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पटना हाई कोर्ट ने चंद्रशेखर और उनके साथियों की हत्या के मामले में अपराधियों को दी उम्र कैद की सजा

सिवान. पटना हाई कोर्ट ने जेकल 10 मई को जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और लोकप्रिय नेता कॉमरेड चंद्रशेखर, उनके साथी भाकपा माले के जिला कमेटी सदस्य श्याम नारायण यादव और एक पटरी दुकानदार भुटेली मियां की हत्या के मामले में सभी अभियुक्तों की सीबीआई कोर्ट द्वारा 9 नवंबर 2012 को दी गई सजा उम्रकैद को बरकरार रखते हुए , न्यायमूर्ति विनोद कुमार सिन्हा और आदित्य कुमार त्रिपाठी की खंडपीठ ने सभी आपराधिक अपीलों को खारिज करने का आदेश दिया।

10 मई के ऐतिहासिक दिन पर आए इस फैसले ने शहीदों की परंपराओं के प्रति सम्मान और जन सरोकारों के लिए प्राण तक न्यौछावर कर देने वालों के हौसलों को और बुलंद कर दिया है ।

हमारी पीढ़ी के लोगों को जरूर ही याद होगा की 31 मार्च 1997 को सिवान में जेपी चौक पर शाम को भाकपा माले द्वारा बुलाए गए बिहार बंद के समर्थन में नुक्कड़ सभा करते हुए , राजद के तत्कालीन सांसद, बाहुबली -अपराधी शहाबुद्दीन के इशारे पर उनकी हत्या कर दी गई थी। इस मामले में चार अभियुक्तों ध्रुव कुमार जयसवाल उर्फ ध्रुव साह, इलियास वारिस उर्फ मंटू खान शेख मुन्ना उर्फ मुन्ना खान और रुस्तम खान को सजा सुनाई गई है जबकि एक अभियुक्त रियाजुल मियां की जेल में सुनवाई के दौरान ही मौत हो चुकी थी।

इस हत्या के मुकदमे को कॉमरेड चंद्रशेखर की हत्या के बाद चले जबरदस्त प्रतिवाद आंदोलनों के दबाव में सीबीआई को सौंप दिया गया था । लेकिन विडंबना यह कि अब तक की आई -गई कई रंगों की सरकारों के बावजूद सीबीआई ने अपराधी सरगना शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई चार्जशीट दाखिल नहीं की है ।

कॉमरेड चंद्रशेखर का जन्म सिवान जिले के शहर से सटे गांव बिंदुसार में, कुशवाहा समुदाय के एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था । सैनिक पिता की मौत के बाद मां कौशल्या देवी ने ही उनके मां-बाप दोनों की भूमिका निभाई। वे सैनिक स्कूल तिलैया से पढ़े।राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए ) में चयनित हुए लेकिन उन्हें वह जीवन रास नहीं आया। बीच में ही उसे छोड़कर पटना विश्वविद्यालय और फिर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पहुंचे । दो बार उन्हें जेएनयू के छात्र-छात्राओं ने उन्हें अपना छात्रसंघ अध्यक्ष चुना।

1995 में उन्होंने सियोल मे संयुक्त राष्ट्र सभा द्वारा आयोजित यूथ कांफ्रेंस में भारत का प्रतिनिधित्व किया। छात्र संघ में रहते हुए देशभर में चल रहे लोकतांत्रिक, सामाजिक, शैक्षणिक और पर्यावरण तक के आंदोलनों को उन्होंने छात्रसंघ से तो जोड़ा ही लेकिन अपने लोगों, अपने सामान्य जनों ,दलितों-गरीबों के जीवन संघर्ष में साथ देने की अदम्य इच्छा उन्हें वापस सिवान ले आई ।जीवन के अंतिम क्षण तक भाकपा माले के नेता के रूप में इसी काम को करते हुए उन्होंने अपने साथियों के साथ शहादत को गले लगाया।

अपनी शहादत के दो दशक बाद भी वे सिवान के साथ-साथ देशभर में छात्रों ,नौजवानों ,लोकतांत्रिक जनमानस के नायक बने हुए हैं । उनके हत्यारों को जितनी भी सजा मिले वह कम ही होगी । लेकिन अभी उन अपराधियों के सरगनाओं का अंतिम हश्र होना बाकी है । अभी उस गर्वीली राजनीति जिसके वे नायक हैं , उसका देश के पैमाने पर व्यापक विस्तार होना बाकी है । लेकिन सिवान का गोपालगंज मोड़ जिसे अब चंद्रशेखर चौक के नाम से जाना जाता है, वहां लगी उनकी हाथ उठाए आदमकद मूर्ति इस अधूरे काम को पूरा करने की हमारी जिम्मेदारी का लगातार ना सिर्फ एहसास कराती है बल्कि उसके लिए कठिन से कठिन वक्त में भी हौसला देती नजर आती है।

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