गीत चतुर्वेदी
नवीन रांगियाल की कविताएँ पढ़ते हुए प्राचीन संस्कृत काव्यशास्त्र की सहज स्मृति हो जाती है। नवीन अपनी कविता में हर अक्षर, हर शब्द को परिभाषित करना चाहते हैं, उनके बीच की दूरी में घर बनाकर रहना चाहते हैं, उनके बीच क़ुरबत में अपने लिए एक नया अर्थ प्राप्त करना चाहते हैं। हर अक्षर को परिभाषित करना, संस्कृत काव्य की एक सुंदर प्रवृत्ति थी। उदाहरण के लिए, आदि शंकराचार्य रचित अति-प्रसिद्ध शिव पंचाक्षर स्तोत्र, जिसमें नमः शिवाय के न, म, श, व और यकार की विशेषताओं को जताने के लिए अलग-अलग श्लोक हैं।
नवीन इतने वैभव और विस्तार में नहीं जाते, लेकिन उनका प्रयास इसी परंपरा में खड़ा होता है, जब वह ज़िंदगी में ‘न’ की बिंदी, इश्क़ के आधे ‘श’ और इंतज़ार में लगी ‘आ’ की मात्रा को एक अर्थ देते हुए कहते हैं कि ये सब तुम हो।
किसी ने कहा था कि संसार का हर संबंध प्रेम के होने और न होने से प्रभावित होता है। जब नवीन अपनी कविताओं में चीज़ों, विशेषताओं और विशेष्यों को तुम की तरह परिभाषित करते हैं, तब वह प्रेम की इसी केंद्रीयता को रेखांकित करते हैं।
प्रेम नवीन की कविताओं का अर्क है। उसके बिना वह कविता की कल्पना नहीं कर पाते होंगे। दुनिया का सारा प्रेम अभी किया नहीं गया है, दुनिया की सारी कविताएँ अभी रची नहीं गई हैं, लेकिन नवीन की नज़र से कहें, तो “जो भी कविताएँ लिखी गईं, वे लिखे जाने का शिकार हो गईं।”
“कविताएँ तक तक ही सुंदर थीं, जब तक उन्हें उगाया नहीं गया था बंजर काग़ज़ों पर…”
यह पंक्ति प्राप्त और प्रदत्त को प्रश्नांकित करती है। जो संभव हो गया है, जो बन चुका है, कवि उससे अधिक उसमें विश्वास करना चाहता है, जो अभी तक संभव न हुआ हो। नवीन में स्वाभाविक रूप से अप्राप्त और अज्ञेय के प्रति उत्सुकता है। यह उनके व्यक्तित्व और कविता को संभावनाओं से प्रतिबद्ध बनाता है। हर नई संभावना के प्रति एक उत्सुक निगाह रखने की अन्वेषी कवि-आदत! जो कवि नहीं हैं, कविता को उन उदास लड़कों की तरफ़ से देखने की कोशिश! वाक्य को कॉमा, बिंदी की निगाह से देखने की कोशिश!
