( युवा पत्रकार और साहित्यप्रेमी महताब आलम की श्रृंखला ‘उर्दू की क्लास’ की तीसरी क़िस्त में जामिया के मायने के बहाने उर्दू भाषा के पेच-ओ-ख़म को जानने की कोशिश . यह श्रृंखला हर रविवार प्रकाशित हो रही है . सं.)
आजकल “जामिया मिल्लिया इस्लामिया” एक बार फिर से चर्चा में हैं। इस बार चर्चा का कारण ये है कि दिल्ली स्थित इस विश्वविद्यालय ने देश की तमाम केंद्रीय विश्विद्यलयों में 90 फीसदी स्कोर के साथ जामिया को रैंकिंग में पहला स्थान मिला है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी की गई रैंकिंग में जामिया को 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में यह स्थान प्राप्त हुआ है।
जामिया के बारे में बोलते और लिखते वक़्त लोग अक्सर “जामिया विश्वविद्यालय” या “जामिया यूनिवर्सिटी” शब्द का इस्तेमाल करते पाये जाते हैं, जो कि मुनासिब नहीं है।
“जामिया विश्वविद्यालय” कहना/लिखना ऐसा ही जैसे “दिल्ली विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय” या “DU विश्वविद्यालय” या फिर “JNU विश्वविद्यालय”।
आप कहेंगे कि ये क्या बेतुकी बात हुई :”दिल्ली विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय” या “DU विश्वविद्यालय” या फिर “JNU विश्वविद्यालय” ! जब DU और JNU में आलरेडी यूनिवर्सिटी /विश्वविद्यालय शब्द लगा है तो अगल से या एक बार और लगाने की क्या ज़रुरत है ?
जी, यही बात “जामिया विश्वविद्यालय” लिखने/बोलने के बारे में भी कही जा सकती है। वो इसलिए क्योंकि ख़ुद “जामिया” का मतलब होता है “विश्वविद्यालय”! ये शब्द अरबी से उर्दू में आया है।जामिया का मतलब “दर्सगाह”/शैक्षणिक संस्थान भी होता है यानी Educational Institute.
“उलेमाओं” का बयान और “हालातों” का जायज़ा
“उलेमाओं ने कहा- घर में ही पढ़ें ईद की नमाज”,”उलेमाओं ने सेनिटाइजर को बताया हराम”, “ईद पर कुर्बानी की मांग को लेकर उलेमाओं ने सौंपा ज्ञापन” या “आजादी में उलेमाओं की भूमिका पर व्याख्यान” ।
इन सब में Key Word है “उलेमाओं”, जो कोई शब्द ही नहीं है । लोग ये समझते हैं कि “उलेमाओं” असल में “उलेमा” शब्द का बहुवचन है। जबकि हक़ीक़त में ऐसा नहीं है क्योंकि “उलेमा” ख़ुद बहुवचन है “आलिम” का। “आलिम” का मतलब होता है इल्म रखने वाला या जानकर।
कुछ ऐसा ही मामला “हालातों” के साथ भी है।
“बाढ़ के हालातों पर PM ने की असम के CM से बात की”, “रक्षा मंत्री का लद्दाख दौरा टला, लेना था हालातों का जायजा”, “5 रेसलर्स जिन्होंने WWE को बुरे हालातों में छोड़ा था”
यहाँ Key Word है “हालातों” जो कि कोई शब्द नहीं है। लोग ये समझते हैं कि “हालातों” असल में “हालात” शब्द का बहुवचन है जबकि हक़ीक़त ये है कि “हालात” ख़ुद बहुवचन है “हालत” का।
इसी तरह का मामला “अल्फ़ाज़ों” और “मामलातों” के साथ भी है।”मामलात” और “अल्फ़ाज़” ख़ुद बहुवचन हैं, उनको और बहुवचन बनाने की कोई ज़रूरत नहीं है।
(महताब आलम एक बहुभाषी पत्रकार और लेखक हैं। हाल तक वो ‘द वायर’ (उर्दू) के संपादक थे और इन दिनों ‘द वायर’ (अंग्रेज़ी, उर्दू और हिंदी) के अलावा ‘बीबीसी उर्दू’, ‘डाउन टू अर्थ’, ‘इंकलाब उर्दू’ दैनिक के लिए राजनीति, साहित्य, मानवाधिकार, पर्यावरण, मीडिया और क़ानून से जुड़े मुद्दों पर स्वतंत्र लेखन करते हैं। ट्विटर पर इनसे @MahtabNama पर जुड़ा जा सकता है ।)
( फ़ीचर्ड इमेज क्रेडिट : मोहसिन जावेद )