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साहित्य और सिनेमा अपने समय को प्रतिबिंबित करते हैं- डाॅ. विजय शर्मा

11फरवरी 2022 को ‘भारतीय साहित्य, समाज और सिनेमा’ विषय पर एक ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन हुआ। इस आयोजन की मुख्य  वक्ता वरिष्ठ लेखिका डॉ. विजय शर्मा थीं।

डॉ. विजय शर्मा ने साहित्य और सिनेमा के संबंधों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि अधिकतर फिल्में साहित्य का सहारा लेती हैं लेकिन दोनों विधाएं अलग-अलग हैं।

साहित्यकार एकाकी होता है। साहित्यकार की कृति जब प्रकाशित हो जाती है, तो वह लेखक की न हो कर, पाठक की हो जाती है। जबकि सिनेमा एक टीम वर्क होता है। फ़िल्म को बनाने के लिए एक टीम की जरूरत होती है। जिसके योगदान से फिल्म निर्माता या कहें निर्देशक सफल होता है। फ़िल्म चलेगी या नहीं, यह समाज के ऊपर निर्भर करता है। क्योंकि सिनेमा और साहित्य दोनों समाज का दर्पण होते हैं।

विजय शर्मा ने कुछ साहित्यिक कृतियों पर आधारित फिल्मों का उदाहरण प्रस्तुत किया, जैसे राजी, पिंजर, शतरंज के खिलाड़ी, हेमलेट एवं कुछ लेखक जैसे रविन्द्र नाथ टैगोर, प्रेमचंद, निर्मल वर्मा, कमलेश्वर, रेणु, राजेन्द्र यादव, सलमान रुश्दी, मन्नू भंडारी, अमृता प्रीतम, शेक्सपियर, रस्किन बॉन्ड, एलिस वाकर आदि का भी उदाहरण प्रस्तुत किया।

उन्होंने  टैगोर की कृतियों पर आधारित फिल्मों का जिक्र बड़ी सहजता से और विस्तार पूर्वक किया। फ़िल्म ‘ओमकारा’ शेक्सपियर की कहानी पर आधारित फिल्म है, जिसके निर्देशक विशाल भारद्वाज हैं। यह फ़िल्म 2006 में आयी थी। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर आधारित यह फ़िल्म किस तरीके से हमारे समाज को प्रस्तुत करती है, यह किसी से छुप नहीं पाया है।

ऐसी ही स्मृतिलोप पर आधारित फ़िल्म है ‘तन्मात्रा’। तन्मात्रा 2005 में आई थी, जो कि पी.पद्मराजन की कहानी ‘ओरमा’ (स्मृति) पर आधारित है, जिसके निर्देशक ब्लेसी हैं।

फ़िल्म बहुत सराही गयी थी और इसके पुरस्कारों की लिस्ट बहुत लंबी है। विजय जी इसी क्रम में कहती हैं, कि साहित्य में कितनी ताकत होती है, कितना आकर्षण होता है इसे सिद्ध करने के लिए देवदास (शरतचंद्र की कृति पर आधारित) जैसी फ़िल्म का उदाहरण  काफी है। जिसने दिलीप कुमार को सिनेमा में स्थापित किया। अलग-अलग समय में इस पर चार बार फिल्में बनीं, जिसके निर्देशक क्रमशः पी. सी . बरुआ, विमल राॅय और संजय लीला भंसाली हैं।

उन्होंने  साहित्य आधारित मलयालम फिल्में,  जैसे चेम्मीन, पलोरी मड़िक्यम और कन्नड़ उपन्यास ‘संस्कार’ पर आधारित फ़िल्म का उदाहरण प्रस्तुत किया। अपना वक्तव्य समाप्त करते हुए उन्होंने कहा, कि साहित्य और सिनेमा एक दूसरे से जुड़े हैं और दोनों अपने समय को प्रतिबिंबित करते हैं।

इस ऑनलाइन कार्यक्रम का   संयोजन डॉ. जी. राजू, डॉ. जनार्दन तथा  संचालन डॉ. मीना कुमारी मिश्रा ने किया। यह आयोजन हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के द्वारा किया गया था। इस ऑनलाइन परिचर्चा में हिन्दी विभाग के अध्यापक, छात्र और शोधार्थी भी शामिल रहे।

(यह रपट कविराज, परास्नातक, हिन्दी प्रथम वर्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा  तैयार की गयी है)

फ़ीचर्ड इमेज गूगल से साभार

 

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