नवीन की कविताएँ सबसे कोमल चीज़ों का एक नैरेटिव हैं, वे कोमल चीज़ें, जिन्हें सबसे पहले कुचला जाता है।
आमतौर पर कहा जाता है कि कविताएँ दिल से निकलती हैं और दिल को छूती हैं। प्रेम के बारे में भी यही बात कही जाती है। नवीन रांगियाल की विशेषता है कि वह ख़ुद को दिल और दिमाग़ से सूत-भर हटाते हुए मन पर जमाते है। मन नहीं होते तो दुनिया कहाँ रहती? जैसी एक निर्दोष, मासूम पंक्ति उनकी कविताओं में अचानक नहीं आती, अंतर्धारा की तरह अदृश्य इसकी एक प्रक्रिया अधिकांश कविताओं में अनवरत चलती जान पड़ती है। मन नवीन की कविताओं का मानचित्र है।
नवीन अपनी कविताओं के भीतर एक ऐसा क्रोध रखकर चलते हैं, जो हाल की कविताओं में सहज रूप से नहीं दिखता। हालांकि इसके प्रदर्शन के लिए वह किसी तरह की सामाजिक, राजनीतिक विषयावली को नहीं पुचकारते, लेकिन कुछ सर्वमान्य रीतियों को दुत्कार कर कविता और मन के आंगन से बाहर अवश्य कर देना चाहते हैं।
नवीन लंबे समय से पत्रकारिता और संपादन से जुड़े हैं। ‘एडीटिंग’ शीर्षक कविता उनके इसी कौशल को दिखाती है। वह संपादन कर ज़िंदगी को थोड़ा छोटा बना देना चाहते हैं। भाषा उनके लिए क्रीडांगण हैं। वह इस दिशा में सतत जागरूक हैं। जैसे कोई महबूब की गली में बार-बार जाता है, वह इस गली बार-बार पहुँचते हैं।
पत्रकारिता और संपादन की समझ नवीन की कविताओं को शब्दों के प्रति मितव्ययी बनाती है। एक कवि के रूप में उन्हें अच्छी तरह पता है कि किस जगह जाकर रुक जाना चाहिए। पाठक को शब्दों का लबालब ओवरडोज देने से अच्छा है कि उन्हें थोड़ा-सा प्यासा छोड़ दिया जाए। इससे पाठकीय कल्पनशीलता कविता के अर्थों में चार चाँद लगा देती है। कवियों में यह गुण लगातार दुर्लभ बनता जा रहा है।
‘इंतज़ार में आ की मात्रा’ पढ़ते हुए यह भरोसा हो जाता है कि हम एक होनहार कवि के साथ पाठकीय संगत कर रहे हैं, जो जीवन, भाषा और प्रेम को अलग समझ से देखता है, जिसके पास हुनर है कि कलाई पकड़कर वह पाठक को अपनी कविता की गुफ़ा में ले आए, उसकी भित्तियों पर बने शब्दचित्रों को दिखाए। नवीन रांगियाल उन कवियों में हैं, जिन्हें हिन्दी कविता का संसार उम्मीद और उत्सुकता से देख रहा है।
नवीन रंगियाल की कविताएँ
1. गलत जगह
जो फूल उसे देने के लिए चुने थे
उन्हें देवताओं के सिर पर चढ़ा आया
कुछ मोगरे अर्थियों पर रख दिए मैंने
जिन्हें अपने जूड़े में लगाना चाहती थी वो
मैं प्रेम और मृत्यु में फर्क नहीं कर सका
मैंने हमेशा गलत जगहों पर फूल रखे.
2. तुम्हारे होने की आवाज
पत्थर दुनिया की सबसे ईमानदार स्थिति
नींद सबसे धोखेबाज़ सुख
तुम मेरी सबसे लंबी प्रतीक्षा
मैं तुम्हारी सबसे अंतिम दृष्टि
मौत सबसे ठंडी लपट
रात सबसे गहरा साथ
छतें सबसे अकेली प्रेमिकाएँ
पहाड़ बारिशों के लिए रोए
तो रोने की आवाज़ क्या हो
मैं हूँ तो मेरा होना क्या हो
तुम अगर हो
तो तुम्हारे होने की आवाज़ क्या हो.
3. इंतजार में ‘आ’ की मात्रा
जो तुम्हारे लिए नहीं लिखा गया,
उसमें भी उपस्थित हो
और अदृश्य की तरह
मौजूद हो तुम
हर तरफ
दूरी में बहुत दूर जैसे
जिंदगी में ‘न’ की बिंदी
इश्क़ का आधा ‘श’
और इंतज़ार में ‘आ’ की मात्रा की तरह.
4. कबूतर
सारे धूसर भूरे कबूतर
मुझे अपनी गुटर- गुं में याद करेंगे
इस शहर की बहुत सी ऊंची इमारतों के बीच
एक गैरमामूली छत पर
कुछ धूसर भूरे कबूतर पीछे छूट जाएंगे
उनके घट के अंतिम नोट से आती
दुनिया की सबसे घुटी हुई आवाज़ पर
हर शाम को मैं बुरी तरह चौंक जाऊँगा
चार सौ पचास किलो मीटर की दूरी पर
अजगर की तरह पसरते
एक दूसरे शहर के शोर में
जब मैं गुम होने लगूंगा धीमे- धीमे
सारे धूसर भूरे कबूतर
मुझे अपनी गुटर-गुं में याद करेंगे.
