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लोकतंत्र और संविधान को बचाना आज के भारत की सबसे बड़ी जरूरत है

आज दिल्ली विधानसभा का चुनाव हैं। दिल्ली को आपमुक्त करने के लिए भाजपा ने केवल कमर ही नहीं कसी है, किसी प्रकार चुनाव जीतने के लिए उसने सभी हदें और मर्यादाएं पार कर ली हैं। अब कहीं किसी प्रकार की राजनीतिक शुचिता और नैतिकता नहीं है। भाषा और आरोप-प्रत्यारोप का ऐसा और अमर्यादित आचरण आज तक कभी नहीं था। यह निरंतर बढ़ रहा है और हम सब गहरी अंधेरी सुरंग में प्रवेश कर चुके हैं। बौद्धिकों , अध्यापकों, लेखकों, कवियो, कलाकारों, फिल्मकारों, इतिहासकारों, अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों, शिक्षाशास्त्रियों, विधिवेत्ताओं, राजनयिकों – किसी की ना सुनकर केवल अपने मन की बात करने-कहने का ऐसा चलन देश में पहले कभी नहीं था। सत्ता की ताकत इंदिरा गांधी के शासनकाल को छोड़कर कभी इतनी नशीली-गर्वीली नहीं थी। उस समय भी भाषा का एक स्तर था। एजेंडा भिन्न था। आज भाजपा का राजनीतिक एजेंडा स्पष्ट है। मुस्लिमविरोध से वह वोटों के ध्रुवीकरण में विश्वास रखती है ।

दिल्ली की हवा पहले से जहरीली है। चुनावी भाषणों ने यह जहर और बढ़ा दी है। सांसद, मंत्री, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री सब के भाषण अंश को सुनकर-पढ़कर हम किस नतीजे पर पहुंचते है? यह किस तरफ से लोकतांत्रिक और संवैधानिक है? सब की भाषा में एकरूपता है। कहीं तल्खी अधिक है, कहीं कम। कहीं सब कुछ स्पष्ट है, कहीं सांकेतिक। प्रधानमंत्री मोदी की दूसरे कार्यकाल में भारत पहले से कहीं अधिक क्षत-विक्षत, घायल और लहूलुहान हुआ है। उसके दागदार चेहरे से विश्व के अन्य लोकतांत्रिक देश चिंतित हैं। नफरत, घृणा, हिंसा लगातार बढ़ रही है, बढ़ाई जा रही है। मोदी है तो मुमकिन है-सब कुछ मुमकिन है।

संकर्षण ठाकुर ने अभी अपने एक लेख ‘शैडोज डार्कन’, द टेलीग्राफ 5 फरवरी 2020 में सरकार को व्यवधान और अराजकता की प्रेरणा कहा है ।पिछले सोमवार 3 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा के अपने चुनावी भाषण में यह कहा – सीलमपुर हो, जामिया हो या फिर शाहीनबाग सीएए के विरोध में हो रहे प्रदर्शन महज एक संयोग नहीं, यह एक प्रयोग है। इसके पीछे राजनीति का एक ऐसा डिजाइन है जो राष्ट्र के सौहार्द को खंडित करने वाला है। साजिश करने वालों की ताकत बढ़ी तो फिर कल किसी और सड़क, किसी और गली को रोका जाएगा। हम दिल्ली को इस अराजकता में नहीं छोड़ सकते। इसके रोकने का काम सिर्फ दिल्ली के लोग कर सकते हैं। भाजपा को दिया गया वोट कर सकता है। प्रधानमंत्री के अनुसार प्रदर्शनकारी तिरंगे और संविधान की प्रतियों का उपयोग अपनी राजनीतिक डिजाइन की आड़ में कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का कोई भी कथन सामान्य नहीं होता। उसे डीकोड करने पर उसके वास्तविक अर्थ का पता चलता है।

