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बुज़ुर्गों को पेंशन देने के पैसे नहीं और एनआरसी पर लाखों करोड़ खर्च रही सरकार

21 जनवरी को दिल्ली के 20 से अधिक संगठनों मिलकर जंतर मंतर पर पेंशन परिषद के बैनर तले पेंशन के मुद्दे पर ‘पेंशन नहीं तो वोट नहीं’ धरने का आयोजन किया।

इस धरना रैली में दिल्ली एनसीआर के कोने कोने से हजारों की संख्या में लोग एकजुट हुए और मंच से अपनी तकलीफें साझा की। इसमें सेक्स वर्कर, विकलांग, बेघर, असंगठित क्षेत्र के मजदूर, ट्रांसजेंडर, एकल व विधवा महिलाएं, बुजुर्ग अपने संवैधानिक अधिकार ‘जीने का अधिकार’ के तहत सार्वजनिक सामाजिक सुरक्षा पेंशन के लिए संघर्ष को एकजुट होकर आए।

बता दें कि दिल्ली में फिलहाल 19 लाख बुजुर्ग रहते हैं। जबकि देश की 93 प्रतिशत आबादी असंगठित क्षेत्रों में काम करती है जहां अक्सर कम वेतन, कम सुविधा और स्वास्थ्य संबंधी अधिकतम जोखिमों के साथ करना पड़ता है। देश में फिलहाल भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) के तहत जो पेंशन दी जा रही है उसमें केंद्र सरकार योगदान केवल 200 रुपए होता है।

पेंशन परिषद की ओर से दिल्ली की तमाम राजनीतिक पार्टियों को भी अपने मंच पर आकर पेंशन पर लोगो की बातें सुनने और अपनी पार्टी का एजेंडा रखने के लिए बुलाया गया था। पेंशन परिषद से बताया गया कि हम लोगो ने सबसे पहले कांग्रेस पार्टी से संपर्क किया। उन्होंने हमारे प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया और अपने प्रतिनिधि को भेजने का वायदा किया भी और निभाया भी।

उनकी पार्टी की ओर कीर्ति आजाद आए लोगो की बातें सुनी और अपनी पार्टी की बात रखी। पेंशन परिषद की मंच पर आम आदमी पार्टी के प्रतिनिधि भी आए और उन्होंने पेंशन स्कीम को दिल्ली में लागू करने का वायदा किया। जबकि योगेंद्र यादव की स्वराज पार्टी की ओर से आने का आश्वासन दिए जाने के बावजूद कोई नहीं आया। पेंशन परिषद के मंच से बताया गया कि जब वो लोग बुजुर्गों को पेंशन की मांग लेकर भाजपा के दफ्तर गए तो वहां उनसे बात तक नहीं सुनी गई। न ही कोई संवाद हुआ। उन्हेंने कोई दिलचस्पी ही नहीं ली इस मुद्दे पर।

पेंशन परिषद के मंच से बोलते हुए कांग्रेस पार्टी के कीर्ति आजाद ने कहा-“ यदि हमारी सरकार दिल्ली में आती है तो हम हर बुजुर्ग को 5 हजार मासिक की पेंशन देंगे। उन्होंने आगे कहा कि हम जानते हैं कि देश में इतनी बेरोजगारी है कि आज युवा चाहकर भी अपने जन्मदाता का सामाजिक सुरक्षा नहीं दे पा रहा। आज युवा पढ़ लिखकर बेरोजगार बैठा है। फिर मजबूर होकर रेहड़ी पटरी पर कोई छोटा मोटा व्यापार कर लेता है तो दिल्ली पुलिस और नगर निगम के लोग उसका सामान उठा ले जाते हैं। ऐसे में वो बेचारा अपने बच्चों और बूढ़े मां-बाप का खर्च कैसे चलाए। कैसे पाले उनका पेट। कैसे कराए उनका इलाज।

 

विकलागों, किसानों, मजदूरों को पेंशन मिलना चाहिए
सीपीआईएम के धनन दा ने कहा- “सीपीआईएम इस मसले पर पेंशन परिषद के साथ है। ये हमारी लड़ाई है। गांव शहर के हर बुजुर्ग को पेंशन मिलना चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, आवास सबको मिले ये सुनिश्चित करना ही सत्ता का काम है। बाज़ार में महँगाई होने पर पेंशन राशि भी उसी अनुपात में बढ़नी चाहिए ऐसा हमारा पेंशन प्रावधान होना चाहिए। इस देश में 4 करोड़ लोग विकलांग हैं उन्हें भी पेंशन दिया जाना चाहिए। क्योंकि वो भी बेसहारा हैं।”

