समकालीन जनमत

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ज़ेर-ए-बहस

‘ गाँवों के चेहरों से नूर चुरा लेती हैं बंदूकें, माएं बिलखती हैं जवान बेटों के जनाज़े देखकर ’

समकालीन जनमत
  अमित ओहलान   “चौबर दे चेहरे उत्ते नूर दसदा नि ऐदा उठुगा जवानी च्च जनाज़ा मिठिये.” जिस घर में जवान मौत हो जाए वो...
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