट-विनष्ट कर रहे हैं। इसे रोकना और पराजित करना इस दौर का केंद्रीय कार्यभार है। महाधिवेशन ने इस बात पर जोर दिया है कि मौजूदा परिस्थिति वामपंथी आंदोलन से बड़ी पहलकदमी की मांग करती है और फासीवाद के खिलाफ व्यापक सहयोगात्मक मोर्चेबंदी की जरूरत को सामने लाती है। सम्मेलन में 23 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों से आए 1500 से ज्यादा प्रतिनिधि, पर्यवेक्षक और अतिथि भाग ले रहे हैं। सम्मेलन में बड़ी संख्या में महिलाएं भाग ले रही हैं।

कल देर रात सम्मेलन के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि दुर्योधन बेहरा (70 वर्ष), ओडिसा की मौत हृदयगति रुकने से हो गई। सम्मेलन ने अपने दिवंगत साथी को लाल झंडा चढ़ाकर श्रद्धांजलि दी और ओडिसा के लिए विदा किया।

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