समकालीन जनमत

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शख्सियतस्मृति

भुलाए नहीं भूलेगा यह दिन

समकालीन जनमत
कमरे में चौकी पर बैठे थे नागार्जुन. पीठ के पीछे खुली खिड़की से जाड़े की गुनगुनी धूप आ रही थी. बाहर गौरैया चहचहा रही थी....
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