समकालीन जनमत के फेसबुक लाइव शृंखला में 6 जुलाई सोमवार को एल कौशिकी चौधरी ने शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति दी। एल कौशिकी चौधरी को संगीत विरासत में मिला है। उनके पिता पंडित ललित कुमार और दादा श्री सुंदर लाल जाने-माने तबला वादक रहे हैं।
सुचरिता गुप्ता की योग्य शिष्या कौशिकी ने अपने गायन की शुरुआत शास्त्रीय गीत ‘लगन लगी तुमरे चरण के’ से की और फिर राग सारंगिनी की सुंदर प्रस्तुति से इसे आगे बढ़ाया। उप-शास्त्रीय गायन ‘ए री सखी मोरा पिया घर आया’ श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर गया।
बरसात का मौसम और सावन के महीने की शुरुआत, ऐसे में संगीत की कोई भी महफिल कजरी के बिना अधूरी है। कौशिकी ने दो मधुर कजरियाँ गाईं-‘कवन रंग मुंगवा, कवन रंग मोतिया’ और ‘कइसे खेलइ जइबू सावन में कजरिया’।
बनारस और कबीर एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। बनारस से ही अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही कौशिकी ने कबीर के दो सुंदर भजन बेहद सधी और सुरीली आवाज़ में प्रस्तुत किया-‘उड़ जाएगा हंस अकेला’ और ‘कवन ठगवा नगरिया लूटल हो’।
‘घूँघट का पट खोल रे गोरी तोहे पिया मिलेंगे’ और ‘मन लाग्यो यार फकीरी में’ भजनों की प्रस्तुति के साथ इस संगीतमय आयोजन का समापन हुआ। इस पूरे आयोजन में कौशिकी के गायन के साथ तबले पर संगत दे रहे थे पंडित ललित कुमार।
(प्रस्तुति: डी. पी. सोनी)