भाजपा द्वारा शाहीन बाग को दिल्ली चुनाव का मुद्दा बनाना यह प्रमाणित करता है कि भाजपा वास्तविक और आवश्यक मुद्दों को किनारा कर ऐसे मुद्दों को सामने रखने में सिद्धस्त है जो एक साथ तात्कालिक और दूरगामी हित में होते हैं। शाहीनबाग दिल्ली का एक मुस्लिम बहुल इलाका है और वहां सीएए और एन आर सी के खिलाफ धरने पर बैठी और प्रदर्शनकारी महिलाओं में अधिक संख्या मुसलमान महिलाओं की है। शाहीनबाग की औरतें मजहब की रक्षा के लिए नहीं, भारतीय लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए प्रदर्शन कर रही हैं। अनेक विधिवेता और संविधान विशेषज्ञ यह लिख चुके हैं कि सीएए का आधार धार्मिक है और यह संविधान के विरुद्ध है क्योंकि वहां धार्मिक आधार का कोई महत्व नहीं है। बहुमत की सरकार को ऐसा निर्णय लेने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या अब वह कांग्रेसमुक्त भारत से मुस्लिममुक्त भारत की दिशा में आगे बढ़ रही है। मुस्लिममुक्त भारत से तात्पर्य उस भारत से है जिसमें मुसलमान या तो सत्ता- सरकार की शर्तों को स्वीकारें अथवा दोयम नागरिक के तौर पर रहे।

हकीकत यह है कि आज के भारत के निर्माण में मुसलमानों की भूमिका हिंदुओं से कम नहीं है। 1947 में हुआ देश का विभाजन भौगोलिक था। अब आंतरिक रूप से देश को विभाजित किया जा रहा है। भाजपा के लिए कर्म से कहीं अधिक धर्म महत्वपूर्ण है। संसदीय लोकतंत्र में चुनाव का सर्वाधिक महत्व है और इस चुनावी लोकतंत्र से सारे जरूरी मुद्दे गायब कर धर्म को एकमात्र मुद्दा बनाना लोकतंत्र के लिए कितना नुकसानदेह है, इसकी हम कल्पना कर सकते हैं।

दिल्ली का यह चुनाव अनेक दृष्टियों से विचारणीय है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास – अब कहीं नहीं है। बहुत कम नारे समय सीमा को लांघ कर अजर-अमर हो जाते हैं। वे नारे चुनाव जीतने के लिए नहीं होते। वे राजनीतिज्ञों द्वारा उस रूप में निर्मित नहीं होते, जिस रूप में राजनीतिक विचारकों द्वारा निर्मित होते हैं। भाजपा का दृश्य-श्रव्य माध्यमों पर एक प्रकार का कब्जा है। सोशल मीडिया पर उसने दिल्ली के वोटरों को ‘जागो’ और ‘गद्दारों/देशद्रोहियों को पहचानो’ का आह्वान कर दिल्ली को बचाने को कहा है। लगभग साढ़े चार मिनट का यह ट्विटर पोस्ट गीत की शक्ल में है – देख ये क्या हो रहा तुझे, वो मेरी दिल्ली/ढोंगी धरना दे रहे, उड़ा रहे हैं खिल्ली/अब जाग तू, छेड़ राग तू/घर से निकल, बुझा हर आग तू/… दिल्ली अब तू जाग ले/हर द्रोही तू पहचान ले/देश अपना अभिमान दे – इस ट्विटर में मुगलों और ब्रिटिशों के आक्रमण को याद किया गया है कि किस तरह उन्होंने अखंड भारत को विभाजित किया और अब किसी अगले विभाजन की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस गीत में यह भी कहा गया है कि अगर भारत शरीर है तो दिल्ली उसका प्राण, आत्मा है – बता दे तू, डराने कई आए थे/हराने कई आए थे/अखंड भारत में डाल गए दरार/फिर से वही हो, हमें नहीं कतई स्वीकार’।

