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पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव: मामूली लोगों का गैर मामूली संघर्ष- दो

जयप्रकाश नारायण 

भारत का सबसे बड़ा राज्य होने के कारण उत्तर प्रदेश का चुनाव महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसलिए उत्तर प्रदेश के चुनाव की स्थिति की गंभीरता से छानबीन करनी होगी।

भारत की खासियत है वर्ण आधारित समाज का अस्तित्व। जिसमें सैकड़ों जातियां, उपजातियां श्रेणी क्रम में रहती हैं। दूसरा बहुधर्मी,  बहुभाषी विविध जीवन-प्रणाली और रंग-रूप वाला महादेश है।

इस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा की सबसे क्रूर हिंदू चेहरे वाली सरकार है। इसकी 5 साल की नीतियां मुक्तसर में इस प्रकार है।

राज्य मशीनरी का अपने विरोधियों के प्रति खुलकर दुरुपयोग।  सांप्रदायिक भाषा शैली के साथ हिंदू धर्म के प्रति प्रतिबद्धता की खुली घोषणा । हिंदू आस्थाओं, विश्वासों के आधार पर कानूनों का निर्माण और अल्पसंख्यकों सहित विरोधियों पर क्रूरता पूर्वक लागू कर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को हाशिए पर ले जाना। उनका दानवीकरण करना।

हिंदू धर्म के  त्योहारों, स्थानों, प्रतीकों को राज्य के स्तर पर मान्यता देना और धर्मनिरपेक्ष राज्य के उसूलों से घृणा करना।

राज्य द्वारा अयोध्या और काशी में मंदिरों के निर्माण, कुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों को राजकीय आयोजनों में बदलना और मुस्लिम  नामों वाली जगहों को चिन्हित करके उन्हें नये अर्थ और काल्पनिक इतिहास से जोड़कर नयी धार्मिक पहचान देना।

गोरक्षा जैसे कानून बनाना जिसका प्रभाव पूरे समाज पर पड़ रहा है। लेकिन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इसकी धार मुस्लिमों की तरफ  केंद्रित है ।

योगी सरकार ने आते ही रोमियो स्क्वायड, गौ रक्षा कानून, लव जिहाद और माफिया के नाम पर एक तरफा मुस्लिमों का उत्पीड़न। शिक्षा स्वास्थ्य और कृषि की उपेक्षा। संस्थानों  के निजीकरण को तीव्र आवेग देना। साथ ही,  अपराध नियंत्रण के नाम पर फर्जी मुठभेड़ों में नागरिकों की हत्या को मुख्यमंत्री का खुला संरक्षण प्राप्त होने से सरकार कटघरे में खड़ी है।

प्रशासनिक मशीनरी द्वारा नागरिकों की निजी संपत्ति को छति पहुंचाना,  बर्बाद करना यानी बदले की कार्रवाई को चरम स्तर पर ले जाना, जो पिछले पांच वर्ष में राज्य सरकार के क्रियाकलाप के स्थाई भाव बन चुके हैं।

डॉ कफील, कप्पन,  हाथरस की बेटी, उन्नाव बलात्कार कांड, स्वामी चिन्मयानंद को छोड़ना, हिरासती मौतें और स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा अपने  आपराधिक मुकदमों को वापस लेना। असहमत अधिकारियों का दमन करना जैसे अमिताभ ठाकुर आदि।

इन सब घटनाओं ने लोकतंत्र और सरकार की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाई है। ये चंद  घटनाएं हैं, जिनके कारण सरकार के खिलाफ जनविरोध ने समय मिलते ही विस्फोटक रूप ले लिया है।

इस बीच रोजगार की मांग करते हुए छात्रों पर राजकीय दमन ने सारी सीमाओं को तोड़ दिया । इलाहाबाद में छात्रों के कमरे में घुस कर बर्बर पिटाई ने उत्तर प्रदेश के हर नागरिक के दिल-दिमाग को दहला दिया है।

अधिकतर छात्र पिछड़ी, दलित जातियों से आते हैं। इन पर पुलिस की बर्बरता जिन्होंने देखी है, वह योगीराज को निश्चित ही उसकी मनुष्य-विरोधी प्रवृत्ति को गहराई से महसूस किया है।

किसान आंदोलन की विजय के बाद किसानों के आक्रामक राजनीतिक अभियान  और लखीमपुर में किसानों के नरसंहार ने सरकार के पतन  की स्क्रिप्ट लिख दी थी।

