लखनऊ, 29 दिसम्बर 2019
केन्द्र की सरकार द्वारा लाये गये नागरिक संशोधन कानून और प्रस्तावित एनआरसी के विरुद्ध देश के लोकतांत्रिक, अमनपसन्द, देशभक्त और संविधान में आस्था रखने वाले नागरिकों और उनके संगठनों ने 19 दिसम्बर 2019 को राष्ट्रीय प्रतिवाद की घोषणा की थी।
यह प्रतिवाद शान्तिपूर्ण था। इस शान्तिपूर्ण व लोकतांत्रिक आंदोलन को बदनाम करने के लिए कतिपय शरारती व अराजक तत्वों द्वारा हिंसा का सहारा लिया गया। इसकी वजह से प्रदेश में करीब डेढ दर्जन लोगों की जानें गयी। सैकड़ों लोग जिनमें पुलिस बल भी शामिल है, घायल हुए। सरकारी व अन्य सम्पति का नुकसान हुआ। बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुई हैं। हिंसा कैसे हुई, किन तत्वों द्वारा अराजकता फैलायी गयी, इस सम्बन्ध में मीडिया के द्वारा जो खबरें आ रही हैं, उनमें कई तरह के तथ्य सामने आ रहे है जो विरोधाभास पूर्ण हैं।
इस आंदोलन में ऐसे लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है जिनका हिंसा व अराजक कार्रवाइयों से कोई लेना देना नहीं रहा है। उनका व्यक्तित्व लोकतांत्रिक है और उनका विश्वास शांतिपूर्ण तरीके से प्रतिवाद में है। उन पर अपराध की ऐसी धाराएं लगायी गयीं हैं जो पूर्वग्रह से प्रेरित लगती हैं। ऐसे ही लोग हैं पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी, जाने माने वकील मोहम्मद शोएब, कवि व संस्कृतिकर्मी दीपक कबीर, सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जफर आदि। बहुत सारे निर्दोष भी जेलों में बन्द किये गये हैं।
हम लेखक व संस्कृतिकर्मी इस हिंसा और अराजक कार्रवाई का विरोध करते है। हमारी मान्यता है कि लोकतंत्र में हिंसा और अराजकता का कोई स्थान नहीं। हमारी प्रदेश सरकार से मांग है:
1. प्रदेश में हुई हिंसा व अराजकता की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराई जाय तथा रिपोर्ट के आधार पर हिंसा के लिए जो भी जिम्मेदार हो, उनके विरुद्ध कार्रवाई हो।
2. लखनऊ में बन्द सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे एस आर दारापूरी, दीपक कबीर, मो शोएब, सदफ जफर आदि सहित निर्दोषों को रिहा किया जाय। उन पर लगाये गये मुकदमें खत्म किये जाय।
3. उत्तर प्रदेश में लोकतांत्रिक व शान्तिपूर्ण तरीके से धरना, प्रदर्शन व प्रतिवाद के संवैधानिक अधिकार बहाल हो।
–प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस), जनवादी लेखक संघ (जलेस), जन संस्कृति मंच (जसम) और भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा)