प्रयागराज। कोरोना विषाणु के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए सरकारी उपायों की हकीकत क्या है, यह शनिवार की रात एक बार फिर उजागर हो गयी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक अधिवक्ता की चित्रकूट में रहने वाली बहन को कोरोना विषाणु के संक्रमण जैसे लक्षण दिखने पर सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने में पांच घंटे से अधिक लग गए. वह भी तब जब इलाहाबाद से लेकर चित्रकूट तक फोन की झड़ी लगा दी गयी.
लायर्स कलेक्टिव फॉर पीपुल्स राइट्स के संयोजक महाप्रसाद उच्च न्यायालय इलाहाबाद में अधिवक्ता हैं. उनका घर चित्रकूट जिले के भरतपुर गांव में है. उनकी बहन को शुक्रवार की रात तेज बुखार, सूखी खांसी, गला सूखना, सीने में दर्द, उल्टी की शिकायत हुई. परिवार के लोगों को कारोना विषाणु के संक्रमण की आशंका हुई हालांकि इस परिवार के किसी भी सदस्य की विदेश या उत्तर प्रदेश के बाहर आने-जाने की ट्रेवल हिस्ट्री नहीं है. आशंका और एहतियात के चले पिता व मां ने इमरजेंसी सेवा जैसे 108, 112, 01123978046, 18001805145, भरतकूप पुलिस चौकी प्रभारी, सीएमओ चित्रकूट, डीएम चित्रकूट, सीडीओ कर्वी को फोन किया। खुद अधिवक्ता महाप्रसाद ने भी फोन किया. ये सभी फोन रात 9.00 से 9.30 बजे के बीच किए गए. कुछ फोन उठे नहीं तो कुछ ‘ आपकी कॉल प्रतीक्षा में है ’ की रट लगाते रहे. काफी देर तक चित्रकूट जनपद की इमरजेंसी सेवाओं से सम्पर्क नहीं हो सका.
इस स्थिति में लाॅकडाउन के चलते इलाहाबाद में फंसे अधिवक्ता महाप्रसाद ने बहन को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए इलाहाबाद जनपद की इमर्जेंसी सेवा से संपर्क किया तब उन्होंने कॉल ट्रांसफर कर चित्रकूट जनपद के इमरजेंसी एंबुलेंस सेवा से बातचीत करायी .
अधिवक्ता के गांव का पता नोट किया गया. करीब दो घंटे बाद रात 11.56 बजे एम्बुलेंस गांव पहुंची. एम्बुलेंस के चालक व उस पर सवार उसके सहयोगी कोरोना संक्रमण से डर रहे थे और शिकायत कर रहे थे कि उनके पास संक्रमण से बचाव के उपकरण नहीं है. चित्रकूट जिले में इलाज की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण रात एक बजे जैसे-तैसे मरीज को लेकर एम्बुलेंस बांदा मेडिकल कॉलेज पहुंची.
रोगी को कुछ सामान्य जांच के बाद अगले दिन सुबह 8 बजे तक सामान्य वार्ड में ही रखा गया. अधिकारियों से लगातार संपर्क और दबाव के बाद उन्हें रविवार दोपहर में आईसीयू में भर्ती किया गया. मेडिकल कालेज के चिकित्सकों ने कहा कि मरीज की कोरोना संक्रमण की जांच की जाएगी. यहां आईसीयू में तीन और मरीज भर्ती हैं.
अधिवक्ता महाप्रसाद ने बताया कि जिस तरह के दावे सरकार कर रही है, जमीनी यथार्थ उसके कहीं उलट है. अभी भी मेडिकल स्टाफ, इमर्जेंसी स्टाफ को मूलभूत सुरक्षा उपकरण मुहैया नहीं कराए गए हैं.
यूपी में यह दूसरा मामला है जब किसी मरीज को जांच कराने या भर्ती कराने में इतना विलम्ब हुआ. इसके पहले लखनऊ में प्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना की बहू की तबियत खराब होने पर 24 घंटे तक उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं कराया जा सका था. तमाम प्रयास के बाद स्वास्थ्य कर्मियों ने घर आकर जांच के लिए नमूना लिया. राहत की बात है कि जांच रिपोर्ट निगेटिव आयी.