5. कुल्हाड़ी
जंगल समझते थे
पेड़ उन्हीं के होते हैं
असल में
पेड़ कुल्हाड़ियों के होते हैं
पेड़ समझते थे
उनके फूल-पत्ते होते हैं
और कलियाँ भी
दरअसल
उनकी सिर्फ आग होती है
सिर्फ राख़ होती है
अक्सर पेड़ खुद कुल्हाड़ियों की तरफ होते हैं
उनकी धार की तरफ होते हैं
जैसे आदमी, आदमी की तरफ होता है.
6. एक दिल को कितने घाव चाहिए
मैं जितनी देहों को छूता हूँ
दुनिया में उतनी याददाश्त पैदा करता हूँ
जितनी बार छूता हूँ देह
उतने ही हाथ उग आते हैं
उतनी ही उंगलियां खिल जाती हैं
मेरी सारी आंखें रह जाती हैं दुनिया में अधूरी
समय के पास जमा हो चुकी अनगिनत नज़रों को
कोई अनजान आकर धकेल देता है अंधेरे में
सारे स्पर्श गुम हो जाते हैं धीमे-धीमे
मैं हर बार देह में एक नई गंध को देखता हूँ
नमक को याद बनाकर अपने रुमाल में रखता हूँ
प्रतीक्षा करते हुए बहुत सारे रास्ते बनाता हूँ
कई सारी गालियां ईज़ाद करता हूँ
मेरी दुनिया में कितने दरवाज़ें और खिड़कियां हैं
बेहिसाब छतें भी
बादल फिर आते हैं धोखे से
फिर से घिरती हैं घटाएं
फूल, हवा, खुशबू और प्रतीक्षाएं दोहराते हैं
फिर आते हैं
फिर से आते हैं सब
फिर से एक गुबार उठता है
एक आसमान उड़ता जाता है ऊपर
नीले दुप्पटे उड़ते हैं हवा में
कितनी ही दुनियाएं पुकारती हैं मुझे अपनी तरफ़
कितने ही हाथ इशारा करते हैं
कितनी ही बाहें बुलाती हैं
एक आदमी के दिल को कितने घाव चाहिए
कितनी याददाश्त चाहिए
फिर भी इस दुनिया में, मैं एक पूरा आदमी नहीं
मैं बहुत सारे टुकड़े हूँ
जितनी बार मिलता हूँ तुमसे
उतनी बार अकेला रह जाता हूँ
7. गुमनाम पुल अच्छे थे
गुमनाम पुल सबसे अच्छे थे
जिन्होंने सबसे जर्ज़र और खतरनाक होते हुए भी उन्हें सुरक्षित रखा जो यहां आए और अंधेरों में घण्टों बैठे रहे
उनके वादों को याद रखा
उन्हें अपनी आदिम दीवारों से सटकर खड़े रहने के मौके दिए
जंग लगी लोहे की कमज़ोर जालियां अच्छी थीं
जिनसे उड़कर ज़्यादातर मुर्गियां भागने में कामयाब रहीं
वो सारी बरसातें अच्छी थीं, जिनके थमने पर मजदूर काम के लिए निकले
और लड़कियां अपने प्रेमियों के साथ भीगकर घर लौटीं
सारे बेनाम पेड़ सबसे सुंदर थे जिनकी टहनियों पर हमने कुरेदकर अपने नाम लिखे
वो सब जगहें अच्छी थी जहां- जहां हमने हाथ पकड़े
अंधेरे अच्छे थे जिन्होंने पहली- पहली बार चूमने के मौके दिए
सारे फूल अच्छे थे जिन्हें उनकी मर्जी के ख़िलाफ़ कभी अर्थियों पर रखा गया, कभी देवताओं के सिर पर
सबसे अच्छा था तुम्हारा निर्ममता के साथ चले जाना, और पीछे मुड़कर नहीं देखना
तुम्हारे जाने के बाद ही मैंने इंतज़ार सीखे, देर तक एक ही जगह पर खड़े रहना सीखा
मुझे पसंद है तह कर के टेबल पर रखे हुए रुमाल
जिन्हें देखकर मैं सोचता था तुम वापस आओगी और मेरी जिंदगी को ठीक करोगी
अगर तुम पूछो–
अगर तुम पूछो मुझसे
मुझे सबसे ज़्यादा क्या पसंद है तो मैं कहूंगा
मुझे सबसे ज़्यादा तुम्हारी पीठ अच्छी लगती है
मैं जानता हूँ–
मुझे सबसे ज़्यादा जी भरकर उसी ने चाहा
