जयप्रकाश नारायण
बादशाह ने हड़बड़ाहट में मंत्रियों की बैठक बुलायी। प्रधान अमात्य से चिंता की मुखमुद्रा में पूछा, कि महामात्य यह बताएं कि चारों दिशाओं से अबूझ भाषाओं, बोलियों में मुझे कर्कश ध्वनि सुनाई पड़ रही है। राज में प्रजा की कुछ खबर है आपको! इस तरह की आवाजें क्यों और कहां से आ रही हैं!
क्या प्रजा तक तोहफा नहीं पहुंच पा रहा है। बादशाह अन्न योजना के अंतर्गत अन्न, तेल और नमक प्रजा को मुफ्त मिल रहा है । वहीं जिसमें हमारी तस्वीरें लगी हैं।
अगर सब ठीक है तो किन कारणों से डरावने स्वर सुनाई पड़ रहे हैं!
बादशाह, हमने अन्न योजना को आगे जारी रखने का आश्वासन दिया था, उसे अभी 24 घंटा पहले ही 6 माह तक मुफ्त देने का आदेश जारी कर दिया गया है।
महामात्य यह आवाजें आर्यावर्त के चारों दिशाओं से आ रही हैं । हमारे छत्रप क्या कर रहे हैं । हमने तो सारे प्रबंध कर दिए थे। प्रजा की शताब्दियों पुरानी इच्छा पूरा करते हुए भव्य राममंदिर बनवा दिया।
काशी में विश्वनाथ धाम कारीडोर शिव नगरी की महिमा को अलौकिक प्राचीन गरिमा प्रदान कर रहा है। काशी की छटा और भोलेनाथ का स्वरूप देख कर प्रजा मुग्ध और चमत्कृत नहीं हो रही है!
आमात्य हमने इस धरा के संपूर्ण मानव के समक्ष गंगा में डुबकी लगाई है और आप समझते ही हैं कि मां गंगा शुद्ध और पवित्र हो गई हैं। पूजा-पाठ, आरती, कीर्तन के लिए सभी प्रबंध कर दिये गये हैं।
पुजारियों और बटुको को नियुक्त करने का आदेश दे दिया गया है। यह पवित्र कार्य शीघ्र ही संपन्न हो जाएगा।
आने वाले हिंदू राष्ट्र के स्वर्ण काल में और बड़े-बड़े भव्य मंदिर और मूर्तियां निर्मित होंगी। मंदिर के पूजा पाठ के लिए हवन सामग्री सब राजकोष से प्रदान किया जाएगा।
प्रजा को प्रतिदिन नियम से सुबह-संध्या प्रभु राम के महान कार्यों को भी स्मरण करने का इंतजाम अवश्य होगा।
फिर क्या कमी है महामंत्री जी! हमारे दिव्य ज्ञान से संपृक्त साधु-संत चारों तरफ प्रयास चला रहे हैं। रामराज्य के प्रभुत्व विस्तार के लिए लिए कोई कमी नहीं छोड़ी जा रही है।
हमारे संतो, साधुओं, ज्ञानियों ने तो कह दिया है कि अब कलयुग का संविधान प्रासंगिक नहीं रहा। उनकी प्रेरणा और इच्छा से बहुत शीघ्र ही रामराज का सनातन विधान व्यवहार में आ जाएगा।
हजारों वर्ष पुरानी परंपराएं, संस्कार, आचार-व्यवहार और जीवन जीने की विधियां भी वापस ला दी जाएंगी।
तो फिर यह शोर और विरोध के लक्षण कहां से प्रकट हो रहे हैं!
महामंत्री आप सच-सच बताइए कि हमारी तपस्या, साधना, पराक्रम, निष्ठा, समर्पण में और योजनाओं में कहीं कोई त्रुटि तो नहीं है। हमें और क्या करना चाहिए!
राज धर्म के और कौन-कौन से कर्तव्य बाकी रह गये हैं, जिन्हें पूरा करना है । क्योंकि प्रजा का इस तरह से चारों दिशाओं में एक ही समय में एक ही मांग के साथ संगठित आवाज देकर अपनी बात कहना शुभ संकेत नहीं है!