असंगठित मजदूरों और किसानों 60 की उम्र की बाद पेंशन देने की मांग हम हमेशा से उठाते आए हैं। आज किसान आभाव के चलते खुदखुशी कर रहे हैं। किसानों को पेंशन देकर खुदखुशी को रोका जा सकता है। हमारी पार्टी पेंशन मुद्दे के साथ है। पेंशन का मुद्दा पार्टी दल, जाति-धर्म का नहीं बल्कि जीवन का सवाल है।

पीड़ित लोगों की प्रतिक्रिया

बवाना से आई तीन बुज़ुर्ग स्त्रियाँ विमला, सजनी और मरियम बारी बारी से अपनी परेशानियां साझा करती हैं। मरियम बताती हैं कि- “पिछले एक साल से हमारी पेंशन रोक दी गई है। हमें बहुत तकलीफ़ हो रही है। 3 हजार महीने मिलते थे तो बेटे बहू भी पूछते थे। मरियम बताती हैं कि उनका बेटा बेलदारी करता है। दिन भर में बमुश्किल 2-3 तीन सौ रुपए कमा पाता है। उसमें परिवार का पेट पाले, बच्चों को पढ़ाए की बीमार मां-बाप का इलाज़ करवाए।”

निर्माण मजदूर रही 65 वर्षीय विमला देवी कहती हैं- “ पेंशन ही हमारा सहारा था। एक साल से पेंशन बंद करके सरकार ने हमसे हमारा सहारा ही छीन लिया है। बेटा कुछ देता नहीं उतनी कमाई भी नहीं होती। इससे बहुत परेशानी होती है। वो बताती हैं कि पहले वो निर्माण क्षेत्र में मजदूरी करती थी लेकिन अब तो वो चलने फिरने से ही मोहताज हैं। सारे शरीर में तकलीफ रहती है। गँठिया है और बाई भी। लोगों के सहारे यहां जंतर-मंतर पर सरकार से अपनी पीड़ा सुनाने और अपना हक़ माँगने आई हूँ।”

उस्मानपुर की बबीता कहती हैं- “ सरकार ने बुजुर्गों की पेंशन छीनकर उन पर बहुत अत्याचार किया है। आज बुजुर्गों को घर में सहारा नहीं मिलता तो वो बाहर सो रहे हैं बुजुर्ग लोग आज सड़कों पर मर रहे हैं। उन्हें इलाज और अपने दूसरे खर्चे के लिए अब दूसरों पर निर्भर होना पड़ रही है।”

कल्याणपुर के रामचंद्र अपनी तकलीफ़ सुनाते हुए कहते हैं- “ ये सरकार बहुत जालिम है। हम बूढ़े बेसहारा लोगों का वृद्धावस्था पेंशन छीन लिया। सरकारी कर्माचारियों का भी पेंशन इसी सरकार ने छीना था। हमारी मांग है सभी वृद्धजनों को 5 हजार महीने पेंशन दी जाए। जो सरकारी पेंशनभोगी हैं उन्हें इससे अलग रखा जा सकता है।”

समाजिक अर्थशास्त्री की राय
अर्थशास्त्री जयति घोष कहती हैं- “ हर व्यक्ति को एक उम्र के बाद पेंशन मिलना चाहिए। जब हम कहते हैं न्यूनतम मजदूरी में सबको पेंशन मिलना चाहिए तब सरकार कहती है कि हमारे पैसा पैसा नहीं है।इतना पैसा हम कहाँ ले लाएंगे। और हम लोग भी डर जाते हैं कि सहीं में पैसा कहाँ से आएगा। लेकिन हमें ये समझना चाहिए कि ये एक राजनैतिक नीति है। उनके पास बहुत कुछ करने का पैसा है। उनके पास एनआरसी करने का पैसा है लेकिन इस देश के वृद्ध नागरिकों को पेंशन देने के लिए पैसा नहीं है। एनआरसी में कितना पैसा लगेगा जरा सोचिए।