8. दिल
दिल कोई घोड़े की नाल नहीं
की हर वक्त टक-टक, टक-टक करता रहे
उसे नाज़ुक टहनियों की तरह होना चाहिए
ठीक उन पेड़ों की तरह जो तमाम घावों को भूलकर
कुल्हाड़ियों के हत्थों में तब्दील हो जाते हैं
जो प्यार नहीं मिल सका
उसे किताब की तरह बरतना ही ठीक है
उसके पन्नों को मोड़ कर सिरहाने रख लेना चाहिए
अधूरे स्वप्न ऐसे ही तकिए के नीचे दबाकर रखे जाते हैं
उन्हें आंसुओं से हरा- हरा, नर्म- नर्म किया जा सकता है
ऐसे सपनों को सुबह- सुबह हेयर ड्रायर से सूखने के लिए तैयार रहना चाहिए
टूटे हुए रिश्ते ऐसे साथ रखना चाहिए
जैसे देवता रख लेते हैं दुनियाभर की प्रार्थनाएं अपने ड्रॉअर में
कोई औरत तह कर के अलमारी में रख लेती है अपने मर चुके आदमी की बुशर्ट
लिफ़ाफ़े कभी नहीं जानते कि उन्हें किसलिए इस्तेमाल किया जाएगा
उनमें इज़हार भी हो सकते हैं और मृत्यु की सूचनाएं भी
दिल को भी लिफ़ाफ़ों की तरह ख़ाली- ख़ाली होना चाहिए
आंख को हमेशा राह देखनी चाहिए
यह मानकर चलना चाहिए
की कोई फड़कता हुआ परिंदा नहीं
दिल एक मरून रुमाल है
प्यार करते वक़्त उसे सिर पर भी बांधना चाहिए
और घावों पर भी.
9. बादल हमारे लिए टहलते हैं
तुम्हारा हाथ पकड़कर चलते हुए
मैंने यह जाना कि आकाश में बादल बरसातों के लिए नहीं
मेरे और तुम्हारे लिए टहलते हैं
कोई दिन उग कर वापस आता है
तो उसका मतलब मैं यह निकालता हूं कि वो हमारे लिए लौटा है
रात हम दोनों को बांधने आती है
इतनी बड़ी दुनिया में
मैं सिर्फ बादलों के आने-जाने
दिन के उगने और डूबने के बारे में सोचता हूं
धूप और बारिश के बारे में सोचता हूं
यही वो सब है जो हमारे लिए होता है
दुनिया सिर्फ इसलिए है
कि हर शाम को मैं तुमसे मिलने आता हूं
अगर मैं तुमसे मिलने आता और तुम मुझे वहां नहीं मिलती
जहां हमारा मिलना तय था
तो भीड़ और आतंक से भरी यह दुनिया कब से खत्म हो चुकी होती
मिलते रहने से ही दुनिया चलती है
जब घांस को धूप से मिलते देखता हूँ
और पत्तों को हवाओं से
जब छांव मिलने आती है गलियों से
और आकाश को पृथ्वी पर झुकते हुए देखता हूँ
तो सोचता हूँ यह दुनिया तब तक रहेगी जब तक हम किसी से मिलने जाते रहेंगे
10. मैंने उन सब से प्रेम किया
मैं उन सीढ़ियों से भी प्रेम करता हूं
जिन पर चलकर उससे मिलने जाया करता था
और उस खिड़की से भी
जिसके बाहर देखती थी उसकी उदास आंखें
मुझे अब भी उस अंधेरे से प्रेम है
जिसके उजालों में चलकर पहुंचा था उसके पास
मैंने उन सारी चीजों से प्रेम किया
जो उसके हाथों से छूई गई थी कभी न कभी
जैसे दीवार
काजल लगा आईना
कपड़े सुखाने की रस्सियां
रूम की चाबियां
और कमरे की सारी खूंटियां
जहां हमने अपनी प्रार्थनाएं लटकाई थीं कभी
मैंने अलमारी में लटके उन सारे हेंगर्स से भी प्रेम किया
जिनमें सफेद झाग वाले सर्फ की तरह महकते थे उसके हाथ
उन सारी चीजों से प्रेम किया
जिन्हें उसके तलवों ने छुआ था
जैसे फर्श और पृथ्वी
ये संसार सारा
इस तरह मैंने दुनिया की हर एक चीज से प्रेम किया
उसके प्रेम में.