योगी सरकार सांप्रदायिक  विभाजन, राज्य आतंक और प्रशासनिक निर्दयता के बल पर भय का वातावरण बनाकर चुनाव में जीतना चाह रही थी। लेकिन किसान आंदोलन ने संघ-भाजपा के नैरेटिव  को ही ध्वस्त कर दिया है।

उत्तर प्रदेश में गौ रक्षा के नाम पर योगी सरकार ने किसानों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।पशु बाजार को ध्वस्त कर डाला। फसलों को आवारा पशुओं के हवाले कर दिया।  किसान की जिंदगी को नारकीय बना दिया।

किसान सपरिवार रात-रात भर  खेतों की रखवाली करने के लिए मजबूर हो गये। योगी सरकार ने अपनी नीतियों से आवारा पशुओं की फौज उसी तरह से खड़ी कर दी है जैसे हिंदू धर्म के रक्षा नाम पर बने लंपट गिरोह गौ रक्षा और लव जिहाद के नाम पर माॅब लिंचिंग करते हुए घूम रहे हैं। वे अपराध करने के लिए और आवारा पशु फसल चरने के लिए स्वतंत्र कर दिये गये हैं।

यह सरकार हिंदुत्व के एजेंडे के नाम पर गाय को एक सांप्रदायिक हथियार बनाकर किसानों को बर्बाद करने की तरफ बढ़ी थी। जो उत्तर प्रदेश के चुनाव का एक केंद्रीय एजेंडा है। अब तो इस संकट की भयावहता को,  इसके परिणामों को मोदी और योगी सरकार  तथा राजनीतिक दल भी स्वीकार करने लगे हैं।

लेकिन मोदी का घड़ियाली आंसू बहाना सिर्फ किसानों को धोखा देने के अलावा और कुछ नहीं है।  क्योंकि गौ भक्ति के पाखंड के बिना संघ-भाजपा की राजनीति एक दिन भी चल नहीं  सकती है।

लाख प्रयास के बावजूद भी मोदी,  अमित शाह और योगी को मुस्लिम विरोधी विभाजनकारी एजेंडे को आगे ले जाने में कोई कामयाबी नहीं मिल रही है।

चूंकि गांवों में किसानों का भाजपा विरोधी आक्रामक राजनीतिक अभियान  युवा, छात्रों के रोजगार के मांग के साथ जुड़कर संघ और योगी सरकार की आपराधिक राजनीति को ध्वस्त करने में कामयाबी हासिल कर ली है। इसलिए, गांव-गांव से भाजपा नेताओं, कार्यकर्ताओं, मंत्रियों को खदेड़ा जा रहा है। गांव में घुसने से रोका जा रहा है। यह वस्तुतः भाजपा सरकार द्वारा  पिछले दिनों जनता के साथ हुए क्रूर व्यवहार का प्रतिकार ही है।

भाजपा विरोधी छिपी गति को संघ-भाजपा सहित विपक्षी दल भी जनवरी के महीने तक भांप नहीं पाये थे। इस कारण राजनीतिक पहल कदमी लेने में उन्हें जनता के सक्रिय पहल  का इंतजार करना पड़ा।

मेहनतकश जनता की पहलकदमी और उन्नत हो रही राजनीतिक लोकतांत्रिक चेतना  से सरकारों सहित जन सरोकार खो चुके विपक्षी पार्टियां भी भयभीत होती हैं।

इसलिए शासक वर्ग और उसके प्रचारतंत्र भी अपने हर संभव अभियानों में जनता की सक्रियता को दबाने की कोशिश करते हैं।

आप उत्तर प्रदेश में आये संघ-भाजपा नीत सरकार विरोधी महान जन उभार को प्रचार तंत्र और कारपोरेट मीडिया संस्थानों के साथ राजनीतिक विश्लेषकों के चिंतन में भी यह प्रवृति देख सकते हैं।

वे जातियों के समीकरणों, संख्या बल और अवसरवादी नेताओं,  राजनीतिक दलों के गठजोड़ को चुनाव का प्रधान कारक बना रहे हैं।जो  चुनाव आते ही भाजपा सरकार में मलाई काटने के बाद बाहर आ गए हैं।

जिसमें अधिकतर पिछड़ी जातियों के मंत्री थे। जिससे बुर्जुआ राजनीतिक तंत्र और मीडिया को तुरंत चुनाव विश्लेषण का एजेंडा मिल गया।

