‘ गौरैया धूप की ’ का हुआ लोकार्पण
कानपुर। जन संस्कृति मंच, कानपुर के तत्वावधान में सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ प्रभा दीक्षित के नवगीत संग्रह ‘गौरैया धूप की’ का लोकार्पण समारोह सिटी क्लब, कानपुर में 30 सितम्बर को आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता जनकवि कमल किशोर श्रमिक ने की। यह आयोजन शहीद भगत सिंह के 111 वें जन्मदिवस के अवसर पर था।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में श्रमिक ने कहा कि प्रभा दीक्षित के काव्य में क्रमिक विकास हुआ है। उसी का उदाहरण उनका यह नवगीत संग्रह है। भारतीय नारी के अन्तर मन को इनके गीतों में देखा जा सकता है। नारी की समस्याओं के साथ यहां आम आदमी की समस्याएं भी हैं। सामाजिक प्रतिबद्धता भी साफ दिखती हैं। इनके गीतों में कलात्मकता व वैचारिकता का मणि कांचन संयोग है।
समारोह के मुख्य अतिथि कवि व आलोचक प्रो राजेन्द्र कुमार थे। अपनी अस्वस्थता की वजह से वे कार्यक्रम में नहीं पहुंच पाये लेकिन उन्होंने अपना लिखित संदेश भिजवाया जिसे पढ़ा गया। उनका कहना था कि पहले घरों में आंगन हुआ करता था जहां गौरैया फुदका करती थी। पर आज हवा भी इस काबिल नहीं रह गयी कि गौरैया उसमें सांस ले सके। प्रभा दीक्षित के गीत आश्वस्त करते हैं कि श्रमशीलता अब भी एक संभावना है। इन गीतों में धूप भी है, चांदनी भी और बदरी भी।
दिल्ली से आये वरिष्ठ गीतकार राधेश्याम बंधु ने कहा कि 1950 के बाद छायावाद के गीतों में जो ठहराव आया उससे नवगीतों का विकास हुआ। यह निराला से शुरू होता है। नयी कविता में जो प्रयोगवाद आया उसने कविता को आम पाठकों से दूर किया। नवगीतों ने जोड़ने का काम किया। प्रभा दीक्षित के गीत इसके उदाहरण है। यहां स्त्रियों के साथ हाशिये के समाज को भी स्वर मिला है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि जसम के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कवि कौशल किशोर थे। उनका कहना था कि गीतों की समृद्ध परम्परा में ही नवगीतों का विकास हुआ। नवगीतों में वही आधुनिक भावबोध व यथार्थ व्यक्त हुआ जो समकालीन कविता में हुआ है। लेकिन इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि आलोचकों ने कविता पर विचार किया लेकिन नवगीतों पर वैसा नहीं हुआ। प्रभा दीक्षित के गीतों की यात्रा मोहब्बत से शुरू होती है और इंकलाब तक जाती है। इनके गीत स्त्रीवादी न होकर जनवादी हैं पुरुष विरोधी न होकर व्यवस्था विरोधी है।
प्रभा दीक्षित के नवगीत संग्रह ‘गौरैया धूप की’ पर चर्चा का आरम्भ कवि व आलोचक डॉ राकेश शुक्ल ने की। उन्होंने कहा कि लोकगीतों में लोकजीवन आया है। सांस्कृतिक चेतना के विस्तार में गीत, गजल और नवगीत लिखे गये। प्रभा दीक्षित के नवगीत संग्रह में शोषित स्त्री है तो सर्वहारा भी है। इनमें संवेदना की जो गहराई है, वह गीतों को गहन और मर्मस्पर्शी बनाती है।
प्रगतिशील लेखक संघ के डॉ आनन्द शुक्ला का कहना था कि कविता का काम मनुष्य को बेहतर बनाना है। प्रभा दीक्षित के गीत व्यापक मनुष्यता के भावबोध की कविताएं हैं। यहा एक तरफ समाज में जो अवमूल्यन है, वह दिखता है, वहीं नये मूल्यों की रचना के प्रति सचेष्ट है। चर्चा में जी पी मिश्र, नीलम चतुर्वेदी आदि ने भी अपने विचार रखे। शुरू में सतीश गुप्ता ने डॉ प्रभा दीक्षित साहित्य यात्रा और उनका जीवन परिचय दिया। कार्यक्रम का संचालन प्रताप साहनी ने किया।
इस मौके पर हुई संक्षिप्त कविगोष्ठी की अध्यक्षता प्रभा दीक्षित ने की तथा संचालन किया सुरेन्द्र श्रीकर ने। कमल किशोर श्रमिक, प्रभा दीक्षित, विमल किशोर, जयराम जय, नीलम चतुर्वेदी, नारायण दास मानव, कुसुम अविचल, राधा शाक्य, मधु श्रीवास्तव, दिलीप दुबे, निधि पाल आदि ने अपनी कविताओं का आस्वादन कराया। सभी अतिथियों व आगन्तुकों का डॉ प्रभा दीक्षित ने धन्यवाद ज्ञापन किया।