समकालीन जनमत
स्मृति

मुर्दहिया की जमीन पर याद किये गए ‘मुर्दहिया’ के लेखक प्रो. तुलसी राम

(प्रो तुलसी राम स्मृति आयोजन , धरमपुर आजमगढ़)

9 फरवरी 2025 को आजमगढ के धरमपुर गाँव में प्रो तुलसीराम को याद किया गया। 1 जुलाई , 1949 को जन्मे प्रो. तुलसीराम का निधन आज से दस साल पहले 13 फरवरी, 2015 में हो गया था। इसके बाद से ही जसम की ओर से हर वर्ष नियमित रूप से प्रो तुलसी राम स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया जाता है। इस व्याख्यानमाल के आयोजन हेतु एक आयोजन समिति का गठन किया गया और राम नरेश राम को इसका संयोजक बनाया गया। प्रो तुलसीराम स्मृति व्याख्यान श्रृंखला का पहला आयोजन आजमगढ़ में ही 1 जुलाई, 2016 को सुखदेव पहलवान स्टेडियम के बगल में स्थित शिक्षक सदन में किया गया था। जिसमें दलित साहित्य के अध्येता बजरंग बिहारी तिवारी और अन्य वक्ताओं ने व्याख्यान दिया था। इसके बाद लगातार हर वर्ष विभिन्न शहरों में इस व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन हुआ। नौ फरवरी को हुआ यह आयोजन इस व्याख्यानमाला का दसवां आयोजन था।

कार्यक्रम शुरुआत कवि बृजेश यादव के गीत और वक्तव्य से हुई। आधार वक्तव्य देते हुए रामायन राम ने कहा कि प्रो तुलसी राम की आत्मकथा ‘ मुर्दहिया ‘ और ‘ मणिकर्णिका ‘ के प्रकाशन के साथ उनकी ख्याति पूरे देश और दुनिया में फैल गई। ये पुस्तकें हिन्दी साहित्य की महान रचनाओं में शामिल हैं। इनके अलावा भी बौद्ध दर्शन, आंबेडकरवाद और भारत में मार्क्सवाद के विकास को लेकर उन्होंने काफी चिंतन और लेखन किया है। ’ भारत अश्वघोष ’ पत्रिका का संपादन करते हुए उन्होंने अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता को सुनिश्चित किया है। उनके इन कामों को पाठकों के सामने लाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि प्रो तुलसी राम के निजी जिंदगी का संघर्ष बहुत ही कठिन और साथ ही प्रेरक भी है लेकिन जीवन की जटिलताओं और विफलताओं के आधार पर उनका अवमूल्यन नहीं किया जा सकता। उनके घर, गांव और हमख्याल लोगों को तुलसी राम पर गर्व करना चाहिए क्योंकि उनके विचारों का महत्व भारत के परिवर्तनकामी संघर्षों के लिए असंदिग्ध है। आजमगढ़ की पहचान में राहुल सांकृत्यायन और कैफ़ी आजमी और अन्य बड़ी शख्सियतों के साथ अब प्रो तुलसी राम भी जुड़ गया है।

युवा आलोचक उदयभान यादव ने ‘ मुर्दहिया ‘ के हवाले से कहा कि प्रो तुलसीराम की दृष्टि बहुत व्यापक थी। उन्होंने अपने जीवन यात्रा के विभिन्न स्वभावों वाले पात्रों का सजीव चित्रण किया। उनकी आत्मकथा औपन्यासिक कृति है जिसमे कल्पना नहीं हकीकत दर्ज है। अगर उन्होंने सवर्ण समाज के उत्पीड़क पात्रों का जिक्र किया तो साथ ही साथ सहायता करने वाले पात्रों का भी चित्रण किया। परिवार और समाज दोनों ने जिस तरह से उनके साथ व्यवहार किया उंसका चित्रण बहुत साहस के साथ उन्होंने किया है।

मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार और लेखक , चिंतक चंद्रभूषण ने अपने वक्तव्य में कहा कि तुलसीराम आदमी तो इतने बड़े हैं कि हम आप चले जायेंगे लेकिन वे रहेंगे। उन्होंने कहा कि तुलसीराम के जीवन के तीन पहलू महत्वपूर्ण हैं- शिक्षा के लिए संघर्ष, उनका कार्यकर्ता जीवन और प्रेम। तुलसी राम ने  शिक्षा के संघर्ष को जिस प्रकार आत्मकथा में अभिव्यक्त किया है वह बहुत ही मार्मिक  और प्रेरक है। गरीबी, अशिक्षा के साथ – साथ शारीरिक अपंगता के अपमान को झेलते हुए कोई बालक किस तरह पढाई करता है और अपने गांव में पहला छात्र बनता है जिसने हाइस्कूल की परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया। इसी तरह बीएचयू में उनके होल टाइमर जीवन के ब्यौरों को पढ़ते हुए वाम राजनीति की समस्याएं भी खुल कर सामने आती हैं। किस तरह उनके होल टाइमरी को रद्द कर मासिक भत्ते को रोका गया और उन्हे एक तरह से उपेक्षित किया गया इसके बावजूद वे सीपीआई मार्का वामपंथ के साथ आजीवन बने रहे यह भी एक सवाल है। उन्होंने कहा कि नक्सल आंदोलन की उनकी समझ विशुद्ध रूप से सीपीआई की समझ है लेकिन इसके बावजूद शेरपुर सामंती उत्पीड़न कांड पर की गई उनकी रिपोर्टिंग मेरी नजर में अब तक आई सबसे बेहतरीन रिपोर्ट में से एक है। चंद्रभूषण जी ने प्रेम संबंधी उनके विवरणों का उल्लेख करते हुए कहा कि आन्तरिक रूप से एक अनासक्त और संवेदनशील व्यक्ति ही अपने प्रेम का उल्लेख इस तरह कर सकता है। उन्होंने कहा कि तुलसीराम मशीन बनाने वाली मशीन हैं। उनके ऊपर तीन लोगों का प्रभाव है- बुद्ध , डॉ आंबेडकर और मार्क्स का, इन्हीं के प्रभाव और इन विचारधाराओं और दर्शन के गहरे अध्ययन से तुलसी राम का बौद्धिक व्यक्तिव बनता है।

पत्रकार और जसम के राष्ट्रीय महासचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा कि कि हमारे देश मे हर जिले में आज भी ‘ मुर्दहिया ‘ जीवित है। दरसअल हमारी सत्ता यह चाहती है कि हम अपने इतिहास के साथ-साथ स्वाधीनता, समानता, न्याय के अथक संघर्ष को  भूल जाएं। आज सत्ता में बैठे लोग कह रहे हैं कि हम 2014 में आजाद हुए। आरएसएस प्रमुख कह रहे हैं कि 2023 में हमें आजादी मिली है। ऐसे में 1857 के स्वाधीनता संघर्ष में आजमगढ़ के संघर्ष को क्या हमें भूला देना चाहिए। यही तो वह धरती है जहाँ स्वाधीनता का पहला संघर्ष बहुत ही व्यापक रूप से लड़ा गया। यह संघर्ष देश की आजादी के साथ-साथ सभी के लिए न्याय , बराबरी का भी संघर्ष था जो हमारे संविधान में व्यक्त हुआ है। तुलसीराम को याद करना उसी संघर्ष की कड़ी को याद करना है। उनको याद करना जाति भेद , पाखंड, अंधविश्वास, अशिक्षा के खिलाफ जारी संघर्ष को याद करने के साथ-साथ उसे और व्यापक करने का संकल्प लेना भी है।

इप्टा आजमगढ़ के संरक्षक हरमिंदर पांडेय ने कहा कि हमें व्यक्ति की पूजा नहीं करनी चाहिए बल्कि उसके विचारों को महत्व देना चाहिए। तुलसीराम के ऊपर राहुल सांकृत्यायन के साहित्य का इतना असर था कि उन्होंने खुद कहा था कि राहुल जी की पुस्तकें पढ़कर मैं जिंदा हूँ।

अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए अभिनव पत्रिका के संपादक और जसम उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष जयप्रकाश धूमकेतु ने तुलसीराम के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं का उल्लेख करते हुए उनसे मुलाकात की यादें साझा की। उन्होंने प्रो तुलसीराम की स्मृति और उनके विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए गाँव में पुस्तकालय स्थापना का प्रस्ताव रखा।