अमात्य आप शीघ्र, अतिशीघ्र संपूर्ण प्रसंग की जांच कर ठोस सलाह दें ।
आप तो जानते ही हैं, कि कश्मीरी पंडितों के दर्द, कष्ट तथा यातना को समाप्त करने के लिए और प्रजा की मानसिक संतुष्टि, आत्मगौरव और आत्मबोध को जागृत करने के लिए महान चलचित्र ‘द कश्मीर फाइल्स’ संपूर्ण आर्यावर्त में निःशुल्क प्रसारित की जा रही है। क्या इस प्रयास से वांछित लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका है!
अगर ऐसा है तो हमें फिर गंभीर शोध करना होगा और अपनी योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन करते हुए और बड़ी योजनाओं पर विचार करना चाहिए। क्योंकि प्रजा में हमारी योजना का वांछित प्रभाव नहीं दिख रहा है।
समाचार पत्रों से लेकर दृश्य-श्रव्य माध्यमों तक और अभी-अभी तो हमारे परम भक्त शिक्षकों ने कितना खूबसूरत चलचित्र का निर्माण किया है । इसे भी प्रधानमंत्री मुफ्त अन्न योजना की श्रेणी में रखकर मुफ्त में प्रजा को दिखाया जा रहा है।
महामंत्री जी हमारे कुल देव शिरोमणि कोशल से लेकर काशिका के भ्रमण पर हैं। वे साकेत भी जाएंगे। देवर्षि के ज्ञान और मीठी वाणी से अशान्त जन की आत्मा को शांति प्राप्त हो रही है या नहीं!
देवर्षि उत्तर भारत के महापुरुषों के गौरवपूर्ण कृतित्व को स्थापित करने और प्रजा को धर्म युक्त बनाकर उसको संस्कारित करने के काम में तल्लीन है । क्या इसका प्रभाव आर्यावर्त के गंगा, जमुना, सरयू, राप्ती के बीच के भूक्षेत्र में नहीं दिखाई पड़ रहा है!
वैसे राजन एकालाप करने के आदी रहे हैं। फिर भी इतना कह कर वह शांत हुए।
वार्तालाप करते हुए थोड़ा चिंतित दिखाई दे रहे राजन महामंत्री से प्रश्नों का उत्तर सुनने के लिए शांत हुए।
आमतौर पर राजन कभी महामंत्री से इस प्रकार का प्रश्न नहीं किया करते थे। सीधे या इशारों में आदेशित करते थे कि राष्ट्रहित में यह कर्तव्य पूरा किए जाने हैं । लेकिन आज राजन की मन: स्थिति देखकर महामंत्री थोड़ा डर के सकुचाते हुए बोले !
पृथ्वीश्वर! प्रजा अपने रोजगार, श्रम की मजदूरी और सुरक्षित जिंदगी की मांग कर रही है। वह आपसे निवेदन कर रही है। चार श्रम कोड वापस ले लें।
आप को प्राचीन संस्थाओं, नियमों, विधानों से असीम प्यार है। इसलिए प्राचीन नियमों को ही रहने दें । यही भाव इस शोर से प्रकट हो रहा है
राजन बीच में ही बोल उठे। उनकी मुख्य मुद्रा बदली हुई थी।
प्रजा की गुस्ताखी ठीक नहीं है। वह दुष्ट विधर्मी सरकारों के बनाये विधान और श्रम कानूनों की वापसी की मांग कर रही है।
साथ ही 1947, जिसे कुछ लोग आजादी कहते हैं, के बाद बनाए गये योजनाओं, नियमों, कानूनों को लागू करने और उन्हें सुरक्षित रखने की मांग उठा रही है। यह कानून, विधान पश्चिमी विचारों वाले, भारतद्रोही और प्रगतिशील, दुष्ट साम्यवादी राष्ट्र विरोधी तत्वों के दबाव में बनाए गए थे । आप जानते ही हैं महामंत्री इन विधानों, कानूनों से भारत के देशभक्त महान श्रेष्ठियों को अपने कारोबार का साम्राज्य फैलाने में दिक्कतें हो रही हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विपरीत परिस्थितियों में कल्याणकारी सरकारों का काल आया था। उस समय ऐसी योजनाएं और नियम, कानून बने जो प्रजा के अधिकारों शक्तियों और उनके जीवन यापन के क्षेत्र में सरकारी तथा कारोबारियों के दखल से थोड़ा राहत देता था।
