समकालीन जनमत
जनमत

‘ एक सुंदर दुनिया का स्वप्न संजोने वाले चित्रकार राकेश दिवाकर की कमी हर मोर्चे पर खलेगी ’

आरा। ‘ राकेश दिवाकर एक संघर्षशील चित्रकार, कला शिक्षक, कला समीक्षक , नाट्यकर्मी , कवि व सचेत राजनीति कर्मी के रूप में विकसित हो रहे व्यक्तित्व थे। उनके व्यक्तित्व में सहजता व अक्खड़ता का संयोग था। एक सुंदर दुनिया का स्वप्न संजोने वाले ऐसे युवा व्यक्तित्व की कमी हर मोर्चे पर खलेगी। ‘

स्थानीय रेडक्रॉस सभागार में 21 मई को चित्रकार, कवि और कला शिक्षक राकेश कुमार दिवाकर की स्मृति में जन संस्कृति मंच का आयोजन हुआ। आयोजन की शुरुआत उनके चित्र पर पुष्पांजलि से हुई। उसके बाद उनके पुत्र विक्रांत ने ‘पापा की याद में’ शीर्षक अपनी एक कविता सुनायी। इस मौके पर उनकी बेटी पलक द्वारा उनकी याद में बनायी गयी पेंटिंग भी लगायी गयी थी।

पिता की याद में पलक की पेंटिंग

आयोजन में जलेस के बिहार राज्य अध्यक्ष कथाकार नीरज सिंह ने कहा कि राकेश दिवाकर एक आंदोलन की देन थे। उनके पास एक परिवर्तनकारी विचारधारा और दृष्टि थी। उनका आत्म बहुत व्यापक था। उनके चित्रों में संघर्ष करती हुई बहुत सारी स्त्रियां हैं। उन्होंने चित्रकला को समझने लायक बनाया। उनकी चित्रकला को केंद्र करके गोष्ठियां करनी चाहिए।

जसम बिहार के राज्य अध्यक्ष कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि राकेश एक चित्रकार के साथ अच्छे संगठक थे। उनके चित्रों में श्रम और संघर्ष का सौंदर्य दिखाई पड़ता है।

जसम की राज्य कमेटी सदस्य संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमन ने राकेश को एक प्रतिबद्ध जन संस्कृतिकर्मी के तौर पर याद किया। कवि राजाराम प्रियदर्शी ने कहा कि राकेश का सृजनात्मक व्यक्तित्व बहुआयामी था।

पापा की याद में
————–
विक्रांत

सब नज़र आते हैं , एक आप ही नहीं
आज भी कभी कभी लगता है,
जैसे आप आएँगे,
पूछेंगे, डाँटेंगे या समझाएँगे
पर अब ये शब्द कानों तक आते ही नहीं
जिंदगी की सारी उलझनें हैं
और आप ही नहीं हैं

कोई नहीं है जो आकर बोले-
बेटा घबरना नहीं!
मन करता है आपसे घंटों बातें करूँ
आपके गले लगूँ
पर अब ये मेरी किस्मत में नहीं

आप मेरी यादों में जिंदा हो, पापा
ये दिल चुपके-चुपके रोता है
कोई नही है अब आँसू पोछने वाला
खुद ही चुप होना है
खुद ही खुद को समझाना है

आज भी कभी-कभी लगता है
जैसे युगों-युगों का अपना साथ है
दिल रोता है कि जैसे आपका जाना
कल ही की बात है

आप होते तो
हमारे सपने अधूरे नहीं रहते
आपके रहने मात्र से पूरे हो जाते
काश आप थोड़ा रुक कर जाते
अभी तो मैंने समझना शुरू ही किया था आपको
अभी तो मैंने चलना शुरू ही किया था आपके संग,
कि आपने छोड़ दी अचानक
मेरी उंगलियाँ

अभी तो आपके कंधों पर बैठकर
पगडंडियाँ ही देख पाया था
कंधों पर भार उठाना
कहाँ मैं जानता था, पापा!

