(प्रतिरोध का सिनेमा अभियान का 71वां और उदयपुर का सातवाँ फ़िल्म फेस्टिवल पूरी तैयारी के साथ उदयपुर के कुम्भा संगीत परिषद् सभागार में संपन्न हुआ जिसमे करीब 20 कलाकारों की उपस्थिति रही. पूरा आयोजन कारपोरेट फंडिंग को नकारते हुए जन सहयोग के बूते बहुत कम धनराशि में आयोजित किया गया और इस वजह से फ़िल्म फेस्टिवल में जमकर संवाद स्थापित हुआ . पेश है इस तीन दिवसीय आयोजन की विस्तृत रपट.)
मेघा चौधरी, रिंकू परिहार
21 फरवरी 2020 : सातवें उदयपुर फ़िल्म फ़ेस्टिवल का पहला दिन
दिल में टीस सी छोड़ जाती है “आनी-मानी” फिल्म की कथा
समाज को आईना दिखाने का काम करती है फिल्में : प्रियंका वर्मा
उदयपुर, सातवाँ उदयपुर फिल्म फेस्टिवल का प्रारम्भ 21फ़रवरी को उदयपुर में कुंभा संगीत परिषद के सभागार में आयोजित हुआ | बुधन थिएटर समूह के कलाकारों ने “ हिटलर” जन गीत की शानदार प्रस्तुति से समारोह का आगाज किया | सातवें फिल्म फेस्टिवल की संयोजक रिंकू परिहार ने बताया कि उदयपुर में 2013 से उदयपुर फिल्म सोसाइटी की मेजबानी में प्रतिरोध का सिनेमा और जन संस्कृति मंच के सहयोग से फिल्म फेस्टिवल के आयोजन प्रारम्भ हुए तथा समय समय पर मोहल्ला स्क्रीनिंग का भी आयोजन किया जाता है |
समारोह की संयोजक मेघा चौधरी ने बताया की इस बार पाँच फीचर फिल्मे और सात दस्तावेजी फिल्मों के अलावा एक नाटक का मंचन और पुस्तक पर चर्चा के भीआयोजन होंगे | तीन दिवसीय फिल्म समारोह का उदघाटन मशहूर फिल्म निर्देशक और शायर गौहर रज़ा करने वाले थे किन्तु वे किसी व्यक्तिगत कारण से नहीं आ पाये | उनकी
निर्देशित एक लघु फिल्म कि स्क्रीनिंग और उनकी नज़मों के पाठ के विडियो प्रदर्शित किए गए जिसमेंं वे अपनी प्रसिद्ध नज़्म “लिबास” का पाठ कर रहे थे | उन्होंने सम्मेलन की सफलता की शुभकामना करते हुए अपना एक वीडियो संदेश भी भिजवाया जिसे प्रदर्शित किया गया | उनकी अनुपस्थिति में समारोह का उदघाटन करते हुए जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के अंग्रेज़ी विभाग
के प्रोफेसर डॉ हेमेन्द्र चंडालिया ने कहा कि जिस दौर में मुख्य धारा का मीडिया पूंजीपतियों और उनकी पिट्ठू सरकारों का प्रतिनिधि हो गया है उससमय ऐसे आयोजन, छोटे अखबार और वैकल्पिक मीडिया ही देश में लोकतन्त्र के वास्तविक पहरेदार हैं | उन्होंने कहा कि प्रतिरोध का स्वर हर व्यवस्था में रहा है मगर आज के दौर में यह न सिर्फ बहुत ज़रूरी हो गया है बल्कि इसका जन जन तक पहुँचना आवश्यक है क्योंकि सत्ता प्रतिष्ठानों द्वारा घृणा और संदेह का जो वातावरण बनाया जा रहा है उसका मुक़ाबला ऐसे ही किया जा सकता है | उन्होंने कहा कि यह बहुप्रतीक्षित आयोजन सिने प्रेमियों के लिए कई
नायाब तोहफे लेकर आया है |
उदघाटन सत्र के बाद बारह बजे 2019 में बनी
फीचर फिल्म ‘आनी – मानी’ दिखाई गई | कोई नागरिक क्या खाये और क्या नहीं जैसे मामलों में सरकारों के मनमाने निर्णय किस तरह एक मासूम परिवार की