इसलिए प्रजा में अधिकार का ज्ञान तो था लेकिन कर्तव्य बोध की कमी थी। यह राष्ट्र हित में नहीं है महामात्य।
जिससे प्रजा नागरिक की तरह व्यवहार करने लगे। अपने कर्तव्य बोध से च्युत प्रजा अधिकारों का बेजा प्रयोग कर सीमा रेखा का उल्लंघन कर रही थी ।
महामात्य बोले, राजन आप सत्य वचन कह रहे हैं। हमारे श्रेष्ठियों का भी यही सोचना है।
जब से प्रजा का स्वरूप बदला है। संवैधानिक अधिकार के तहत बराबरी हासिल की है और उत्पादन क्रम में कर्मचारी, मजदूर, शिक्षक, प्रबंधक, डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर आदि श्रेणियों में बंटी हैं तब से उनके सोचने-समझने और जीवन जीने की शैली में बदलाव आ गया है।
राजन इसलिए वे लोकतांत्रिक प्रणाली के सुरक्षित और कारगर ढंग से काम करने की बात कर रहे हैं । प्रजातांत्रिक प्रणाली से प्रजा से नागरिक के रूपांतरण की प्रक्रिया में उनके अंदर स्वतंत्र मनुष्य होने का बोध पैदा हो चुका है ।
इसलिए राजन यह नयी श्रेणी राज्य संरक्षण से मिले अधिकारों का त्याग नहीं करना चाहती। वे अपनी सेवा शर्तों में कई मुद्दों को समाहित देखना चाहते हैं। जैसे काम के आठ घंटे, मनोरंजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, अवकाश और मानक के अनुसार पारिश्रमिक की बात करते हैं। न्यूनतम वेतन की मांग कर रहे हैं, जिससे सुखमय जीवन जी सकें!
वे जनता के श्रम से निर्मित राष्ट्र की संपदा और सरकारी संस्थानों को निजी हाथों में देना नहीं चाहते हैं। यही नहीं सरकारी नियंत्रण वाले संस्थानों को सुरक्षित, स्वस्थ और काम करने लायक बनाए रखने की मांग कर रहे हैं।
लेकिन राजन यह कैसे हो सकता है। आपने तो देसी विदेशी श्रेष्ठियों को “जो अब कारपोरेट हो चुके हैं ” आश्वासन दे रखा है कि आइए और कारोबार करके शुभ लाभ कमाइए।
हमारे अपने दो ने तो कमाल ही कर दिया है। उन्होंने भारत के मस्तिष्क, मेधा और सामर्थ्य का लोहा दुनिया में मनवा लिया है । तो भला बताइए इन नाचीज लोगों की बातें कैसे स्वीकार की जा सकती है।
यह लोग 4 श्रम संहिताओं की वापसी की मांग कर रहे हैं। साथ ही वेतन आयोगों, श्रम संस्थानों और न्यायालयों की मौजूदगी सुरक्षित बनाए रखने की मांग करते हैं ।
आप जानते ही हैं पिछली सरकारों ने विकास विरोधी ऐसे-ऐसे काम कर डाले हैं कि उस गंदगी को साफ करने में आपको कठोर परिश्रम करना पड़ रहा है ।
आपने आपदा काल में बहुत ही कठिन परिश्रम किया और विकास के हित में कठोर से कठोर कदम उठाये हैं ।
आपके पवित्र आत्मा से निकले कृषि कानूनों को मूर्ख किसान नहीं समझ पाये। उन्हें देशद्रोहियों, माओवादियों, खालिस्तानियों ने भड़का दिया। जिससे किसानों का आय दोगुना होते-होते रह गयी।
