लखनऊ। जन संस्कृति मंच की ओर से कवि व साहित्यकार भगवान स्वरूप कटियार की नई किताब ‘अपनी धरती अपना आकाश’ का इप्टा दफ्तर कैसरबाग , लखनऊ के सभागार में विमोचन हुआ। इस मौके पर किताब पर परिचर्चा -संगोष्ठी हुई जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति ने की।
आरंभ में लेखक कटियार ने अपनी यात्रा तथा उसके अनुभव के बारे में बताया और कहा कि मानव के भीतर आरंभ से ही यात्रा करने की प्रवृत्ति रही है। दुनिया विचित्रताओं से भरी है। विविधता से पूर्ण मानवीय क्रियाएं हैं। जब हम सफ़र पर निकलते हैं तभी धरती की विशालता और उसकी सामाजिक व सांस्कृतिक रचना का प्रत्यक्ष रूप से पता चलता है। इस मौके पर श्री कटियार ने इस किताब से अपनी दो कविताएं भी सुनाईं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात कथाकार शिवमूर्ति ने कहा कि श्री कटियार के साथ यात्रा करने का मौका मिलता तो अच्छा रहता। कटियार जी यात्रा पर निकल जाते थे तथा आने पर बताते तो लगता कि काश, हम भी उनके साथ होते। मनुष्य की प्रवृत्ति दुनिया को जानने की रही है। इसी से वह यात्रा के लिए निकलता है। कटियार जी की यात्रा संस्मरण की इस किताब में हमारे समय का वर्तमान, भूगोल और इतिहास है। शिवमूर्ति जी ने भी अपनी यात्रा के कुछ दिलचस्प संस्मरण सुनाए।
प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने कहा कि यात्रा तो कटियार जी करते हैं लेकिन इस किताब के साथ इन्होंने हमारी भी यात्रा कराई है। ग्लोबल दुनिया के बारे में आज बहुत जानकारी है, लेकिन यह किताब उस दुनिया के सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक पहलू से परिचित कराती है। इसमें और गहराई में जाने की जरूरत थी। यूरोप के शासकों का शोषक रूप तथा जनतंत्र का दोहरा चरित्र भी सामने आना चाहिए तथा रूस आदि देशों में जो परिवर्तन हुआ, वह किस तरह का है, यह लक्षित होता तो किताब दुनिया को समझने में अधिक मदद करती।
प्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि कटियार जी दुनिया को देखते ही नहीं बल्कि हमें दिखाते हैं। हमारे लिए किताब खिड़की खोलती है। जो लिखा, वह महत्वपूर्ण है। लेकिन कश्मीर की यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है। इस यात्रा संस्मरण में कश्मीर व लद्दाख के लोग क्या सोचते हैं, कश्मीरियत क्या है, यह बात सामने आती है। उनके बारे में सरकार व मीडिया द्वारा जो धारणाएं बनाई गई हैं, उनसे अलग व वास्तविक पहलू यहां है। जापान के हिरोशिमा, नागासाकी पर बमबारी के बाद आज क्या असर है, लोग क्या सोचते हैं, यह भी सामने आता है। इसमें पक्षधर नजरिया है। वीरेंद्र यादव का यह भी कहना था कि किताब में सूचनाएं अधिक हैं। कुछ चूकें भी हैं। इस पर ध्यान देना चाहिए। इसके अगले संस्करण में सुधार की उम्मीद है।
परिचर्चा का आरम्भ लेखक, इतिहासकार व जसम लखनऊ के कार्यकारी अध्यक्ष असगर मेहदी ने किया। उन्होंने कहा कि किताब से भारत के विकास के मिथक को समझा जा सकता है। यह किताब भारत के विश्व गुरु होने के भ्रम का खंडन करती है और दुनिया के विकास की रोशनी में हम अपनी प्रगति को आंक सकते हैं। असगर मेहदी का कहना था कि कटियार जी किताब के माध्यम से यात्राओं के वैचारिक विमर्श, उसके महत्व, दर्शन पर विस्तार से बात करते हैं। इसमें हर युग में की गई साहसिक यात्राओं की चर्चा है। साथ ही दुनिया को देखने का जनपक्षधर सामाजिक और सांस्कृतिक नजरिया मौजूद है।
कवि-कथाकार उषा राय के विचार में यह कृति कटियार जी के कवित्व का विस्तार करती है। इसमें जीवन के वैविध्य से मुलाकात होती। चीन से तुलना करते हुए भारत की इसमें चर्चा है। इस आईने में हम भारत की प्रगति को देख सकते हैं कि सरकार जो दावे करती है वह कितना मिस लीडिंग है। दुनिया के तमाम देशों को जानने को हमें मिलता है। इस मायने में यह पठनीय, रोचक और ज़रूरी किताब है।
प्रोफेसर सूरज बहादुर थापा ने कहा कि यह प्रासंगिक पुस्तक है। इतने देशों की यात्रा और उस पर लिखना आसान नहीं है। श्री थापा ने बंगाल कल्चर के अपने अनुभव से बात रखी और कहा कि हिंदी में यात्रा वृत्तांत लिखने की परंपरा रही है। भारतेन्दु, राहुल, महादेवी वर्मा, अज्ञेय, निर्मल वर्मा से लेकर अनिल यादव ने यात्राओं पर अपना संस्मरण लिखा है। कटियार जी के साहित्यकार पर पत्रकार हावी है। इसमें उनका सजग और सामाजिक दृष्टि है जो यथार्थवादी है। इसमें एक तरह का सर्वेक्षण है। चीन के अद्भुत विकास के माडल से हमारा विकास कहां खड़ा है, यह पहलू सामने आता है। इस किताब का महत्व है कि इसमें ढ़ाई आखर प्रेम जैसी सांस्कृतिक यात्रा का भी संदर्भ है।
इप्टा के कार्यकारी अध्यक्ष राकेश ने कहा कि यात्राएं मनुष्य की जिंदगी का हिस्सा रही हैं। कटियार जी ने उन जगहों की यात्रा की है, जिसमें ग्लेशियर जैसे क्षेत्र की जोखिम भरी यात्रा शामिल है। इसमें विवरण है लेकिन उसकी और गहनता से पड़ताल की जाती तो और बेहतर होता। कटियार जी अपनी किताब से पाठक की भी यात्रा कराते हैं।
कार्यक्रम का संचालन जसम लखनऊ के सचिव फरजाना महदी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापित किया अरविन्द शर्मा ने। इस अवसर पर वन्दना मिश्र, सुभाष राय, डॉ अवन्तिका सिंह, अशोक चन्द्र, कौशल किशोर, अशोक वर्मा, कलीम खान, सत्य प्रकाश चौधरी, अरुण कुमार असफल, आशीष सिंह, केके शुक्ला, अनूप मणि त्रिपाठी, वीरेंद्र त्रिपाठी, धनंजय शुक्ला, श्वेता राय, राज नंदिनी, कुमारी निर्जला शर्मा, रमेश सिंह सेंगर, मधुसूदन मगन, अंशिका, ऋषि श्रीवास्तव, ज्योति राय, भगत सिंह यादव, इरशाद रही, प्रिया सिंह, विनोद कुमार पाल सहित अच्छी संख्या में लेखक, बुद्धिजीवी और संस्कृतिकर्मी शामिल शामिल थे।