जाति केंद्रित गठबंधन मूलक सामाजिक समीकरणों  और जातियों के ध्रुवीकरण की चर्चा सामने ला दी गयी। इसके द्वारा जन मुद्दों को दबाने, छात्रों, किसानों, नौजवानों, अल्पसंख्यकों की राजनीतिक सक्रियता को पीछे ढकेलने और प्रदेश की जनता में जिंदगी के सवालों से जुड़कर हो रहे सकारात्मक चेतनागत राजनीतिक विकास और उपलब्धियों को निगलने की प्रवृत्ति दिख रही है ।

आप याद रखें कि किसान अपने खेतों की रखवाली के लिए बीजूका खड़ा करते हैं और तब हाका लगाते हैं।  हिंसक जानवरों को सामूहिक हाके से खदेड़ देते हैं और उनसे अपनी फसलों की सुरक्षा कर लेते हैं ।

 

योगी सरकार की कृषि और किसान विरोधी नीतियों के कारण पैदा हुए आवारा पशुओं के बड़े संकट से जूझते हुए किसानों ने राजनीतिक गठबंधन के बिजूका को आगे कर दिया है। वह समझ रहे हैं, कि उन्हें अपनी खेती-किसानी, रोटी, रोजगार कारपोरेट हाथों में जाने से बचाने के लिए संगठित होकर जन संघर्षों के रास्ते से ही आगे बढ़ना होगा।

जो मौसम विज्ञानी हैं, उन्हें भी समझ लेना चाहिए कि किसान अगर हांका लगा कर  क्रूर व सांप्रदायिक भाजपा सरकार को खदेड़ सकते हैं तो उन्हें भी सावधान होकर जनता के वास्तविक मुद्दों की तरफ लौटना होगा।

जब तीन कृषि कानूनों की वापसी खेती-किसानी  और अपनी जिंदगी बचाने के लिए किसान संगठित होकर हांका लगा रहे थे तो ये  मौसम विज्ञानी अपने सुरक्षित घरों में बैठे हुए तमाशा देख रहे थे ।

अब जब भाजपा सरकार रक्षात्मक हो गई है। तब  यह  सड़कों पर आने की हिम्मत जुटा सके। आज बेरोजगारी, महंगाई, सरकारी कर्मचारियों और दिहाड़ी मजदूरों की दुर्दशा, पेंशन, निजीकरण, खेती का संकट, आत्महत्या, महिलाओं, दलितों पर दमन, आरक्षण के संवैधानिक अधिकार,  अल्पसंख्यकों के जान-माल की सुरक्षा चुनाव का खुला एजेंडा है।

हर परिवर्तनकारी ताकतों को इस एजेंडे को समझते हुए इस चुनाव में पहल कदमी लेकर भविष्य की लड़ाई को और मजबूत करने के लिए अपना योगदान देना चाहिए। नहीं तो पराजित भाजपा भी जीते हुए राजनीतिक दलों के सारे अभियान को असफल कर देगी और उन्हें फिर रक्षात्मक स्थिति में जानकर उत्तर प्रदेश सहित पूरे भारत को अस्थिर करने के षड्यंत्र की तरफ बढ़ जाएगी।

आज हर जन पक्षधर,  लोकतांत्रिक व्यक्ति और संगठन को संविधान, लोकतंत्र के साथ जनता के जीवन की बेहतरी के लिए नीतिगत सवालों के एजेंडे पर खड़ा होना है।

सरकार और मीडिया संचालित अभियानों के हवा हवाई विश्लेषकों से बचते हुए वास्तविक जमीनी धरातल पर बदल रहे गति विज्ञान को समझना और अपनी दिशा तय करनी होगी। यही आज चुनाव में जीत के लिए हमारे कार्यभार और हमारी दिशा है।

इस दिशा पर चलकर सांप्रदायिक विघटनकारी संघ-भाजपा नीत सरकार को पराजित कर फिर से एक बार संघात्मक भारतीय गणतंत्र के अपराजेय जिजीविषा की नयी इबारत लिखनी होगी और यह कार्यभार मामूली लोगों के गैर मामूली संघर्षों की ताकत पर खड़ा होकर ही अंजाम दिया जा सकता है। वर्तमान इतिहास ने यही शिक्षा दी है।

(जयप्रकाश नारायण मार्क्सवादी चिंतक तथा अखिल भारतीय किसान महासभा की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रांतीय अध्यक्ष हैं)

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