अब ये देश और विकास विरोधी मजदूरों, कर्मचारियों, छात्रों, शिक्षकों को भड़का रहे हैं कि काम के घंटे को बढ़ाने से शारीरिक और मानसिक शक्ति का ह्रास होगा।
वे राष्ट्र की सेवा का अवसर खोना चाहते हैं। आप ने शुद्ध मन और पवित्र ह्रदय से बहुत सोच समझकर श्रम संहिताओं को लाकर कानूनों का बोझ घटाने का फैसला किया है ।
श्रमिकों-मालिकों के बीच से बिचौलियों को खत्म करने का फैसला नवीन और मौलिक खोज है। लेकिन इस देश का दुर्भाग्य है कि राष्ट्र विरोधी तत्व इसका महत्व नहीं समझ पा रहे हैं ।
इसलिए यह सभी एक साथ मिलकर 2 दिन की हड़ताल और विरोध आयोजित कर रहे हैं। लेकिन राजन आप इससे चिंतित न हों! यह सिर्फ सरकारी क्षेत्रों के 10 -15 करोड़ कर्मचारी और मजदूर हैं। इसका विस्तार सिर्फ रेलवे, भेल, गेल, सेल, एलआईसी, पोस्ट ऑफिस, बीमा, बीएसएनल जैसे संस्थानों तक ही है।
आपके द्वारा दिये गये अन्न, नमक, तेल खायी प्रजा हड़ताल के साथ नहीं है। इसलिए आपको थोड़ा सा भी परेशान होने की जरूरत नहीं है। अपने कदम और तेज गति से के साथ उठाएं! आपने जिन संस्थानों को बेचने के लिए बाजार में पंजीकृत कर दिया है। निश्चय ही उससे देर-सबेर मुद्रा लाभ होगा।
विनिवेश द्वारा हमारे मुद्रा संस्थान समृद्ध होंगे। इसलिए विकास विरोधी हड़ताल से चिंतित होने की जरूरत नहीं है!
आप दक्ष हैं, महान हैं ,आप दूरदर्शी हैं! आपके सलाहकार सारी बाधाओं को हटाना जानते हैं । उन्हें साम, दाम, दंड, भेद का तरीका मालूम है। जब जरूरत होगी वह नये रास्ते निकाल लेंगे । आपने देखा है कि दिल्ली में एनआरसी, किसान आंदोलन सहित विविध प्रकार के आंदोलनों को आपके सिपहसालारों ने कैसे चुटकी बजाते संभाल लिया था।
आप और आपके संघ परिवार का लोहा दुनिया मान रही है। आपने अनेक अवसरों पर कहा है कि भारत के शक्ति और सामर्थ्य को अब दुनिया पहचान रही है।
पिछली सरकारों की गलतियां थी कि मजदूरों, कर्मचारियों को अनावश्यक सुविधाएं दे रखी थी । सेवानिवृत्त के बाद भी पेंशन। कितनी हरामखोरी बढ़ा दी थी। आवास, मनोरंजन और स्वास्थ्य, शिक्षा और न्यूनतम मजदूरी के लिए सुरक्षा देने की गलतियां की थीं ।
इसी तरह शोर-शराबा करके इन लोगों ने 8 घंटे कार्य दिवस का नियम बनवा लिया था। जिससे काहिली, हरामखोरी और उत्पादन प्रभावित हुआ। देश को भारी क्षति हुई और राष्ट्र पीछे चला गया।
अब यह सब आप के राज में नहीं चलेगा। राजन आपने सही कदम उठाया है। कोई कानूनी सुरक्षा नहीं। अब न्याय के लिए न न्यायालय और न सरकार ।
अब सीधे मजदूर-मालिक से बात करें। देश में दो ही रहेंगे मालिक और मजदूर। दोनों आपस में समझौता करें ।शर्तें तय करें। वेतन के साथ-साथ सभी सुविधाओं पर आपसी वार्ता कर सामूहिक राय बनाएं।
आपने मजदूर और मालिक के बीच में बिचौलियों को खत्म करके मजदूरों का बहुत बड़ा भला किया है।
सरकार को इस पचड़े में नहीं पड़ना है। यही सरकार का एक सूत्रीय मंत्र होगा।
इसी को न्यूनतम सरकार, अधिकतम गवर्नेंस कहते हैं। आपने तो 2014 में ही कह दिया था, मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस!
