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सिवान : डबल गुंडाराज की आशंकाओं के बीच त्रिकोणीय मुकाबला

एक नजर सिवान लोकसभा के अतीत पर

सिवान मेरा आना जाना रहा है लेकिन इस बार लगभग 10 साल बाद वापस लौटा हूं. शहर में बहुत बदलाव नहीं दिखता. हां कुछ शॉपिंग मॉल्स ,कुछ बड़ी कंपनियों के शोरूम, 1-2 फ्लाईओवर जरूर बने हैं. बस अड्डा वैसा ही खस्ता हाल है. लंबे समय से सरकारी सुता मिल को खोलने की मांग अब भी की जा रही है. चीनी मिलें बंद पड़ी हैं. कोई नया कॉलेज नहीं खुला है बल्कि कल 8 को भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सभा थी जिसमें कुर्मी बहुल गांव बड़कागांव के नौजवानों ने 2014 में हाई स्कूल को कॉलेज बनाने के वादे पर उनको घेरा और गो बैक का नारा लिखी तख्तियां भी उनकी सभा में दिखाईं.

पूर्व सांसद और कुख्यात अपराधी शहाबुद्दीन के सजायाफ्ता होकर तिहाड़ जेल जाने और चुनाव लड़ने पर रोक के बाद शहर के आमजन जीवन के दैनंदिन पर प्रभाव पड़ा है। एक शहर जो शाम ढलते ही सन्नाटे की गोद में चला जाता था, फुसफुसाहट ही जहां जोर से बोलती थी, शक और भय एक स्थाई भाव की तरह था, जरूर जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और लोकप्रिय नेता कॉमरेड चंद्रशेखर और उनके साथी श्याम नारायण यादव की शहादत के बाद चले प्रतिरोध आंदोलनों ने इस माहौल को बदलने में अपनी भूमिका निभाई है. 1999 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के लोकप्रिय नेता अमरनाथ यादव ढाई लाख से ज्यादा वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे और आतंक राज की समाप्ति का एलान सिवान ने कर दिया था। लेकिन दूसरी तरफ राष्ट्र और राज्य में जो राजनीति भाजपा और जदयू के गठजोड़ से उभरी उसने इस मौके का फायदा उठाते हुए एक बार फिर सिवान को सामंती और धुर सांप्रदायिक स्थितियों की तरफ ले जाने की कोशिशें तेज कर दीं।

भाकपा माले प्रत्याशी अमरनाथ यादव और भाकपा माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य

सिवान में कभी रामनवमी के नाम पर ,कभी यज्ञ, कभी कलश यात्रा जैसे धार्मिक तरीकों और तोगड़िया से लेकर अब बलात्कार के आरोप में सजायाफ्ता आसाराम बापू तक के कार्यक्रमों से पुराने सामंती पिछड़े मूल्य को स्थापित करने के साथ एक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की जाने लगी । उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ के प्रभाव क्षेत्र से लगे होने के कारण उसका भी इस्तेमाल किया जाने लगा और खासकर उच्च जाति के दबंगों के नेतृत्व में हिंदू युवा वाहिनी की कार्यवाही तेज की जाने लगी।

इस बीच चुनावों में 2004 में शहाबुद्दीन की ही जीत हुई और ओम प्रकाश यादव ने यादव मतों के सहारे अपनी मजबूत स्थिति दर्ज कराई । 2009 में सजा सुनाए जाने के कारण शहाबुद्दीन की पत्नी हिना साहब को राजद ने चुनाव लड़ाया.  वह दूसरे स्थान पर रहीं जबकि निर्दलीय लड़े ओम प्रकाश यादव ने जीत दर्ज की. 2014 में भाजपा की प्रचंड लहर में श्री यादव भाजपा के प्रत्याशी बने और फिर एक बार उन्होंने हिना साहब को हरा जीत दर्ज की. भाकपा माले के प्रत्याशी अमरनाथ यादव तीसरे स्थान पर रहे. इस बीच भाकपा माले के विधायक भी विधानसभा चुनाव में हारते-जीतते रहे। लेकिन भाजपा की केंद्र में सरकार बनने के बाद संघ और भाजपा के लिए सिवान एक ऐसी जगह थी जहां से वे अपने उग्र हिंदुत्व के एजेंडे को धार देकर उसका राष्ट्रव्यापी प्रचार कर सकते थे। ऐसे में उसके प्रतिनिधि चेहरे के रूप में उन्होंने जिले के नए बाहुबली अजय सिंह को आगे किया ।

रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र से उसकी मां जगमातो देवी जदयू से विधायक थीं । अजय सिंह, शहाबुद्दीन के पराभव के साथ साथ सामंती लॉबी के भीतर से नए चेहरे के बतौर जिसे सत्ता का समर्थन था, उभर कर आया । वहीं भाजपा का वर्तमान जिलाध्यक्ष मनोज सिंह जो कभी शहाबुद्दीन के साथ किए गए तमाम अपराधों में साथी और सह अभियुक्त था, माफी मांग कर सरकारी गवाह बन गया है।

चुनाव का नया दौर

इस चुनाव में नाटकीय मोड़ तब आया जब समझौते में अपनी जीती हुई सीट और वर्तमान सांसद ओम प्रकाश यादव का टिकट काटकर भाजपा ने यह सीट जदयू की झोली में डाल दी. जदयू ने हिंदू युवा वाहिनी के नेता- अपराधी अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह को चुनाव मैदान में उतार दिया. कविता सिंह जगमातो देवी की मौत के बाद उपचुनाव में विधायक बनी थी. जदयू के इस नेता के प्रचार में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आकर जा चुके हैं.

टिकट ना मिलने से विक्षुब्ध ओम प्रकाश यादव ने बयान जारी कर सीधा आरोप भाजपा के जिलाध्यक्ष मनोज सिंह पर लगाया है कि उसकी राजद और शहाबुद्दीन से सांठगांठ है और उसने ही उसका टिकट कटवाया है. यह सब बातें तो स्थानीय स्तर पर हैं ही लेकिन मूल बात यह है कि ओम प्रकाश यादव संघ और भाजपा के उस स्तर के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के उद्देश्य को पूरा करने में असफल रहे जिसे वह सिवान से एंटी मुस्लिम एजेंडे के सहारे परवान चढ़ाना चाहती थी. इसीलिए जदयू के खाते में यह सीट डालकर उसने अपने सबसे विश्वसनीय चेहरे को मैदान में उतार दिया है. इससे वह अपने मूल एजेंडे को आगे करने में सफलता हासिल करने के साथ ही, अभी पिछले चुनावों तक राजपूत लॉबी का एक हिस्सा जो शहाबुद्दीन को वोट करता था, उसको भी अपने पाले में कर लेने की कोशिश में है.

दूसरी तरफ राजद प्रत्याशी इस बार लालू यादव के जेल में होने से मिलने वाली सहानुभूति, महागठबंधन का प्रत्याशी होने के कारण विभिन्न जातीय समीकरणों को अपने पक्ष में साधने और यादव मतदाताओं में ओम प्रकाश यादव का टिकट कटने से उभरे विक्षोभ को अपने पक्ष में करने की जी तोड़ कोशिश करती दिख रही हैं । यह उनके चुनाव अभियान में साफ-साफ देखा जा सकता है। तेजस्वी यादव उनके लिए सभा करके जा चुके हैं। 8 तारीख को शरद यादव, जीतन राम मांझी, मनोज झा और मुकेश साहनी के सभा करने के बाद 10 तारीख को तेजस्वी यादव फिर से शत्रुघ्न सिन्हा के साथ आ रहे हैं।

हिना शहाब के प्रचार में मुस्लिम समुदाय के लोगों को जानबूझकर पीछे रखा जा रहा है और दूसरे समुदाय के विभिन्न स्थानीय नेताओं को तरजीह दी जा रही है। शहर के दलित बस्तियों और ग्रामीण इलाकों में भी राजद के एमएलसी रहे परमात्मा राम के साथ राजद दलित वोटों में हिस्सेदारी की कोशिश कर रही है।

इस चुनाव में नया क्या है

भाकपा माले और उसके प्रत्याशी अमरनाथ यादव का दलितों, गरीबों के पक्ष में सामंती दबदबे और अपराधियों से लड़ने, शहादत देने का लंबा इतिहास रहा है. मुस्लिम समुदाय से वोट ना मिलने के बावजूद किसी भी सांप्रदायिक घटना के खिलाफ सिवान और देशभर में कहीं भी अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों का जबरदस्त प्रतिवाद वह धर्म निरपेक्षता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण डटकर करती रही है। हाल के दिनों में भी सिवान में ऐसी किसी भी कोशिश के खिलाफ वह लगातार सड़कों पर उतरी है। लोकसभा चुनाव में मिले धक्कों के बावजूद वह विधानसभा में कभी दो तो कभी एक विधायक भेजने में सक्षम रही है।

इस चुनाव में उसके पास लोकसभा में मिले धक्कों से उबरने की स्थितियां मौजूद हैं।लालू जी द्वारा पूरी ताकत झोंकने के बावजूद यहां पिछले 20 सालों में कभी भी माई समीकरण काम नहीं कर सका है। पिछले 20 सालों में यादव समुदाय कभी माले के साथ , कभी निर्दलीय और यहां तक की यादव प्रत्याशी के नाते, शहाबुद्दीन के खिलाफ भाजपा तक में चला गया है ।

पहली बार सिवान में मुस्लिम समुदाय के भीतर का जो पिछड़ा हिस्सा है यानी कि जो पसमांदा समुदाय है,उसके भीतर शहाबुद्दीन से अलग अपनी आवाज उठाने और खुद को लंबे समय तक अपराधी से जोड़े जाने की त्रासदी से छुटकारा पाने की छटपटाहट महसूस की जा सकती है। भाजपा – जदयू की तरफ से और राजद- महागठबंधन, दोनों ओर से दो अपराधी सरगनाओं की पत्नियों के चुनाव में उतरने से व्यवसायी और सामान्य लोगों को सिवान में फिर से इस या उस अपराधी के माध्यम से गुंडा गिरोहों द्वारा रंगदारी हत्या और अपहरण राज की वापसी का खतरा दिखने लगा है और इसके खिलाफ
गोलबंदी भी तेज होने लगी है ।

यह पहली बार ही हो रहा है कि भाकपा माले के प्रत्याशी अमरनाथ यादव की सभाओं में उनके कैडरों के अलावा मुस्लिम समुदाय खासकर पसमांदा हिस्से की भागीदारी श्रोताओं से लेकर मंच तक दिख रही है । पसमांदा संगठन के जिला अध्यक्ष और इंसाफ मंच के एसरार अहमद सिर्फ सभाओं में खुलेआम मंच से भाकपा माले का समर्थन कर रहे हैं बल्कि अपने तमाम साथियों के साथ शहर से लेकर गांव तक घूम रहे हैं ।

हुसैनगंज बाजार के नुक्कड़ सभा में बच्चे

यादव समुदाय का विक्षोभ भी अब सतह पर दिखने लगा है और अमरनाथ यादव की तरफ धीरे धीरे अपना हाथ बढ़ाने लगा है । कस्बों के व्यवसायी बाजार में बुलाकर माले प्रत्याशी को गुड़-दही आदि से तौलने के भिन्न-भिन्न रूपों में अपनी एकजुटता जाहिर कर रहे हैं । दरौली ,जीरादेई, रघुनाथपुर विधानसभाओं में भाकपा माले की बेहतर पकड़ है और बड़हरिया , दरौंधा विधानसभा में भी भाकपा माले का कामकाज है। सिवान शहर और ग्रामीण इलाकों में नुक्कड़ सभाओं में भी लोगों का अमरनाथ यादव के प्रति आकर्षण महसूस किया जा सकता है।

फिलहाल यह चुनाव त्रिकोणीय संघर्ष की तरफ बढ़ चला है। भाकपा माले विधायक सत्यदेव राम के अनुसार डबल गुंडाराज की वापसी के खिलाफ 12 तारीख को अमरनाथ यादव को दिल्ली की ट्रेन पकड़ा देनी है। अंबेडकर के संविधान, आरक्षण और देश में लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई में गरीबों -दलितों- पिछड़ों- अल्पसंख्यकों की आवाज को दमदार तरीके से बुलंद करना है।

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