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कविता संग्रह ‘पोतराज’ : समकाल के क्रूर यथार्थ को रचने वाली कविताएं

लखनऊ। जन संस्कृति मंच की ओर से 28 अक्टूबर को यूपी प्रेस क्लब में कवि वल्लभ के तीसरे कविता संग्रह ‘पोतराज’ पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता मंच की लखनऊ इकाई के अध्यक्ष कवि-आलोचक चन्द्रेश्वर और राज्य इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष कवि कौशल किशोर ने की। आरम्भ में वल्लभ ने अपनी रचना प्रक्रिया और काव्य यात्रा के बारे में बताया तथा अपनी चार कविताएं सुनाईं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि-आलोचक चन्द्रेश्वर ने कहा कि कवि वल्लभ अपने नए कविता संग्रह ‘पोतराज’ की कविताओं में एक विकट प्यासे समय की शिनाख़्त करते दिखाई पड़ते हैं । वे सुबह की ख़्वाहिश में तमाम संभावनाओं को पुनर्जीवित करना चाहते हैं ।

वल्लभ की कविताओं में समकालीन हिंदी कविता के चालू मुहावरों और कहन की घिसी-पिटी शैली से सायास बचने की एक कोशिश और जद्दोजहद भी दिखाई देती है। उनकी अनेक कविताओं के रचे जाने के पीछे जीवन की उदास एवं विषाद युक्त स्मृतियों की बड़ी भूमिका है । वे इसी दुनिया में जूझने और जीने-मरने के संकल्पों से भरे कवि हैं जहां मृत्यु राग भी जीवन के प्रसंगों से ही जुड़ा होता है।

इस मौके पर हिमाचल से आये चर्चित कवि गणेश गनी ने कहा कि वल्लभ की कविताओं में अतीत, वर्तमान और भविष्य वाली दृष्टि की साफ झलक दिखायी देती है । कविता दरअसल बचपन की स्मृतियों का प्रतिबिंब होती है। वल्लभ वर्तमान के चौपाल पर बैठकर अपनी स्मृतियों में गुजरते हुए भविष्य के आखिरी दिनों के दृश्यों का सच्चा सौदा करने वाला कवि है। वल्लभ मुश्किल प्रतीकों, रूपकों और बिम्बों के कवि हैं मगर शिल्प और शैली को सरलता से साधकर एक अलग भाषा का आविष्कार किया है।

गोरखपुर से आये युवा आलोचक आनन्द कुमार राय ने कहा कि वल्लभ की कविताओं से प्रारम्भिक परिचय कुकनुस से हुआ। कुकनुस का कवि पूरी तरह रूपांतरित कवि है। कुकनुस मे कवि जिस ‘फार्म’ को पाता है पोतराज उसका बिल्कुल क्रिस्टलीय रूप है। यहाँ यह कह देना गलत नही होगा कि यह काफी कठिन है, कवि कार्य की दृष्टि से भी और पाठक के दृष्टि से भी।

पटना (बिहार) से आये कवि-समीक्षक सुनील श्रीवास्तव ने अपने वक्तव्य में कहा कि वल्लभ की कविताएँ गहन आत्मावलोकन और आत्मालोचन के जरिए जीवन दृष्टि की तलाश करती कविताएँ हैं। कवि ने अतीत की भूली हुई कड़ियों को वर्तमान से जोड़ने की कोशिश की है ताकि भविष्य का रास्ता दिख सके। वल्लभ ने अपनी कविताओं में सारी प्रचलित धाराओं की अवहेलना करते हुए अपने अनुभवजन्य सच के साथ खड़ा होने का साहस दिखाया है। वल्लभ के काव्य शिल्प पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि इस कवि की काव्यकला का परास बहुत बड़ा है जिसमें उर्दू साहित्य की परंपरा भी है और आम आदमी की बोली के मुहावरे भी।

