जयप्रकाश नारायण
दो-तीन दिन से यह खबर प्राथमिकता में चल रही है, कि बनारस में एक महीने तक तमिल संस्कृति की विशेषताओं को रेखांकित करता हुआ विशाल सरकारी आयोजन हो रहा है। लोगों से अपील की जा रही है कि आप आइए तमिल संस्कृति का आनंद लीजिए।
इस आयोजन का नाम काशी-तमिल संगमम रखा गया है। इस बिंदु पर बार-बार जोर दिया जा रहा है कि समारोह में प्रधानमंत्री भी शिरकत करेंगे।
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, योगी आदित्यनाथ सहित सरकारी अमला पहले से ही यहां डेरा डाले हुए हैं। जिला प्रशासन और उत्तर प्रदेश सरकार आयोजन को सफल बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।
कल बाबतपुर हवाई अड्डे पर तमिलनाडु से आए हुए 9 आधीनम धर्मगुरुओं का जिस तरह से स्वागत किया गया, वह भारत के लोकतंत्र के बचे सारे मूल्यों की धज्जियां उड़ा रहा था।
काशी-तमिल संगमम में आए धर्मगुरुओं के सम्मान में गंगा आरती के दौरान 1001 दीपों से दीपावलियां बनाई गई। केंद्रीय मंत्री मुरुगन और तमिलनाडु के राज्यपाल चेन्नई से अतिथियों के लिए हरी झंडी दिखाकर ट्रेनों को रवाना कर रहे हैं। जैसे लगता हो भारतीय राज्य के पास इसके अलावा और कोई जनहित का कार्य शेष नहीं बचा है।
अचानक “हिंदी हिंदू हिंदुस्थान”और “एक राष्ट्र एक संस्कृति” का माला जपने वाला संघ परिवार और भाजपा में तमिल संस्कृति के प्रति प्रेम का तूफान क्यों उमड़ पड़ा है ?
यह एक जटिल पहेली है, जिसे समझने की जरूरत है। यह भारतीय लोकतंत्र को बचाए रखने और भारत की विविधता और संघात्मक भारत की रक्षा के लिए बेहद जरूरी है।
विदित हो, कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा दक्षिण भारत से ही शुरू हुई थी और उसे भारी समर्थन मिला था। इसके बाद ही संघ और मोदी सरकार दक्षिण भारत को लेकर सक्रिय हो गए।
यह निर्विवाद है कि भारत में जितनी भी भाषा संस्कृतियां पल और बढ़ रही हैं उसमें तमिल संस्कृति का इतिहास सबसे प्राचीन और समृद्ध रहा है। तमिल भाषा और संस्कृति का सकारात्मक ऐतिहासिक विकास ईसा पूर्व से ही भारत में चला आ रहा है।
ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी में ही तमिल में पहला महाकाव्य लिखा गया। अपनी भाषा, साहित्य, कला और जीवन प्रणालियों के चलते तमिल लोग अपनी विशिष्ट पहचान प्रदर्शित करते हैं। इसको लेकर उनमें एक जागृति भी दिखती है।
स्वाभाविक है कि तमिल संस्कृति भारत के अन्य संस्कृतियों की तरह एक श्रेष्ठ मानवीय और गत्यात्मक संस्कृति है। जो दो हजार वर्ष के पहले से लगातार सांस्कृतिक धारावाहिकता बनाए हुए विकसित हो रही है तथा आधुनिक, लोकतांत्रिक मूल्यों से समृद्ध और सुदृढ़ हो रही है।
निश्चय ही आदि शंकर के आने के बाद ब्राह्मणवादी वर्ण व्यवस्था का प्रभाव दक्षिण भारत में भी बढ़ा। जिससे तमिल संस्कृति भी अछूती नहीं रही। दक्षिण भारत में जाति व्यवस्था का क्रूरतम स्वरुप था।
आधुनिक भारत का विकास स्वतंत्रता संघर्ष से अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ है। तमिलनाडु के नवजागरण की शुरुआत सुब्रमण्यम भारती, पेरियार रामास्वामी नायकर, अन्नादुरई और बहुत से सुधारवादी रेडिकल नेताओं के आविर्भाव के साथ हुआ।
जिन्होंने तमिल समाज को अंदर से उद्वेलित और जागृत कर उसे आधुनिक जीवन मूल्यों से जोड़कर समृद्ध किया। तमिलनाडु में ही सबसे ज्यादा गहरी वैचारिक चोट भाग्य, भगवान और ब्राह्मणवाद के ऊपर हुई।
स्वतंत्रता आंदोलन के विकास के कारण दक्षिण में चले सुधारवादी आंदोलन से 1925 में द्रविड़ कड़गम पार्टी की स्थापना हुई।
यह विशेष रूप से ध्यान देने की बात है द्रविड़ आंदोलन पश्चमुखी नहीं था। वह यूरोप में संपन्न हुई औद्योगिक क्रांति से लोकतांत्रिक मूल्य और भौतिकवादी चेतना ग्रहण कर रहा था।