ज़िंदगी तबाह कर देते हैं और कैसे भीड़ निरपराध लोगों की हत्या कर देती है, उसे इस फिल्म में बहुत ही मार्मिक अंदाज़ में प्रदर्शित किया गया है |
फिल्म प्रदर्शन के बाद फिल्म अभिनेत्री प्रियंका वर्मा ने फिल्म निर्माण के उद्देश्यों और निर्माण के दौरान हुए अनुभव साझा किए | उन्होंने कहा कि फिल्म बनाने का उद्देश्य समाज को आईना दिखाना था कि हमारे समाज में क्या घटित हो रहा है | उन्होंने कहा कि एक मुस्लिम परिवार में आपसी संबंध ,परिवार के भीतर के संघर्ष और तनाव वैसे ही हैं जैसे अन्य समाजों में | फ़िल्म का निर्देशन अरशद फ़हीम ने किया है ।
दोपहर के भोजन के बाद साढ़े तीन बजे दरियो फो के नाटक “ एक्सीडेंटल डैथ ऑफ एन अनारकिस्ट” का मंचन किया गया | इसकी प्रस्तुति अहमदाबाद के नाट्य
समूह बूधन थिएटर के कलाकारों द्वारा की गई | गुजरात की डीनोटिफाइड ट्राइब छारा के इस समूह ने ज़बरदस्त अभिनय करते हुए पुलिस और न्याय व्यवस्था की पोल खोल कर सामने रख दी | एक निरपराध नागरिक किस प्रकार न सिर्फ अपराधी साबित कर दिया जाता है बल्कि व्यवस्था से लड़ते हुए अपनी जान तक दे देता है , इसका बेहतरीन चित्रण नाटक में किया गया | नाटक के बाद
चर्चा में समूह के कलाकारों ने दर्शकों के प्रश्नो के जवाब भी दिये |
सायंकाल पाँच बजे से साढ़े सात बजे तक “ द बेटल ऑफ अल्जीयर्स” की स्क्रीनिंग तथा चर्चा की गयी |पहले दिन नगर के अनेक नाट्य कर्मियों और आम जन की उपस्थिति रही जिनमें प्रसिद्ध रंगकर्मी भानु भारती , विलास जानवे ,
पत्रकार हिम्मत सेठ , डॉ जेनब बानु , शायर आबिद अदीब , माकपा के राजेश सिंघवी , मोहन लाल सुखड़िया विश्वविद्यालय की डॉ मीनाक्षी जैन, कवि अशोक जैन , डॉ फरहत बानो , डॉ प्रमिला सिंघवी , प्रोफ़ेसर सुधा चौधरी , वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण व्यास ,प्रो आर एन व्यास , प्रो एल आर पटेल ,डी एस पालीवाल, कमर इकबाल , प्रेम चंद जैन आदि प्रमुख हैं |
प्रतिरोध के सिनेमा को केंद्र में रख कर उदयपुर में इस से पहले छह फिल्म फेस्टिवल आयोजित किए जा चुके हें जो काफी लोकप्रिय हुए हें | महत्वपूर्ण बात यह है कि अब तक के सभी आयोजन जन सहयोग से आयोजित होते रहे हें और
दयपुर के लोगों ने बढ़ चढ़ कर इनमे भागीदारी की है |
22 फरवरी 2020 : सातवें उदयपुर फ़िल्म फ़ेस्टिवल का दूसरा दिन
जनाधिकारों और सामाजिक मुद्दों पर केन्द्रित रहा उदयपुर फ़िल्मोत्सव का दूसरा दिन:
‘जब तक जातिवादी व्यवस्था कायम है भारत में संवैधानिक अधिकारों की प्राप्ति दुश्वार रहेगी’ – भँवर मेघवंशी
उदयपुर फ़िल्म सोसायटी और जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित प्रतिरोध का सिनेमा के 7 वे उदयपुर फिल्मोत्सव के दूसरे दिन का आगाज़ सुप्रसिद्ध दलित चिन्तक एवं एक्टिविस्ट भँवर मेघवंशी की चर्चित किताब- मैं एक स्वयंसेवक था पर जानीमानी दार्शनिक प्रोफ़ेसर सुधा चौधरी द्वारा की गयी बातचीत से हुआ । इस सन्दर्भ में चर्चा के दौरान भंवर मेघवंशी ने कहा कि धर्मान्धता तथा मनुवादी