असम एनआरसी में 1500 करोड़ रुपए लगे। इस हिसाब से भी यदि हम अंदाजा लगाएं तो पूरे देश का एनआरसी कराने में कम से कम पचास हजार करोड़ रुपए लगेंगे। 50 हजार करोड़ तो एनआरसी कराने में लगेगा। फिरएनआरसी के बाद जो लोग छांटे जाएंगे उनको डिटेंशन कैम्प में रखा जाएगा। कैम्प बनाने का खर्चा कितना है। असम में ही डिटेंशन कैम्प बनाने में 30 हजार करोड़ आ रहा है। फिर जिन्हें वहां रखा जाएगा उनका खर्चा भी तो लगेगा।

एनआरसी के लिए कहाँ से पैसा आया। वो पचास हजार करोड़ ऐसे बेकार के चीज में ख़र्च कर रहे जिसकी कोई ज़रूरत ही नहीं है। वो डिटेंशन कैम्प बनाने के लिए ख़र्चा कर रहे हैं। आप अंदाजा लगाइये कि पूरे देश में एनआरसी कराने और फिर डिटेंशन कैम्प बनाने में लाखों करोड़ रुपए खर्च होंगे। इतना सारा पैसा है सरकार के पास। कहां से आया इतना पैसा सरकार के पास? सच बात तो ये है कि उनके पास बहुत पैसा है अपने मनमर्जी करने के लिए।

जिस चीज के लिए उनका मन नहीं करता उसके लिए बोलेंगे कि पैसा नहीं है। अगर ये एनआरसी और डिटेंशन कैम्प न करें तो कल से ही आधा न्यूनतम मजदूरी और सबको पेंशन दे सकते हैं। तो ये झूठ है कि इनके पैसा पैसा नहीं है। हमें सरकार से लगातार दबाव बनाकर मांग करनी चाहिए कि हर व्यक्ति को न्यूनतम मजदूरी और पेंशन दे सकते हैं। दूसरी बात ये है कि इस देश में एक कार्पोरेट के पास हजार करोड़ की निजी संपत्ति है। यदि सरकार पूंजीपतियों की निजी दौलत पर यदि 2 प्रतिशत भी टैक्स लगाए तो उस टैक्स से स्कूल शिक्षा और पेंशन कै पैसा मिल जाएगा।”

उहोंने आगे कहा- “गरीब के हाथों में पैसा आएगा तो वो स्कूल की फीस, दवाई, कपड़ा और रोटी के जरिए खर्च होकर बाज़ार में चला जाएगा जबकि अमीर के हाथ में पैसा आएगा तो वो बैंक लॉकरों में कैद होकर रह जाएगा। हमारी मांग है कि सबको यूनिवर्सल 5 हजार रुपए मासिक का पेंशन दिया जाए।”

पेंशन परिषद की मुख्य मांगे
असंगठित क्षेत्र के लोगो की सामाजिक सुरक्षा के लिए एक समग्र और व्यापक कानून बने जो पेंशन और अन्य सामाजिक सुरक्षा हकों को क़ानूनी मान्यता दे।
वृद्धावस्था पेंशन व्यावस्था को सार्वजनिक किया जाना चाहिए यानि यह सभी बुजुर्गों को उपलब्ध हो (सिर्फ़ उन्हें छोड़कर जो आयकर देते हैं या अन्य स्त्रोतों से पेंशन प्राप्त करते हैं) ।
सरकारी कर्मचारियों को अपनी आखिरी वेतन का आधा पेंशन मिलता है। वैसे ही असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की पेंशन की राशि को न्यूनतम मजदूरी का आधा किया जाए।
पेंशन की राशि को महँगाई के साथ जोड़ दिया जाए और हर 6 महीने में महँगाई दर के मुताबिक़ पेंशन राशि में बढ़ोत्तरी हो।
55 वर्ष से ऊपर की आयु के सबी नागरिक इस योजना का लाभ प्राप्त करने के पात्र हों। एपीएल, बीपीएल का भेद समाप्त किया जाए।
पेंशन के हक़ के साथ साथ राशन, मुफ्त इलाज़ जैसे सामाजिक सुरक्षा के हक़ भी सबी बुजुर्गों को दिए जाएँ।
पेंशन वितरण प्रणाली पारदर्शी और जवाबदेह बने और एक पुख़्ता शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित की जाए।

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