साथ ही महाराष्ट्र तथा हिंदी प्रदेश के स्वतंत्रता आंदोलन की हिंदू प्रतीकवादी विचारधारा के निषेध पर खड़ा था।
जिसका बुनियादी आधार भौतिकवादी चिंतन और तर्कवादी दर्शन के साथ निर्मित हुआ था। जिस कारण तमिलनाडु में सामाजिक सुधारों की जड़ें बहुत गहराई तक गई। जिस कारण वर्ण और जाति व्यवस्था कमजोर हुई और एक टिकाऊ सामाजिक आंदोलन खड़ा हुआ। जिससे पिछड़ी और दलित जातियों में ब्राह्मणवाद विरोधी उभार आया। द्रमुक इस आंदोलन का राजनीतिक प्रतिनिधित्व करता है।
अकाली आंदोलन, जो धर्म आधारित था। जिससे निकले अकाली दल को पीछे छोड़ते हुए द्रविड़ आंदोलन भारत में चले सभी सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलन से टिकाऊ रेडिकल और आधुनिक मूल्यों वाला है।
इसलिए द्रमुक एक स्थायी राजनीतिक परिघटना तमिलनाडु में बन गई। जो 1967 ई. से कई विभाजन के बाद भी तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज है और द्रविड़ आंदोलन का सामाजिक आधार टिका हुआ है। उसका वैचारिक, भौतिकवादी, नास्तिक तत्व आज तक जिंदा है।
यही वह बिंदु है जहां से तमिलनाडु की पहेली संघ-भाजपा के लिए अबूझ बनी हुई है। भारत में वाम पार्टियों को छोड़कर जितने भी सामाजिक भागीदारी और पहचानवादी राजनीतिक सांस्कृतिक धाराएं हैं उन्हें जीत लेने में भाजपा-संघ को कोई दिक्कत नहीं हुई।
यहां तक कि पूर्वोत्तर के अलगाववादी , पंजाब के अलगाववाद समर्थक अकाली दल और कश्मीर में पीडीपी जैसे दलों के साथ सरकार बनाकर उन्हें अप्रासंगिक बना दिया।
संघ भाजपा ने इस खेल में महारत हासिल कर ली है। लेकिन अभी तक भाजपा द्वारा सभी षड्यंत्रकारी हथकंडे और सत्ता की ताकत का प्रयोग कर भी द्रमुक को कमजोर कर तमिलनाडु की जनता का समर्थन हासिल नहीं किया जा सका।
आज क्षेत्रीय और पहचानवादी विपक्षी सरकारों और पार्टियों में एकमात्र द्रमुक ही ऐसी पार्टी है जो भाजपा-आरएसएस के खिलाफ सीधे मुठभेड़ में शामिल है। हालांकि भारत में फासीवाद की बढ़ती ताकत के मद्देनजर दक्षिण के कई राजनीतिक पार्टियों में संघ-भाजपा विरोधी प्रवृति बलवती होती जा रही है।
संघ परिवार को पता है कि दक्षिण में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए तमिल आंदोलन और तमिल पार्टियों को नेस्तनाबूद करना जरूरी है।
भाजपा समझ चुकी है कि दक्षिण विजय का अभियान कर्नाटक के रास्ते नहीं तमिलनाडु के ही रास्ते आगे बढ़ेगा ।
इसलिए सरकारी धन का दुरुपयोग करते हुए और धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाते हुए काशी में एक महीने तक तमिल संगमम का आयोजन संघ भाजपा के द्वारा किया जा रहा है।
इसे भव्य इवेंट में बदलने की कोशिश की जा रही है। जिससे यह बताया जा सके कि तमिल संस्कृति भी ब्राह्मणवादी संस्कृति का अभिन्न अंग है।
काशी-तमिल संगमम इवेंट और राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई को इन संदर्भों में देखने से पहेली खुलती नजर आती है।
संघ के लिए सत्ता प्राप्ति का लक्ष्य कोई नैतिक लोकतांत्रिक कर्तव्य पूरा करने के लिए नहीं है। इसलिए वह सत्ता के लिए सिद्धांतहीन समझौते खतरनाक से खतरनाक षड्यंत्र और सत्ता के नग्न दुरुपयोग के हद तक जाते हैैं।
विचारधारा और चरित्र की शुचिता की लाख दुहाई देने के बावजूद संघ ने कभी लोकतांत्रिक और संवैधानिक मानदंडों का सम्मान नहीं किया है।
भाजपा के ‘चाल चरित्र चलन’ की भिन्नता इन्ही अर्थों में देखी जानी चाहिए। जो लोकतांत्रिक मूल्यों के विध्वंस की तरफ निर्देशित होती हैं। साथ ही, समाज में गैर बराबरी नफरती, विभाजनकारी और दमनात्मक ढांचे को बनाए रखने के लिए काम करती हैं।
आज के समय में संघ-भाजपा कारपोरेट के साथ गठजोड़ करके आक्रामक विध्वंसक और नृशंस हो चुके हैैं। यह भारत की जनता के लिए अशुभ संकेत है।