 

कवि सिद्धार्थ वल्लभ ने कहा कि बहुत थोड़े से लोगों को छोड़ दें तो इस मुल्क में तो किसी को चिन्ता नहीं कि हमारे लेखक चित्रकार, संगीतकर, नाटककार या अन्य संस्कृतिककर्मी क्या कर रहे हैं। किसी भी कलाकार की संतुष्टि उसकी सर्जनात्मकता में ही होती है। यह कहना सरासर गलत है कि समाज पर कला का कोई असर नहीं होता।

देश के प्रख्यात युवा चित्रकार व चितकारा वि.विद्यालय , पंजाब के कला प्राध्यापक अर्जुन कुमार सिंह द्वारा प्रेषित स्मृति लेख का पाठ सुधीर सुमन ने किया। अर्जुन के अनुसार “कविता की तरह राकेश के चित्रों में हुनर और ख्वाब का बेजोड़ मेल था। उनके चित्रों में एक स्त्री चरित्र अक्सर आती थी, फलक के फ्रंट में…बहुत क्रियाशील । वे चाहते थे कि स्त्रियाँ भी सक्रिय रूप से फ्रंट पर आएँ। उनके चित्र संयोजन में मकबूल फिदा हुसैन सरीखी ताकतवर रेखाएँ थीं, रंगों की वैसी ही तरलता थी। उनके चित्र स्पेस के निर्माण और क्रियान्वयन में भी बड़े शक्तिशाली थे। उनके सपनों को पूरा करने की दिशा में हम कुछ सोचें, यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”

इस अवसर पर राकेश कुमार दिवाकर के अपने रचनाकर्म से संबंधित आत्मकथ्य भी पढ़ा गया।

युवा चित्रकार अर्जुन कुमार सिंह द्वारा राकेश दिवाकर कि स्मृति में लिखा गया लेख

 

 

स्मृति आयोजन में सुनील श्रीवास्तव ने कहा कि राकेश ने महेश्वर की काव्य पंक्ति को चरितार्थ किया था कि आदमी को निर्णायक होना चाहिए।

भाकपा-माले संदेश प्रखंड के सचिव कामरेड संजय कुमार ने कहा कि उनका समाज को बेहतर बनाने के लिए लड़ाई लड़ने वालों के साथ गहरा संबंध था। उनकी विरासत को जीवित रखा जाएगा। वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र ने राकेश की याद में एक कविता सुनाते हुए कहा कि उनका उनसे दिल से लगाव था। कवि अरुण शीतांश ने कहा कि वे चित्रकार होने के साथ अच्छे कवि और आलोचक भी थे। कवि ओमप्रकाश मिश्र की दृष्टि में वे आरा के प्रतिबद्ध संस्कृतिकर्मी और कलाकार थे।

कवयित्री अर्चना कुमारी ने अपने संदेश में कहा कि उनका चले जाना दीये से लौ के चले जाने की तरह है। कवि सुमन कुमार सिंह ने कहा कि राकेश ने बड़े मनोयोग से कला को साधा था। रंगकर्मी सूर्यप्रकाश ने कहा कि वे अपने बच्चे के लिए ऐसे अभिभावक थे, जो दोस्त की तरह थे।

आयोजन की अध्यक्षता नीरज सिंह, जितेंद्र कुमार, अनिल अंशुमन और राजाराम प्रियदर्शी ने की तथा संचालन सुधीर सुमन ने किया। इस मौके पर कवि-चित्रकार रविशंकर सिंह, मूर्तिकार ओमप्रकाश सिंह, रंगकर्मी अमित मेहता, रंगकर्मी खुश्बू स्पृहा, नीलेश कुमार, अरविंद अनुराग, चित्रकार संजीव सिन्हा, भाकपा-माले नेता राजू यादव, धनंजय कटकैरा, रंगकर्मी रंजन यादव नीलकमल वर्मा, रविप्रकाश सूरज, अनिल कुमार, शमशाद प्रेम, प्रकाश कुमार वर्मा, सूर्या, पलक पांडेय, सुनील कुमार सिंह, पंकज कुशवाहा, रौशन कुमार, महेश कुमार, अरविंद कुमार, सुशील कुमार सिंह, साहिर कुमार आदि भी मौजूद थे। इस मौके पर राकेश कुमार दिवाकर की पेटिंग और उनके विचारों के उद्धरणों के पोस्टर भी सभागार में लगाये गये थे।

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion