Monday, May 29, 2023
Homeस्मृति‘ लेखन व जीवन की समरूपता के प्रतीक थे रामनिहाल गुंजन ’

‘ लेखन व जीवन की समरूपता के प्रतीक थे रामनिहाल गुंजन ’

आरा। जाने माने आलोचक, कवि रामनिहाल गुंजन की स्मृति में जन संस्कृति मंच , भोजपुर-आरा की ओर से स्थानीय बाल हिंदी पुस्तकालय में रविवार की शाम श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।

विगत 19 अप्रैल को रामनिहाल गुंजन का निधन हो गया था। श्रद्धांजलि सभा में अपने प्रिय लेखक गुंजन जी को आरा के अनेक साहित्यकारों ने याद किया।

श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कथाकार नीरज सिंह ने कहा कि मेरा उनसे लगभग पचास वर्षों का रचनात्मक जुड़ाव रहा है। जैसे उन्होंने अपने अभावों की कभी परवाह न कि वैसे ही अपनी उपलब्धियों को भी नजरअंदाज करते रहे। यह उनकी लेखकीय प्रतिबद्धता की बड़ी मिसाल है। उन्होंने अपनी शालीनता, सहजता के साथ लेखकीय निरंतरता को बनाये रखा। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर लघु पत्रिका आंदोलन को अपनी अपार उर्जा प्रदान की।

गुंजनजी को याद करते हुए वरिष्ठ कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि गुंजनजी सही मायने में सर्वहारा थे और सर्वहारा के ही लेखक थे। उन्हें जानने के लिए उनके विपुल रचनाकर्म को पढ़ना होगा। उनका लेखन व संपादन दोनों हिंदी साहित्य के लिए उल्लेखनीय है। वे आरा की साहित्यिक विरादरी की बड़ी विरासत रहे हैं।

वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र ने उनके साथ की अपनी स्मृततियों को साझा करते हुए उन्हें अपनी रचनात्मकता का प्रेरणास्रोत बताया। जनार्दन मिश्र ने कहा कि वे जितना सहज थे, उतना हीं विरल भी। वे साहित्य की संभावनाओं के खोजी वैज्ञानिक थे।

श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए अगियाँव विधायक मनोज मंजिल ने कहा कि गुंजन जी लेखन व जीवन की समरूपता के प्रतीक रहे। उन्होंने आम जनता की समस्याओं पर आधारित साहित्य पर अपनी आलोचकीय दृष्टि डाली। लेखकों को प्रेरित किया। मनोज मंजिल ने चिंता जाहिर की कि लेखक और जनता की निकटता कैसे बढ़े, यह आज के संदर्भ में विचारणीय है।

कार्यक्रम में भाकपा माले के जिला सचिव जवाहर जी और नगर सचिव दिलराज प्रीतम उर्फ गुड्डू की भी सक्रिय उपस्थिति रही। दिलराज प्रीतम ने गुंजन जी को याद करते हुए कहा कि गुंजन जी के विचारों को जनता तक ले जाना ही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

समाजकर्मी सुशील कुमार ने गुंजन जी की शालीनता और रचनाशीलता को याद करते हुए उन्हें नई पीढ़ी का प्रेरक बताया। कवि बल्लभ सिद्धार्थ ने कहा कि आजकल जिस प्रकार हमारी पीढ़ी के लिए फेसबुक व ह्वाट्सएप महत्वपूर्ण हो गया है, गुंजन जी के लिए उसी प्रकार पुस्तकें महत्वपूर्ण रही हैं। वे लिखने के साथ-साथ पढ़ते भी खूब थे। मार्क्सवाद की समझ उन्हें पढ़कर पुख्ता होती है।

कवि-संपादक संतोष श्रेयांस ने गुंजन जी को याद करते हुए कहा कि उनका हर उम्र के रचनाकारों से लगाव था और उन्हें सबकी चिंता थी। कवि रविशंकर सिंह ने उन्हें याद करते हुए कहा कि उनके जाने से हमारे साहित्यिक जीवन में एक रिक्तता आ गई है।

कवि-संपादक ओमप्रकाश मिश्र ने कहा कि वे हम जैसे नये रचनाकारों में लगातार रचनात्मक भाव भरते रहे। वे हमारे बीच अनुपस्थित होकर भी उपस्थित रहेंगे। शायर कुर्बान आतिश और इम्तेयाज अहमद दानीश ने भी गुंजन जी को याद किया।

दानीश ने तंजईने अदब की अपनी गोष्ठियों में उनकी उपस्थिति को याद करते हुए कई आत्मीय लगाओं को भी याद किया।

संचालन करते हुए कवि सुमन कुमार सिंह ने कहा कि वे अपने लेखन के प्रति बिलकुल प्रतिवद्ध थे। तमाम दुखों व अभाव  के बावजूद भी उनका मूल्यगत लेखन शिथिल न हुआ। अन्य वक्ताओं में रंगकर्मी अंजनी शर्मा, कवयित्री प्रतिज्ञा साधना, अर्चना, सुनील सिन्हा(बगेन), रंगकर्मी सूर्य प्रकाश , अमित मेहता और रामकुमार नीरज , अमित कुमार बंटी आदि ने भी गुंजन जी को श्रद्धांजलि अर्पित की।

इसके अलावे दूरभाष पर वरिष्ठ कहानीकार सुरेश कांटक, कवि बलभद्र , कवि-आलोचक सुधीर सुमन तथा लखनऊ से वरिष्ठ रचनाकार कौशल किशोर ने भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

कार्यक्रम का संचालन सुमन कुमार सिंह और धन्यवाद ज्ञापन कवि -चित्रकार राकेश दिवाकर ने किया।

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