11. नमक पर यकीन
निश्चित नहीं है होना
होने का अर्थ ही है- एक दिन नहीं होना
लेकिन तुम बाज़ नहीं आते
अपनी जीने की आदत से
शताब्दियों से इच्छा रही है तुम्हारी
यहाँ बस जाने की
यहीं इसी जगह
इस टेम्पररी कम्पार्टमेंट में
तुम डिब्बों में घर बसाते हो
मुझे घर भी परमानेंट नहीं लगते
रोटी, दाल, चावल
चटनी, अचार, पापड़
इन सब पर भरोसा है तुम्हे
मैं अपनी भूख के सहारे जिंदा हूँ
देह में कीड़े नहीं पड़ेंगे
नमक पर इतना यक़ीन ठीक नहीं
तुम्हारे पास शहर पहुंचने की गारंटी है
मैं अगले स्टेशन के लिए भी ना-उम्मीद हूँ
तुम अपने ऊपर
सनातन लादकर चल रहे हो
दहेज़ में मिला चांदी का गिलास
छोटी बाईसा का बाजूबंद
और होकम के कमर का कंदोरा
ये सब एसेट हैं तुम्हारी
मैं गमछे का बोझ सह नहीं पा रहा हूँ
ट्रेन की खिड़की से बाहर
सारी स्मृतियां
अंधेरे के उस पार
खेतों में जलती हैं
फसलों की तरह
मुझे जूतों के चोरी होने का डर नहीं लगता
इसलिए नंगे पैर हो जाना चाहता हूँ
सुनो,
एक बीज मंत्र है
सब के लिए
हम शिव को ढूंढने
नहीं जाएंगे कहीं
आत्मा को बुहारकर
पतंग बनाई जा सकती है
या कोई परिंदा
हालांकि टिकट तुम्हारी जेब में है
फिर भी एस-वन की 11 नम्बर सीट तुम्हारी नहीं
इसलिए तुम किसी भी
अँधेरे या अंजान प्लेटफॉर्म पर उतर सकते हो
नींद एक धोखेबाज सुख है
तुम्हारी दूरी मुझे जगा देती है
समुद्री सतह से एक हज़ार मीटर ऊपर
इस अँधेरे में
मेरा हासिल यही है
जिस वक़्त इस अंधेरी सुरंग से ट्रेन
गुज़र रही है
ठीक उसी वक़्त
वहां समंदर के किनारे
तुम्हारे बाल हवा में उलझ रहे होंगे
इस शाम की संवलाई चाँदनी
में बहता हुआ
तुम्हारे आँचल का एक छोर
भीग रहा होगा पानी में
डूबते सूरज की रोशनी में
तुम्हारी बाहों पर
खारे पानी की तहें जम आईं होगी
कुछ नमक
कुछ रेत के साथ
तुम चांदीपुर से लौट आई होगी
और इस
तरह
तुम्हारे बगैर
मेरी एक शाम और गुजर गई.