भाजपा की पितृ संस्था आर एस एस मानसिक कब्जे पर अपना सारा ध्यान केंद्रित करता है। शिशु पाठशालाओं और शाखाओं का मूल उद्देश्य हमारी मानस निर्मिति है। उसके मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक पक्ष-प्रभाव पर एक साथ विचार करने की जरूरत है जिससे स्पष्ट किया जा सके कि उसमें इतनी वैचारिक कट्टरता और धार्मिक असहिष्णुता क्यों है? भाजपा की राजनीतिक संस्कृति एकदम भिन्न है। संसद हो या सड़क – स्थान से वहां कोई फर्क नहीं पड़ता। उसकी जड़े इतनी सख्त है कि महज पत्तों और डालियों से उसकी वास्तविक शक्ति का हम अनुमान नहीं लगा सकते। चुनाव जीतने और सत्ता में आने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। निर्वाचित मुख्यमंत्री को आतंकवादी कहने से एक साथ यह भी कहा जाता है कि सर्वत्र आतंक है और दिल्ली एक आतंकवादी मुख्यमंत्री के अधीन है। क्या ‘आप’ को पिछले चुनाव में जीत दिलाने वाले दिल्ली के सभी मतदाता आतंकवादी थे क्योंकि आतंकवादी ही आतंकवादी का साथ देता है। आतंकवादी, राष्ट्रद्रोही, अर्बन नक्सल आदि कहना इतना सामान्य हो चुका है कि यह अपना अर्थ तक नष्ट कर रहा है। बहुसंख्यक समाज को डराया जा रहा है कि अल्पसंख्यक उन पर राज करेंगे।

भाजपा में कोई किसी से कम नहीं है। वहां वाग्वीरों की कहीं अधिक संख्या है। दिल्ली से भाजपा के सांसद परवेश वर्मा को यह कहने में कोई हिचक नहीं कि शाहीनबाग वाले घरों में घुसकर बहनों, बेटियों से बलात्कार करेंगे। चुनावी भाषणों में दिए गए उत्तेजित वक्तव्य का एकमात्र आशय मतदाताओं में उत्तेजना उत्पन्न कर उन्हें अपने पक्ष में ला खड़ा करना है। शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों पर हमले का अर्थ हमारे विवेक, चिंतन, सोच और बुद्धि-विवेक पर भी हमला है। केन्द्रीय राज्यमंत्री अपने श्रोताओं को गोली मारने के लिए उत्तेजित करता है – देश के गद्दारों को/गोली मारो…..। दूसरी ओर एक मुख्यमंत्री भी कहता है – बोली से नहीं मानेगा, तो गोली से तो मान ही जाएगा।

भाजपा एक साथ गाली और गोली लेकर चल रही है। यह भयभीत करने वाली वह राजनीति है जहां हर प्रश्नकर्ता गद्दार, राष्ट्रविरोधी और अर्बन नक्सल है। गुंजा कपूर को प्रधानमंत्री फॉलो करते हैं और वह बुर्का पहनकर शाहीनबाग जाती है। दिल्ली चुनाव से स्थानीय मुद्दे, दिल्ली के निवासियों के मुद्दे गायब हैं। ध्रुवीकरण की राजनीति से किसी एक दल को तात्कालिक लाभ प्राप्त हो सकता है। प्रदेश पर उसका दूरगामी प्रभाव पड़ता है। हमारा भविष्य हमारे वर्तमान से निर्धारित होता है। बबूल का पेड़ बो कर हम आम के पेड़ की आशा नहीं कर सकते।

भाजपा का कमाल यह है कि वह स्वयं जो है, उसे दूसरों को बनाने में उसे देर नहीं लगती। वह सर्वाधिक झूठ बोलती है पर दूसरों पर मिथ्याभाषी होने का आरोप मढती है। उसका एक सांसद यह कहने में नहीं शर्माता कि गांधी को महात्मा कैसे, किसने और क्यों कहा? स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास पढ़ते समय इस सांसद महोदय का खून खोलने लगता है । सांसद हेगड़े नाथूराम गोडसे के पहले से प्रशंसक हैं। अपने कहे से मुकरना और खेद प्रकट करना अब सामान्य बात है। इससे सब कुछ धुल-पुंछ जाता है, पर मस्तिष्क में जो भरा जाता है वह सब दूर नहीं कर सकते।