यह गठजोड़, नरसंहार, दंगों, षड्यंत्रों के साथ विरोधियों के चरित्र हनन से लेकर भौतिक, शारीरिक रूप से उन्हें खत्म करने के किसी भी अभियान तक जा सकता है। इसलिए उसे आतंकवादियों, अलगाववादियों और समाज विरोधी तत्वों के साथ समझौता करने, उन्हें प्रश्रय देने तथा उन्हें हर तरह के सहयोग करने में हिचक नहीं होती है। बल्कि यह इनकी रणनीति और कार्यनीत का स्वाभाविक चरित्र है।
ध्यान दें कि पूर्वोत्तर भारत के सभी अलगाववादी संगठन इस समय भाजपा सरकारों के साथ हैं। इन अलगाववादियों को मिजोरम, मेघालय, असम, नागालैंड जैसे राज्यों में बढ़ावा मिल रहा है।
त्रिपुरा में उग्रवादियों के बढ़ते प्रभाव और पूर्वोत्तर में बढ़ रही आतंकवादी गतिविधियों और विभिन्न राज्यों के पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों में हो रहे टकराव को भाजपा के साथ रिश्तों के संदर्भ में भी देखा जा सकता है।
यही नहीं, जिस कश्मीर को लेकर भाजपा ने इतने होहल्ले और दुष्प्रचार अभियान चलाए। आज उसी कश्मीर में अलगाववादी संगठनों के साथ भाजपा के बहुत मधुर रिश्ते हैं।
कई बड़े अलगाववादी नेता भाजपा के लिए काम करते हुए पाए गए हैं। कई तो सीधे भाजपा में शामिल हो चुके हैं और उनके यहां से गैरकानूनी हथियार गोला बारूद भी बरामद हुए हैं। जिसे छिपाने का जघन्य राष्ट्र विरोधी अपराध कारपोरेट मीडिया कर रहा है।
चुनाव के पहले पीडीपी को भाजपा आतंकवादियों की हमदर्द और भारत विरोधी घोषित करती थी। चुनाव के बाद उसी के साथ सरकार बनाने और कश्मीर में अपनी ताकत बढ़ाने ने उसे कोई हिचक नहीं हुई।
इस तरह भाजपा और संघ के इतिहास को गंभीरता से देखें तो आप परख और समझ सकते हैं कि भाजपा किस तरह भारत विरोधी, समाज विरोधी राजनीतिक ताकत के साथ अपना रिश्ता सुदृढ़ कर उनका उपयोग अपने कारपोरेटपरस्त लोकतंत्र विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने में करती रही है।
एक अपुष्ट खबर के अनुसार राजीव गांधी हत्याकाण्ड में बहुचर्चित हुई नलिनी भाजपा में शामिल होंगी और तमिलनाडु में उसको बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी। हकीकत क्या है, आने वाला समय बताएगा।
यह आश्चर्य नहीं होगा कि आने वाले समय में तमिलनाडु में अलगाववाद को बल मिले। अलगाववादी ताकतों के साथ संघ-भाजपा के रिश्ते गहरे हों और उनके सहयोग से तमिलनाडु में हिंदुत्व की ब्राह्मणवादी, वर्णवादी विचारधारा को फिर से पुनर्जीवित करने की कोशिश की जाए।
काशी-तमिल संगमम इसी का एक नग्न और खुला प्रयास है। जिसे ब्राह्मणवादी संस्कृति के साथ जोड़कर महिमामंडित करने की कोशिश हो रही है।
हो सकता है, कि राजीव गांधी के हत्यारों को न्यायालय ने कानूनी आधार पर रिहा किया हो। लेकिन संघ-भाजपा ने तमिलनाडु में अपने षड्यंत्रकारी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इस रिहाई की घटना को लपक लिया है।
इससे आने वाले समय में तमिल समाज और संस्कृति के लिए गंभीर खतरा खड़ा होगा। भाजपा का यह अभियान तमिलनाडु तक ही सीमित नहीं रहेगा। बल्कि दक्षिण के सभी संस्कृतियों, भाषाओं और समाजों के साथ राज्यों के लोकतांत्रिक ताने-बाने को प्रभावित करेगा।
पूर्वोत्तर भारत की तरह दक्षिण भारत के पांचों राज्यों को भी हिंदुत्व की परियोजना के अधीन खींच लाने की कोशिश तेज हो गई है।
इसलिए दक्षिण भारत के सभी राजनीतिक दलों, लोकतांत्रिक संस्थाओं और व्यक्तियों को समय रहते सचेत हो जाना चाहिए और भाजपा के हिंदुत्व-कारपोरेट गठजोड़ के विध्वंसक राजनीति को शिकस्त देने के लिए एकताबद्ध हो जाना चाहिए।
(जयप्रकाश नारायण मार्क्सवादी चिंतक तथा अखिल भारतीय किसान महासभा की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रांतीय अध्यक्ष हैं)
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