जातिवादी व्यवस्था के पूर्वाग्रह भारत में सच्चे संवैधानिक जनतांत्रिक समाज के निर्माण में रोड़ा बने हुए हैं । अपनी आत्मकथात्मक यात्रा के संबंध में उनका कहना था कि वे अपने एक शिक्षक के आग्रह पर देश सेवा के आदर्शों से प्रेरित होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में जाने लगे, यहाँ तक कि वे 1989 में राम जन्मभूमि के लिए हुई कारसेवा में शामिल हुए थे परन्तु संघ में उन्होंने उनके घोषित आदर्शों देश में रहने वाले सभी हिन्दू हैं और संघ सभी हिन्दुओं को समान दृष्टि से देखता है जैसे दैनंदिन शाखाओं और अभ्यास वर्गों में देश में ही निवास करने वाले अलपसंख्यक समुदायों के प्रति घृणा अभियान और व्यवहार में वंचित समाज के प्रति अपमानजनक एवं भेदभावपूर्ण रवैय्ये के चलते ज़ल्दी ही इससे मोहभंग हो गया परन्तु इस दौर में उन्होंने आर.एस.एस. की हिंदुत्व वादी परियोजना को नज़दीकी से अनुभव करने का मौक़ा मिला और इससे भारतीय संविधान के विरुद्ध और सामुदायिक विभाजनकारी होने के चलते आम जनता के सामने इस सच्चाई को उजागर करने का निर्णय लिया. उन्होंने कहा कि धर्म व्यक्तिगत आस्था का मामला है पर इसे आज की राजनीति में हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है.
दूसरे सत्र में हिमाचल प्रदेश की सतलज पनबिजली परियोजना से हिमालय को हो रही क्षति और स्थानीय लोगों के विस्थापन की त्रासदी को दर्शाती दस्तावेज़ी फ़िल्म हो गयी पीर पर्बत सी को प्रस्तुत किया गया । 8 वर्ष के अथक प्रयासों से इस फ़िल्म को साकार करने वाले फिल्मकार सुब्रह कुमार साहू ने दर्शकों के सवालों के जवाब देते हुए कहा कि पूँजीपतियों की मुनाफाखोरी बिजली की भूख को मिटाने में हमारा पर्यावरण और भारत का सिर कहा जाने वाला हिमालय विनाश के हत्थे चढ़ा रहा है ।
तीसरा सत्र पत्रकार गीता सेशु द्वारा दी गयी दृश्य श्रव्य प्रस्तुति- ‘रीपील सीडीशन’ पर केन्द्रित था जिसके तहत राजद्रोह (भारतीय दंडसंहिता की धारा 124 ए ) के क़ानून का इस्तेमाल किस तरह से सरकार पर सवाल उठाने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता, विद्यार्थी और नौजवानों पर किया जा रहा है इसके उदाहरण पेश किए. उनका कहना था कि सीडीशन का अर्थ राजद्रोह है पर आज उसे देशद्रोह कहा जा रहा है. जिन अंग्रजों ने यह क़ानून बनाया था उन्होंने उसे अपने देश से हटा दिया है पर हम आज भी इस औपनिवेशिक बोझ को ढो रहे हैं ।
भोजनोपरांत के सत्र में भारत की गंगा जमनी तहजीब का उत्सव मनाती युसूफ सईद की फ़िल्म ‘बसंत’ को दर्शकों ने खूब सराहा. हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों में बसंत का उत्सव खुशी रंग और सुरों से जुड़ा है. अगले सत्र में आतिश इन्द्रेकर द्वारा बनाई गयी फ़िल्म ‘भीड़तंत्र’ दिखाई गयी अहमदाबाद के वाड़ज में दिनदहाड़े उत्तेजित भीड़ द्वारा सिरोही जिले के कालबेलिया समाज की शांतिदेवी की निर्मम ह्त्या की गयी । इस भीड़ में बच्चे भी थे और इस वाकये के दहशत में इस समुदाय की रोजीरोटी लगभग बंद हो गयी है ।