कार्यक्रम का संचालन अजीत प्रियदर्शी ने किया तथा उनके बीज वक्तव्य से ही परिचर्चा का आरंभ हुआ। उनका कहना था है कि कवि यर्थाथ का भागीदार तो है ही, वह शास्त्रों और धर्म की अबूझ गांठें भी खोलता है। पोतराज की तरह जिंदगी में निरंतर कोड़े खाते लोग निरंतर दुख, अकेलेपन, तनाव और अवसाद की मनःस्थिति से गुजरते हैं, यह आज के संवेदनहीन समय की सच्चाई है, जिन्हें इनकी कविताओं में देखा जा सकता है। मुक्तिबोध के ‘अंधेरे में’ सत्ता का जैसा आतंक है, वैसा ही आतंक वल्लभ की कविताओं में है।

कार्यक्रम का समाहार करते हुए कवि कौशल किशोर ने कहा कि वल्लभ क्या लिखा जाए तथा कैसे लिखा जाए को लेकर सजग व सचेत कवि हैं। उनके संग्रह ‘पोतराज’ की कविताएं एक नया वितान रचती हैं। इन्हें पढ़ते हुए शमशेर, मुक्तिबोध, त्रिलोचन याद आ सकते हैं। यह कविताएं इक्कीसवीं सदी के पोस्ट ट्रुथ काल की हैं। कॉविड-19 के क्रूर यथार्थ को रचने वाली कविताएं हैं। यह दौर है जब झूठ ही सच है। छल, छद्म व पाखंड ही नैतिकता है। मूल्यहीनता ही मूल्य है। विचारहीनता ही विचार है। वल्लभ की कविता में जीवन के लय के टूटने की वेदना है तो भोर की उम्मीद भी है। चतुर बौद्धिकता के विरुद्ध छोटी छोटी कोशिशों में इनका भरोसा है।

सुधीर सुमन नहीं आ पाये थे लेकिन अपना विचार लिखित रूप से भेजा। उनका कहना था कि वल्लभ की कविताओं में असंतोष और अतृप्ति का स्वर बहुत तीव्र और व्यापक है। उनकी कविताओं में सामाजिक संबंधों, प्रेम, राजनीति, अर्थव्यवस्था, बौद्धिकता और व्यवस्था के पूरे ढांचे के प्रति गहरा क्षोभ है। लेकिन इस कवि के भीतर गहरा सामाजिक दायित्वबोध भी है, जिसे संग्रह की शीर्षक कविता ‘पोतराज’ के अतिरिक्त ज्यादातर कविताओं में देखा जा सकता है। कवि के पास अपने मूल्य और आदर्श हैं, जिनका निरंतर सर्वव्यापी पाखंड, बनावटीपन और संवेदनहीनता से टकराव है।

आरंभ में जन संस्कृति मंच लखनऊ के सचिव फरजाना महदी ने अतिथियों, वक्ताओं और सभी साहित्य सुधी श्रोताओं का स्वागत किया । सह सचिव कलीम खान ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस मौके पर शैलेश पंडित, भगवान स्वरूप कटियार, असगर मेहदी, शहजाद रिजवी, बन्धु कुशावर्ती, विमल किशोर, अवंतिका सिंह, सीमा राय द्विवेदी, रत्ना श्रीवास्तव, नीरजा हेमेन्द्र, कल्पना पांडेय, पल्लवी मिश्र, इंदु पाण्डेय, प्रताप दीक्षित, अशोक वर्मा, आशीष सिंह, राम किशोर, अरुण सिंह, अतुल अरोड़ा, अशोक श्रीवास्तव, अखिलेश श्रीवास्तव चमन, राकेश कुमार सैनी, रामायण प्रकाश, दीपक कबीर, अरविन्द शर्मा, मोहित पांडेय, ज्योति राय, वीरेंद्र त्रिपाठी, धनंजय शुक्ला, प्रभात त्रिपाठी आदि मौजूद थे।

 

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