दुनिया में एक ही हवा बह रही है। हमें विश्वस्तरीय उत्पादन और ढांचा विकसित करना है, नहीं तो हम पिछड़ जाएंगे। देश के औद्योगिक संस्थानों को प्रतिस्पर्धी (कॉम्पिटेटिव) बनाने के लिए यह जरूरी है। समाजवादी या सरकारी क्षेत्र के उद्योग यानी मिश्रित अर्थव्यवस्था यह सब पिछड़ी सोच है
अभी कुछ जगह पीपीपी चलेगा लेकिन इससे इसको अंततोगत्वा प्राइवेट ही होना है। यही राष्ट्र की जरूरत है, यही राष्ट्र की सेवा है।
हमारे इतिहास का सर्वश्रेष्ठ अमृत काल है ।यूपीए सरकार तो 13 करोड़ लोगों को ही राशन दे पायी । वह भी मुफ्त नहीं था।
राजन आपके राज में 84 करोड़ जीवों (मनुष्य) को महीने में दो बार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में भोजन दिया जाता है।
और क्या चाहिए। पेट भरा है तो किस बात का गम है ।
महामंत्री की हौसला अफजाई से राजन मन ही मन मुदित हो रहे थे । वे सोच रहे थे कि कितने योग्य तथा वफादार मंत्री हमारे पास हैं ।सब वही सोचते हैं और उसी मार्ग का अनुगमन करते हैं । जैसा मैं चाहता हूं।
इसलिए राजन थोड़ा आश्वस्त हुए।
राजन सर्वशक्तिमान हैं। सभी प्रशासनिक, तकनीकी, वैज्ञानिक संस्थान उनकी मुट्ठी में कैद हैं । पेगासस उनके सहयोग के लिए हर समय तत्पर है ।
सभी सरकारी संस्थान, आईबी, सीबीआई, एनसीबी, जासूसी संस्थाएं, पुलिस-प्रशासन सभी उनकी उंगली पर कदमताल करते हैं। मंत्री गण तो राजन की इच्छा पहले से ही भांप लेते हैं। तदनुरूप मनोयोग से कर्तव्य निर्वहन में तल्लीन हो जाते हैं ।
यह चिंतन करते हुए उनके मन की खिन्नता कुछ कम हुई।
तभी हॉट लाइन पर खबरें आने लगी। बैंक, एलआईसी, बी एस एन एल, पोस्ट और डाक विभाग सभी पूरी तरह से बंद हैं। अरे नहीं सभी पीएसयू संस्थानों के ताले नहीं खुले । कोल माइंस, पेट्रोलियम, गैस सब जगह वही आवाज अलग-अलग भाषाओं में एक ही नारों के साथ। बांग्ला, उड़िया, संथाली, मुंडारी, छत्तीसगढ़ी, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, मलयालम, मराठी, गुजराती, पंजाबी, हिंदी, हरियाणवी, मैथिली, असमी सारी भाषाओं में रंग बिरंगे मनुष्य एक ही आवाज लगा रहे हैं ।
देश बेचना नहीं चलेगा। देशद्रोही सरकार नहीं चलेगी। श्रम संहिताएं गुलामी का दस्तावेज हैं।वापस लो! वापस लो! न्यूनतम वेतन चाहिए! काम के घंटे 8 चाहिए!
यह सूचनाएं उन्हें थोड़ा विचलित करती रहीं।
अभी आर्यावर्त के हृदय स्थल में महाविजय मिली है। सही तरह से ताजपोशी भी नहीं हो पायी थी।
विजय के जश्न में महाविघ्न कहां से पड़ गया। अभी 2024 की जीत को लेकर आश्वस्त भी नहीं हो पाया था कि 2019 और 20 वाला दृश्य और जोश आर्य भूमि में दिखाई देने लगा है। राजन को लक्षण अच्छे नहीं दिख रहे हैं। इन सभी आवाज में उन्हें देश के विरुद्ध षड्यंत्र की बू आ रही है।
वह महल के सबसे सुरक्षित कमरे में बैठकर अपने अभिन्य और विश्वस्त सहयोगी बालसखा के साथ मंत्रणा में तल्लीन हो गये।
शायद आर्यावर्त के ‘न्यू इंडिया’ में कोई नया भव्य दृश्य घटित होने वाला है।
लगता है इस मंत्रणा की आवाज किसी नन्ही चिड़िया ने सुन ली और वह पंख फड़फड़ा कर चींचीं करती अनंत आकाश के महासमर की विजय यात्रा की दिशा में उड़ चली। सभी खगों ने अपनी बिरादरी की इस नन्हीं चिड़िया की आवाज में निहित संदेश को समझ लिया होगा!
(जयप्रकाश नारायण मार्क्सवादी चिंतक तथा अखिल भारतीय किसान महासभा की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रांतीय अध्यक्ष हैं)