कविताजनमत प्रज्ञा की कविता व्यक्ति पर समाज और सत्ता के प्रभाव से उठने वाली बेचैनी हैसमकालीन जनमतSeptember 29, 2019September 29, 2019 by समकालीन जनमतSeptember 29, 2019September 29, 201903414 निकिता नैथानी ‘कविताएँ आती हैं आने दो थोड़ी बुरी निष्क्रिय और निरीह हो तो भी..’ इस समय जब लोग आवाज़ उठाने और स्पष्ट रूप से...
कविता यथार्थ और स्वप्न के लिए बराबर खुली हुई आँख हैं निकिता की कविताएँसमकालीन जनमतMarch 24, 2019March 28, 2019 by समकालीन जनमतMarch 24, 2019March 28, 20198 3402 ज्योत्स्ना मिश्र दिये कहाँ जलाएं आखिर ?रोशनी से जगमगाते घरों में या अंधेरे से भरे हुए दिलों में निकिता नैथानी गढ़वाल से एक युवा जागरूक...