12. खून के धब्बे
मुझे मालूम था
कोई कबूतर फड़फड़ाकर उड़ेगा छत से
तो उसकी गर्म उड़ान को पकड़कर
मैं उसे कविता में तब्दील कर दूंगा
कोई प्यार मेरे तलवों में कीलें ठोंककर मेरे अस्तित्व पर लगाम लगा देगा
और दिल में घौंप देगा ख़ंजर
तो मैं उसे पन्नों पर उतारकर कवि हो जाऊंगा
लेकिन मैंने कविता के इस बिंब को जाने दिया
प्यार को भी भुला दिया
यह सोचकर कि कोई न कोई आग जलती रहनी चाहिए आदमी के अंदर
मैंने कबूतर को उड़ जाने दिया छत से
क्योंकि हर उड़ान के पर नहीं काटे जा सकते
कभी-कभी दिल और ख़ंजर को भी हमेशा की तरह
एक साथ याद किया जाना चाहिए दुनिया में
हर दुःख और घाव को कविता से ठंडा नहीं किया जाना चाहिए
इसलिए अब जब भी कोई कबूतर
किसी पेड़ का पत्ता
कोई फूल और कोई दिल कहीं हिलता- उड़ता और खिलता देखता हूँ
मैं उन्हें खून का धब्बा बनाकर कैलेंडर की तारीख़ों पर चिपका देता हूँ.
नवीन रांगियाल का जन्म 12 नवम्बर मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ। वे पेशे से पत्रकार हैं। नईदुनिया, लोकमत समाचार, प्रजातंत्र और दैनिक भास्कर जैसे राष्ट्रीय अखबारों में सेवाएं दे चुके हैं। फिलहाल दुनिया के सबसे पहले हिंदी पोर्टल वेबदुनिया डॉट कॉम इंदौर में असिस्टेंट एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।
कविता और गद्य में विशेष रुचि। उनके आलेख, कविताएँ कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर नियमित लेखन। अपने ब्लॉग ‘औघटघाट’ पर इंडियन क्लासिकल और वेस्टर्न म्यूजिक पर भी नियमित लेखन। पत्रकारिता के साथ ही साहित्य में रचनात्मक लेखन के लिए उन्हें मध्यप्रदेश के स्टेट प्रेस क्लब के ‘शब्दऋषि’ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी कहानी ‘आवाज’ को ‘बिंज हिंदी’ के नेशनल राइटिंग कॉम्पिटिशन में एडिटर्स च्वॉइस से पुरस्कृत किया गया। नवंबर 2022 में उनका पहला कविता संग्रह ‘इंतजार में आ की मात्रा’ सेतु प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुआ है।
संपर्क: नवीन रांगियाल
68, रजत जयंती कॉम्पलेक्स, स्कीम नंबर- 54, विजय नगर, इंदौर, मप्र
मोबाइल : 98930-93169
ईमेल: navin.rangiyal@gmail.com
टिप्पणीकार गीत चतुर्वेदी
27 नवंबर 1977 को मुंबई में जन्मे गीत चतुर्वेदी समकालीन हिंदी लेखकों में बहुत चर्चित नाम हैं । वह नित प्रयोगधर्मी लेखन करते हैं, इसलिए उन्हें सम्मान से ‘अवां-गार्द’ (अपनी विधा में सदैव अग्रणी रहने वाला) लेखक कहा जाता है। उनकी ग्यारह किताबें प्रकाशित हैं, जिनमें दो कहानी-संग्रह और तीन कविता-संग्रह शामिल हैं। ‘न्यूनतम मैं’ और ‘ख़ुशियों के गुप्तचर’ हिंदी की बेस्टसेलर सूचियों में शामिल रहीं। साहित्य, सिनेमा व संगीत पर लिखे उनके निबंधों के संग्रह ‘टेबल लैम्प’ और ‘अधूरी चीज़ों का देवता’ हैं। वह गीतकार, पटकथाकार, आलोचक और स्तम्भकार के रूप में भी सक्रिय हैं।