आशीष मिश्र
कौशल किशोर का कविता संग्रह ‘नयी शुरुआत’ कुछ ऐसे ही इजहार-ए-बयानों को कविता की शक्ल में समेटे हुए है ।
वैसे तो कविताएँ कल्पना और विचार के तालमेल से पैदा होती हैं मगर जनवादी कविता असल मायने में तभी कारगर होती है जब उसकी कल्पना में देश और समाज की सच्चाई बयां हो रही हो। वह उस इंसान की बात कर रही हो जो देश और समझ में हाशिये पर खड़ा हो। वह आम जुबान में उसकी वजाहत और हुकूकों की बात करते हुए लिखी जा रही होए और यह सब मुझे ‘नयी शुरुआत’ संग्रह की कविताओं को पढ़ते हुए जान पड़ा।
इस किताब में कुछ इसी तरह की कुल 56 कविताएँ हैं जिनमें से आपको कुछ कच्ची भी लग सकती हैं। ये कौशल किशोर की किशोर वय की कविताएँ हैं . अट्ठारह से लेकर पच्चीस वर्ष की उम्र में लिखी कविताएँ। मगर चूँकि कौशल जी अपने पेश-लब्ज में खुद मानते हैं कि उनकी लिखी कविताएँ उस वक्त की हैं जब मुश्किलों का दौर था और कविता को लेकर समझ कच्ची थी मगर उन्होंने अपनी वजाहत को अपनी साफ जुबान में कागज पर उतारने में कामयाबी हासिल जरूर की है इसलिए मैंने भी इन्हें इसी तर्ज पर पढ़ा है और जो मुझे एक प्रतिरोध की ‘नयी शुरुआत’ के तौर पर नजर आती हैं ।
मुझे कौशल जी का पहला कविता संग्रह ‘वह औरत नहीं महानद थी’ इस जिन्दगी के एहसासात ;सामजिक और राजनैतिक और बगावती ख्यालों से लबरेज लगीं थीं ।
इसकी कविताएँ उस दुनिया-जहान की बात करती नजर आयी थीं जिसके केंद्र में इंसानी जमाअत में बराबर की भागीदारी करती औरतें थीं और जो अपने हुकूकों की जद्दोजहद में अभी तक तासादुम हैं मगर ‘नयी शुरुआत’ को अगर मैं इसकी बुनियाद कहूँ तो शायद गलत न होगा क्योंकि ईमारत बुलंद खड़े रहने के लिए मजबूत बुनियाद का होना निहायत ही जरूरी है ।
मुश्किल दौर में लिखी गयी कविताएँ होने के बावजूद भी इनमें मुझे कहीं भी निराशा नजर नहीं आयी बल्कि प्रतिरोध को एक नया बल मिलता नजर आया । किताब की कविताएँ तमाम मुश्किलों से लड़ने जिन्दगी को बेहतर बनाने और लगातार आगे बढ़ते रहने की ताकीद करती नजर आयीं ।
एक खास चीज जो मेरे जेहन में आती है कि इमरजेंसी के वक्त से लेकर अब तक के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बराबरी के मामले में हम बद से बदतर होते गए हैं। अलबत्ता कहीं किसानों और मजदूरों की सत्ता के खिलाफ बगावत है तो कहीं औरतों और नौजवानों में एक बेहतर जिन्दगी के लिए इंकलाब है। कुछ कविताएँ मुल्क में पनपते सामाजिक और राजनैतिक दोगलेपन को नंगा करतीं भी नजर आती हैं और कुछ मजहब के नाम पर समाज में टूटन की बात को भी बयां करती हैं।
बाकी आप खुद पढ़ें और तय करें संग्रह से कुछ चुनिंदा कविताएँ आप सबकी पेश-ए-नजर हैं।
कौशल किशोर की कविताएँ-
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