शाहीनबाग को चुनाव का मुद्दा बनाने से यह स्पष्ट है कि भाजपा के पास सांप्रदायिकता के अतिरिक्त और कोई मुद्दा नहीं है। भाजपा ने भारतीय राजनीति का चेहरा विकृत कर डाला है। उन्माद, उत्तेजना, धर्मांधता, सांप्रदायिकता, नफरत, हिंसा ही उसके लिए सब कुछ है जिससे न शरीर बचेगा आत्मा बचेगी। दिल्ली का मुख्यमंत्री अगर आतंकवादी है तो केंद्र की सरकार चुप क्यों है? शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, रोजगार आदि के सवाल भाजपा के लिए बेमतलब और बेमानी है। वह जो कहती है वही सच है। उसका आदेश ही सब कुछ है। उससे सवाल पूछना, प्रश्न करना गुनाह है। जो उसके साथ नहीं है, वह गद्दार है और देशद्रोही है। अर्थात देश की चिंता केवल एक विशेष राजनीतिक दल को है जिसका मुखिया देश का पर्याय है । मुसलमान को बार-बार निशाना बनाना हिंदू एकता को विकसित करना है, पर सभी हिंदू क्या भाजपा और मोदी के संग और मोहन भागवत के समर्थक हो सकते हैं?

हिंदुत्व की राजनीति फिलहाल उफान पर है और दूसरी ओर जनता इन तमाम चालों  के असली मकसद से पहले की तरह अपरिचित नहीं है। वह जानती है कि सीएए मुसलमानों, दलितों, गरीबों और आदिवासियों के विरुद्ध है। जो कश्मीर में किया गया उसे अभिन्न रूप में देश में किया जा रहा है, जो एक आत्मघाती कदम है।
ठीक दिल्ली चुनाव के समय केंद्रीय कैबिनेट ने परसों राम मंदिर ट्रस्ट बनाने को मंजूरी दे दी – चुनाव के मात्र दो दिन पहले जिसका मतदाताओं पर धार्मिक प्रभाव पड़े। स्थान और तिथि विशेष के चयन में भाजपा बेजोड़ है। वह एक साथ सभी हथियारों का इस्तेमाल करती है। उसकी चुनावी कला उसके लिए फायदेमंद हो सकती है, देश के लिए नहीं। दिल्ली चुनाव में भाजपा का प्रचार-अभियान अन्य सभी प्रचार-अभियानों से भिन्न है। इसने घिनौनी राजनीति की शक्ल सामने रख दी है। भाजपा का वास्तविक एजेंडा जो संघ का एजेंडा है सामने आ चुका है। लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की बात करने वाले उसकी दृष्टि में गद्दार, साजिशकर्ता और राष्ट्रविरोधी हैं। ऐसी अकड़ तो इंदिरा गांधी में भी नहीं थी। भारत से विपक्ष गायब है। जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार शाह के साथ दिल्ली चुनाव में भाषण दे रहे हैं। संस्थाएं लगभग नष्ट हो चुकी हैं। उनकी ठाठरी बची है आत्मा गायब है। दिल्ली का चुनाव अपने साथ अनेक प्रश्नों को लेकर संपन्न होगा। इससे मतदाताओं की परीक्षा होगी। दो करोड़ की आबादी वाली दिल्ली में अगर आज शाहीनबाग ही सब कुछ है तो यह स्पष्ट है कि प्रदर्शनकारियों, जो कि देश के अनेक हिस्सों में हैं, की अपनी अहमियत है क्योंकि वे लोकतंत्र और संविधान की हिफाजत के लिए सड़कों पर उतरे हुए हैं। लोकतंत्र और संविधान को बचाना आज के भारत की सबसे बड़ी जरूरत है। दिल्ली के चुनाव का इसलिए आज कहीं अधिक महत्व है।

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