राजस्थान के प्रसिद्ध लेखक स्वयंप्रकाश को श्रद्धांजलि देते हुए हिमांशु पंडया ने उनकी कहानी ‘नीलकांत का सफ़र’ का पाठ किया. और दूसरे दिन की शाम इस साल के उत्कृष्ट फीचर फ़िल्म के राष्ट्रीय सम्मान से नवाज़ी गुजराती फ़िल्म ‘हेल्लारो’ को दर्शाया गया । संगीत और नृत्य से सराबोर इस फ़िल्म ने दर्शकों को मोह लिया. इस फ़िल्म के निर्माता मीत जानी इस समारोह में मौजूद थे । महिलाओं की आज़ादी की आवाज़ को बुलंद करती इस फ़िल्म के लिए दर्शकों ने उनका अभिनन्दन किया ।
22 फरवरी 2020 : सातवें उदयपुर फ़िल्म फ़ेस्टिवल का तीसरा दिन
नफरत और अफवाहों का जवाब प्रेम और तर्क से ही दिया जा सकता है – यूसुफ़ सईद
संघर्ष की विरासतों को संजोया गया सातवें उदयपुर फिल्मोत्सव के आख़िरी दिन
सोशल मीडिया पर छाये उन्माद से घबराकर आँखें नहीं मूंदी जा सकती । न्याय और भाईचारे के पक्ष में खड़े लोगों की ये जिम्मेदारी है कि वे इंटरनेट पर फैलाई जा रही नफरत और अफवाहों का मुकाबला सद्भाव और तर्कों के सहारे करें. उपरोक्त विचार प्रख्यात दस्तावेजी फिल्मकार एवं मीडिया एक्टिविस्ट यूसूफ सईद ने व्यक्त किये । उन्होंने सातवें उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल के अंतिम दिन एक कार्यशाला में प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया कि वे किसी फेक न्यूज़ को कैसे पहचानें, तथ्यों का सत्यापन कैसे करें, ट्रॉल्स द्वारा दी जाने वाली गीदड़ भभकियों का सामना कैसे करें और अपनी बात को अधिक दूर तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया अल्गोरिद्म का प्रयोग कैसे करें ।
उदयपुर फ़िल्म सोसायटी की संयोजक रिंकू परिहार ने बताया कि फिल्मोत्सव के तीसरे दिन ‘गुजरात खेडूत समाज’ द्वारा निर्मित और दक्षिण छारा द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘बुलेट’ दिखाई गयी । ‘बुलेट’ में अहमदाबाद-मुम्बई के मध्य चलने वाली बुलेट ट्रेन परियोजना के प्रभावों का आकलन किया गया है । दक्षिण छारा ने इस अवसर पर दर्शकों के साथ संवाद करते हुए कहा कि हमारे विकास की सम्पूर्ण अवधारणा में खेती-किसान और आम आदमी कहीं पीछे छूट गया है और सारा विकास पूंजीपतियों के हितों को ध्यान में रखकर हो रहा है । प्रख्यात इतिहासकार उमा चक्रवर्ती द्वारा बनायी गयी फ़िल्म ‘प्रिजन डायरीज़’ में कन्नड़ की प्रख्यात अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता स्नेहलता रेड्डी की डायरी के माध्यम से उनके जीवन के विविध पक्षों को सामने रखा गया. ज्ञातव्य है कि स्नेहलता रेड्डी की मृत्यु आपातकाल के दौरान जेल में रहते हुए जनवरी, 1977 में हुई थी ।
एश्वर्या ग्रोवर निर्देशित ‘मेमोयर्स ऑफ़ सायरा एंड सलीम’ एक अन्य महत्त्वपूर्ण फ़िल्म थी जिसमें एक नया प्रयोग करते हुए किसी इंसान को न दिखाकर सिर्फ गुलबर्ग सोसायटी की ध्वस्त इमारतों को और बिखरे अवशेषों को दिखाकर उनके माध्यम से साम्प्रदायिक दंगों की क्रूरता को चित्रित किया गया ।
