लखनऊ, 10 मई। भारत-पाक दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। दोनों के बीच युद्ध नहीं होना चाहिए। आतंकवाद और आपसी तनाव का हल कूटनीतिक रास्ते से बातचीत के द्वारा निकालना चाहिये।
यह बात आज यहां नेहरू युवा केंद्र में ‘संविधान बचाओ-लोकतंत्र बचाओ’ कन्वेंशन में भाकपा (माले) के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में कही। वे इंसाफ मंच द्वारा 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 168वीं वर्षगांठ पर आयोजित कन्वेंशन में मुख्य वक्ता के रुप बोल रहे थे। उन्होंने दोनों देशों से शांति व संयम बरतने और युद्धोनमाद के खिलाफ नागरिक समाज से एकजुट होने की अपील की।
माले महासचिव ने कहा कि पहलगाम की घटना जे कुछ दिन पहले ही गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर में वहां की सुरक्षा को लेकर बैठक की थी और सबकुछ ठीक बताया था। 19 अप्रैल को प्रधानमंत्री का कार्यक्रम भी तय हुआ जो निरस्त हुआ। सरकार को सुरक्षा संबंधी कुछ ऐसी सूचना रही होगी, तभी पीएम का कार्यक्रम निरस्त हुआ। उसके तुरंत बाद पहलगाम आतंकी हमला हुआ। जब सब कुछ ठीक था, तो इतनी बड़ी घटना कैसे हो गई देश को बताया जाना चाहिए। जब सरकार को सूचना थी, तो उसने पर्यटकों को बिना सुरक्षा अकेला क्यों छोड़ दिया।
का. दीपंकर ने कहा कि इतने बड़े आतंकी हमले के बाद कश्मीर की जनता ने पर्यटकों को अपने घरों और होटलों में आश्रय देकर प्रशंसनीय काम किया। शहीद नौसेना के अधिकारी नरवाल की पत्नी हिमांशी नरवाल ने व्यक्तिगत क्षति व पीड़ा के बावजूद कश्मीर की जनता और मुस्लिमों को कसूरवार ठहराने से मना किया और शांति के साथ न्याय की मांग कर बड़ा संदेश दिया। नैनीताल रेप केस को सांप्रदायिक रूप देने की उन्मादी भीड़ की कोशिशों के खिलाफ एक अकेली महिला शैला नेगी ने संघर्ष किया। इन महिलाओं को सलाम है।
माले महासचिव ने कहा कि सुरक्षा की आड़ लेकर स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमले किये जा रहे हैं। 4 पीएम चैनल और द वायर जैसे विश्वसनीय व सम्मानित मीडिया प्लेटफर्मों को ब्लाक करना निंदनीय है और यह संवैधानिक अधिकारों के क्षरण को दिखाता है।
का. दीपंकर ने कहा कि 1857 का विद्रोह एक पूरी क्रांति थी जो फ्रांसीसी क्रांति (पेरिस कम्यून) से कम नहीं थी। इस विद्रोह में हिन्दू-मुस्लिम एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़े। उससे अंग्रेजों ने सबक लिया और हिन्दू-मुस्लिम एकता तोड़ने की नीति अपनाई, जिससे कि उनका राज चल सके। ज्योतिराव फुले ने जाती व्यवस्था में शोषण के खिलाफ 1873 में गुलामगिरी नामक पुस्तक लिखी। 1947 में भारत विभाजन के समय खून-खराबे के माहौल में जब देश का संविधान लिखा जा रहा था, तो उसमें कहा गया कि भारत देश हम सभी का है। स्वतंत्रता, समानता और न्याय सभी के लिए लिखा गया। धर्मनिरपेक्षता को अपनाया गया। संविधान अचानक से नहीं टपका। उसमें 1857 की हिन्दू-मुस्लिम एकता, फुले की परंपरा और आजादी की लड़ाई से पैदा हुई चेतना समाहित है। इस चेतना के निर्माण में कम्युनिस्टों की भी अहम भूमिका रही। आरएसएस प्रमुख भागवत राम मंदिर के निर्माण को असली आजादी बताते हैं। यह आजादी की पूरी लड़ाई और संविधान का अपमान है। संविधान महत्वपूर्ण दस्तावेज है और इसकी प्रस्तावना न्याय व लोकतंत्र पसंद लोगों का आज के दौर का घोषणा पत्र है।