इस कार्यक्रम में प्रो तुलसी राम के दो भाई रामावतार राम और मेवाराम तथा उनकी बहन साबित्री भी मंच पर मौजूद थे। रामावतार राम ने कहा कि यह बहुत जरुरी कार्यक्रम हो रहा है। उन्होंने तुलसीराम के जीवन संघर्ष को याद करते हुए अपने जीवन संघर्ष को उसके साथ जोड़ा। तुलसीराम की बहन साबित्री तो उनको याद करते हुए भावुक भी हो गईं,। तुलसीराम के दामाद बृजेश कुमार और भतीजी निशा ने कार्यक्रम में आये हुए सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि हम लोग जितना हो सकता है तुलसीराम की विरासत को आगे ले जाने का प्रयास करेंगे।

प्रो. तुलसीराम की बेटी अंगिरा  अपरिहार्य निजी व्यस्तता के कारण आजमगढ़ आ नहीं सकीं  लेकिन उन्होंने आयोजन के लिए अपना लिखित वक्तव्य भेजा। उन्होंने अपने लिखित वक्तव्य में कहा कि “प्रोफ. तुलसीराम जी की स्मृति में एकत्रित सभी लोगों का मैं आभार प्रकट करती हूँ। यह आयोजन न केवल उनकी पुण्यस्मृति का अवसर है, बल्कि उनके जीवन दर्शन, संघर्षों, मूल्यों और विचारधारा को आत्मसात करने का संकल्प भी है। बचपन से मैंने पिताजी से गाँव के कई किस्से और कहानियाँ सुनी हैं, जिन्हें सुनकर मेरे अंदर गाँव को देखने की गहरी जिज्ञासा जागती थी। मैं जानना चाहती थी कि उन्होंने अपना बचपन कैसे बिताया। मैं उनकी विरासत को आगे ले जाना चाहती हूँ और इस ज़िम्मेदारी का एहसास मुझे हमेशा रहता है। जब से मैंने होश संभाला, तब से आपको अक्सर चिकित्सा समस्याओं से जूझते हुए देखा, लेकिन इसके बावजूद आपका संघर्ष करने का जज़्बा आज भी मुझे प्रेरित करता है। आपकी इच्छाशक्ति को आज भी मैं खुद में महसूस करती हूँ।”

कार्यक्रम का संचालन जसम उत्तर प्रदेश के सचिव राम नरेश राम ने किया और कथाकार हेमन्त कुमार ने आभार ज्ञापन किया । इस कार्यक्रम में यह भी प्रस्ताव रखा गया कि जिस नवनिर्मित पंचायत भवन में कार्यक्रम हो रहा है उसके एक कमरे में तुलसीराम जी के नाम एक पुस्तकालय खुले। इस प्रस्ताव का परिवार , गाँव के लोग और कार्यक्रम में शामिल सदस्यों ने स्वागत किया और लोगों ने इसे बनाने के लिए अपने अपने स्तर से यहयोग का आश्वासन भी दिया।

रमेश कुमार गौतम के संयोजन में इस कार्यक्रम में पुस्तकों का एक स्टॉल भी लगा हुआ था । बृजेश कुमार और भतीजी निशा ने कार्यक्रम में आये हुए सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि हम लोग जितना हो सकता है तुलसीराम की विरासत को आगे ले जाने का प्रयास करेंगे।

कार्यक्रम में आजमगढ़,गोरखपुर,मऊ , गाजीपुर से बहुत सारे लोग शामिल हुए, रिहाई मंच के राजीव यादव, सगड़ी तहसील के लाटघाट बाजार के दंत चिकित्सक डॉ शिवकुमार , भीम आर्मी के सोनू आर्या, कवयित्री सुनीता अबाबील, गोरखपुर विश्वविद्यालय के शोधार्थी अभिषेक कुमार , जनगीतकार राजनरायन यादव, विनोद सिंह सहित परिवार, गाँव के स्त्री पुरूष , लगभग 200 से अधिक लोग कार्यक्रम में शामिल हुए।

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