हाथरस गैंगरेप और हत्याकांड पर सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों का संयुक्त बयान
नई दिल्ली। साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों ने 30 सितम्बर को ऑनलाइन बैठक कर हाथरस में दलित लड़की के साथ गैंगरेप व मर्डर की घटना और इस घटना के विरोध में दिल्ली से लेकर लखनऊ तक शांतिपूर्ण तरीक़े से आक्रोश व्यक्त करते प्रदर्शनकारियों पर पुलिसिया दमन की कठोर शब्दों में भर्त्सना की गई।
बैठक में जन संस्कृति मंच, न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव, दलित लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, अखिल भारतीय दलित लेखिका मंच और जनवादी लेखक संघ की तरफ से मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, हीरालाल राजस्थानी, चंचल चौहान, सुभाष गाताडे, हेमलता महिश्वर, रेखा अवस्थी, फरहत रिज़वी, अनुपम सिंह, सुनीता राजस्थानी, संजीव कुमार और बजरंग बिहारी शामिल हुए। वक्ता इस पर एकमत थे कि इस समय पूरे देश में दहशत का माहौल है। उत्तर प्रदेश में तो असंवैधानिक गतिविधियों, मनुवादी हिंसा और हत्याओं की बाढ़ आयी हुई है।
बैठक में कहा गया कि हाथरस में 14 सितंबर को उन्नीस वर्षीया दलित लड़की के साथ जो हुआ, उस क्रूरता व हैवानियत को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं। गाँव के चार युवकों ने उसके साथ गैंगरेप किया और उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ने के साथ पूरे शरीर में जगह-जगह जख्म कर दिए। उसे अलीगढ़ के अस्पताल में भरती कराया गया। स्थिति बिगड़ने पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफ़र किया गया। मौत से संघर्ष करती हुई उस पीड़िता ने कल अंतिम सांस ली। इस दौरान पुलिस और राज्य सरकार का रवैया बेहद असंवेदनशील रहा। पुलिस ने भरसक कोशिश की कि मामले की गंभीरता को समाप्त कर दिया जाए और यह गैंगरेप तथा हत्या का मामला न लगे। परिवार वाले लाश की मांग करते रहे। उनकी एक न सुनी गई। रात एक बजे के करीब पुलिस ने जबर्दस्ती लाश जला दी। स्पष्ट है कि पुलिस प्रशासन सबूतों को नष्ट करने में जुटा है। पूरे प्रकरण में पुलिस की भूमिका बेहद संदेहास्पद है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार डाक्टरों का रवैया भी चिंतनीय प्रतीत होता है।
राज्य सरकार और पुलिस के रवैये पर दिल्ली से लेकर लखनऊ तक शांतिपूर्ण तरीक़े से आक्रोश व्यक्त करते प्रदर्शनकारियों का जिस तरह पुलिसिया दमन हो रहा है, उस पर भी बैठक में चर्चा हुई और उसकी कठोर शब्दों में भर्त्सना की गई।
उक्त संगठनों से जुड़े बुद्धिजीवियों, समाजकर्मियों और रचनाकारों ने मांग की कि-
- स्पीडी ट्रायल चलाकर जल्दी से जल्दी दोषियों को कठोरतम सजा दी जाए। न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता रहे। सुनिश्चित किया जाए कि पीड़ित परिवार को न्याय मिले।
- जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों और जिला व राज्य प्रशासन के अधिकारियों पर उचित और कड़ी कार्रवाई की जाए। राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी स्वीकारे।
- पीड़िता की स्मृति में उसी गाँव में एक स्मारक बनाया जाए। यह स्मारक विद्यालय/ महाविद्यालय/ चिकित्सालय के रूप में होना चाहिए।