माले नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश का 2024 का लोकसभा चुनाव परिणाम भाजपा की कल्पना से परे था। 1857 की क्रांति से जिस तरह अंग्रेज डर गए थे, उसी तरह 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम से भाजपा और संघ भी भयभीत हो गए। भाजपा ने जाति जनगणना पर यू टर्न ले लिया है। पहले वह इसके खिलाफ थी। जाति जनगणना और संविधान रक्षा 2024 के चुनाव के सशक्त मुद्दे थे। भाजपा ने महिला आरक्षण के तरह ही जाति जनगणना को भी फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
का. दीपंकर ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) संविधान पर हमला था। भाजपा ने नागरिकता कानून के बहाने संविधान को निशाना बनाया। वक्फ कानून विधेयक नागरिकता कानून का जारी नया संस्करण है। इसलिए इसे हिंदू-मुस्लिम नजरिए से लोग नहीं देख रहे हैं। जब हमारे देश में दस्तावेजीकरण हुआ ही नहीं है, तो पुरानी वक्फ संपत्ति का दस्तावेज कहां से दिखाया जा सकेगा। यह सब अल्पसंख्यकों से उनकी जमीनें छीन लेने की ही कवायद है। भाजपा राज बुल्डोजर से शुरू होकर बुल्डोजर राज में बदल गया है।
माले महासचिव ने कहा कि फासीवाद को जिन लोगों ने झेला है, उनको मालूम है कि कैसे वह पहले एक को दूसरे से अलग करता है फिर सबकुछ छीन लेता है। हमारे देश के किसानों ने इसे समझा और भाजपा को पीछे हटने को मजबूर किया। इस बात को देश का मजदूर भी समझ गया है और चार लेबर कोड, जो मजदूरों की गुलामी का कोड है, के खिलाफ मजदूर लड़ रहे हैं। आज मुस्लिमों को भी गुलाम बनाने की कोशिश की जा रही है। बस्तर में इनाम व पैसों का लालच देकर आदिवासियों की हत्या की जा रही है। भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत से शुरू कर नक्सल मुक्त भारत तक पहुंच गई है। आदिवासी, मुस्लिम, दलित, नौजवान, छात्र निशाने पर हैं। इस मौके पर चुप नहीं रहकर बोलना होंगे, क्योंकि नहीं बोलेंगे तो कल को वे आपके लिए आएंगे और तब बोलने वाला कोई नहीं बचेगा। अंबेडकर दलितों और मुस्लिमों दोनों को अल्पसंख्यक और उत्पीड़ित मानते हुए उनकी एकता की बात करते थे। आज एक बड़ी एकता की जरुरत है। हमें लोकतंत्र की रक्षा के लिए उत्पीड़न, बुल्डोजर राज व संविधान पर हमले के खिलाफ लड़ना होगा। 2024 में उत्तर प्रदेश ने जो रास्ता दिखाया उस पर आगे बढ़ना होगा। हम लड़ेंगे और जीतेंगे।
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत चंदन ने कहा कि असहमति व विविधता का सम्मान लोकतंत्र की बुनियाद है। इसके बगैर धर्मनिरपेक्षता स्थापित नहीं हो सकती। आज असहमति का भयंकर दमन हो रहा है। अंबेडकर संविधान के माध्यम से सामाजिक लोकतंत्र व भागीदारी के प्रश्न को सुनिश्चित करना चाहते थे।आज समुदाय विशेष को खौफ में जीने के लिए मजबूर किया जा रहा है। आरएसएस व भाजपा के निशाने पर संविधान है, क्योंकि यह दलित, महिलाओं व अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षक है।
प्रोफेसर शमीम राइनी (चंदौली) ने कहा कि दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में द्वितीय विश्व युद्ध जैसा युद्धोन्माद फैलाया जा रहा है। भारत में जन-जन तक संविधान की प्रस्तावना को पहुंचाने की जरूरत है।
कार्यक्रम का संचालन इंसाफ मंच के संयोजक अफरोज आलम ने किया।
इस बीच, माले महासचिव ने सीजफायर की खबर आने पर एक ट्वीट कर कहा कि चाहे टैरिफ हो, निर्वासन हो या युद्ध विराम, इन दिनों भारत के बारे में खबरें ट्रम्प प्रशासन द्वारा दी जाती हैं और मोदी सरकार स्पष्ट रूप से चुप रहती है। क्या यह भारतीय विदेश नीति का ‘नया सामान्य’ (नीव नॉर्मल) है? हमें तनाव कम करने के लिए अमेरिकी मध्यस्थता की ‘एक लंबी रात’ की आवश्यकता क्यों पड़ रही है?
अरुण कुमार
राज्य कार्यालय सचिव