चित्तौड़गढ़ फ़िल्म सोसायटी के सदस्य एवं ब्लॉगर महेंद्र नंदकिशोर द्वारा कृशन चंदर की कालजयी कहानी ‘जामुन का पेड़’ का पाठ किया गया जिसका दर्शकों ने खूब आनंद लिया. कृशन चंदर द्वार साठ के दशक में लिखी गयी यह प्रसिद्द कहानी हाल ही में आईसीएसई बोर्ड द्वारा सिलेबस से हटाये जाने के कारण चर्चा में रही है ।
दोपहर बाद के सत्रों में इसी वर्ष आयी दो महत्त्वपूर्ण फीचर फ़िल्में दिखाई गयीं जिनमें पहली थी प्रभाष द्वारा निर्देशित ‘मेरा राम खो गया’, इस फ़िल्म में तीन समानांतर कथाओं के माध्यम से राम के नाम की जनमानस में सहज उपस्थिति और राजनीतिक दलों द्वारा उनके नाम के जरिये अपनी राजनीति को चमकाने की चालों को उजागर किया गया है. अंतिम फ़िल्म प्रतीक वत्स की ‘ईब आले ऊ’ एक ऐसे युवक के बारे में थी जिसे राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार के साउथ ब्लाक स्थित कार्यालय में बन्दर भगाने की नौकरी मिली है । आश्चर्जनक सत्य यह है कि यह निर्देशक की कल्पना नहीं है, वाकई में दिल्ली में इस नौकरी को करने वाले लोग हैं । फ़िल्म में कुछ ऐसे वास्तविक लोगों को भी शामिल किया गया है. बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल में चयनित इस फ़िल्म की कॉमिक ट्रेजेडी को दर्शकों ने खूब सराहा ।
उदयपुर फ़िल्म सोसायटी की संयोजक मेघा चौधरी और रिंकू परिहार ने बताया कि पूर्णतः जनसहभागिता से आयोजित हुए इस फेस्टिवल में जनता के उन मुद्दों को उठाने वाली फिल्मों को ही चुना गया था जो मुख्यधारा की मीडिया में सायास छोड़ दिए जाते हैं । यदि कुछ फिल्मों ने तंत्र का दमनकारी और सामन्ती-पूंजीपति चेहरा दिखाया तो कुछ फिल्मों ने जनता की अदम्य जिजीविषा और संघर्ष क्षमता को भी रेखांकित किया । उन्होंने कहा कि हमारा सफर आगे भी पूरे साल छोटी-छोटी मोहल्ला, स्कूल, कॉलेज स्क्रीनिंग्स के जरिये जारी रहेगा ।
सातवें उदयपुर फ़िल्म फ़ेस्टिवल की सबसे ख़ास बात थी दर्शकों और फ़िल्म के निर्देशकों और दूसरे कलाकारों के बीच सीधा संवाद जिसकी वजह से कई बार सत्र थोड़े लम्बे भी खिंच जा रहे थे जिसके संतुलन के लिए खाने और चाय के ब्रेक के समय को भी इस बातचीत के लिए इस्तेमाल कर लिया जा रहा था । पूरे तीन दिन उदयपुर फ़िल्म सोसाइटी के युवा सदस्य अपने दर्शको से सहयोग की अपील करते दिखे और इस वजह से सहयोग के डब्बे में अच्छा सहयोग भी मिला ।
आयोजन में ब्रेक के समय का रचनात्मक इस्तेमाल घुमंतू पुस्तक मेले के स्टाल के जरिये संभव हुआ जहां नवारुण सहित हिंदी के कई दूसरे प्रकाशनों ने करीब सौ टाइटल दर्शकों को आयोजन स्थल में रोके रखने में सफल रहे .
गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों के लिए दो दिन के उत्सव के आयोजन की घोषणा के साथ सातवें उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल का समापन हुआ ।
(रिंकू परिहार और मेघा चौधरी
संयोजक , उदयपुर फ़िल्म सोसाइटी )