समकालीन जनमत
जनमत

पहलगाम आतंकी हमला और युद्ध उन्मादी हिन्दुत्व

जयप्रकाश नारायण 

रूस यूक्रेन के बीच मे चल रहे युद्ध को लेकर भारत में गोदी मीडिया और आरएसएस प्रचार तंत्र में ऐसा वातावरण बनाया था कि विश्व नायक नरेंद्र मोदी के प्रयास से जब चाहे युद्ध को रोका जा सकता है। ऐसे मीम और वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए। जिसमें एक लड़की को रोते हुए यह कहते  सुना गया कि “पापा मोदी जी ने वार रुकवा दी” ।हलांकि यह प्रचार मजाक का  पात्र बन‌ कर रह गया। (संघियों को इस तरह के पाखंड में महारत हासिल है )।
रुस युक्रेन युद्ध जारी रहा। लेकिन मोदी युद्ध के नाम पर अंतरराष्ट्रीय नेता बनने का प्रयास करते रहे। ऐसा ही एक इवेंट उन्होंने पोलैंड जाकर किया। पोलैंड की राजधानी से ट्रेन की 10 घंटे लंबे यात्रा करके वह यूक्रेन की राजधानी क्वीव पहुंचे और युक्रेन के राष्ट्रपति जेलेस्की  से मिलकर 10 घंटे की यात्रा करते हुए वापस पोलैंड लौट आए।  इस उद्देश्यहीन  कवायद को लोग भले ही भूल गए हो । युद्ध आज भी  जारी है। मोदी की  महानतम  यात्रा की उपलब्धियों पर संघ और गोदी मीडिया में आज भी शोध प्रोजेक्ट चल रहा होगा। हां इस यात्रा के बाद मोदी जी द्वारा कहा गया विश्व प्रसिद्ध कथन आज याद आ रहा है।
” आज का युग युद्ध का युग नहीं है।” ऐसे महान  वचन सदियों में शायद ही किसी महापुरुष के मुंह से निकलते हो।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दक्षता पूर्वक प्रयोग करते हुए गोदी मीडिया और संघ के प्रचार तंत्र ने मोदी की  साहसी पराक्रमी दूरदर्शी महान करिश्माई नेता और कठोर व साहसिक निर्णय लेने वाले सुपर मानव वाली तस्वीर गढ़ी है ।जिस पर भारत के अंधभक्त लहालोट होते रहे हैं। खुद मोदी ने ही इसे  प्रमोट किया है। वे अरबों खर्च करके अपनी करिश्माई और अवतारी इमेज को बनाए  रखना चाहते हैं।
मोदी के कुछ शान्ति वचन सुनिए।
जैसे -यह मोदी है।घर में घुसकर मारता है।
दुश्मन को जबाब देने के लिए 56 इंच का सीना चाहिए।
मोदी है चुन चुन कर एक-एक को मारेगा।
चीन को लाल आंख दिखाकर बात करनी चाहिए।
मोदी है जवाब देना  जानता है।
एक सिर के बदले 10 सिर लाने चाहिए कि नहीं।
मिट्टी में मिला  दूंगा।
सर्जिकल और एयर स्ट्राइक जैसे कामों को इतना बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया कि मानो हमने रावलपिंडी और इस्लामाबाद को ध्वस्त कर दिया हो।

अगर आप जानकारी इकट्ठा करें तो ऐसे सैकड़ों वीर रस के जुमले मोदी और भाजपा के ट्विटर हैंडल से मिल जायेंगे।

ऐसे बम्बईया फिल्मी डायलॉग भारतीय प्रधानमंत्री के श्री मुख से बार-बार झरते रहते हैं और अंधभक्त तथा गोदी मीडिया इस तरह के जुमलेबाजी पर हफ्तों बहस चलाती रही है।जिसने एक ऐसा नैरेटिव गढ़ा है कि मोदी  वर्तमान समय में दुनिया के राजनेताओं की कतार में सबसे महान  नेता  है। मोदी की बात दुनिया सुनती है और उस पर अमल करती है।  मोदी जी जनसभाओं में ऐसा ही डीग हांकते  हैं कि अब भारत की बात दुनिया सुनती है।  मोदी जी इस तरह की अपनी इमेज बनाने के लिए कई तरह के छिछले और हल्के काम करते भी रहते हैं।

जी-20 सम्मेलन को ऐसा इवेंट बना कर पेश किया गया। जैसे विश्व इतिहास की यह  पहली घटना हो। जी -20 के अधिवेशन का नयी दिल्ली में होना मोदी जी के योग्य दक्ष और महान नेतृत्व के कारण ही संभव हो रहा है। जबकि यह अधिवेशन जी-20 के नियमों के रुटीन के चलते भारत में आयोजित हुआ था।

इस तरह मोदी जी ने जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे  से अपनी इमेज निर्माण की नाकाम कोशिश की है। हम जानते हैं कि कोविड जैसे महामारी के समय में भी मोदी जी अपनी इस कमजोरी से नहीं उबर पाए। वैक्सीन निर्माण का श्रेय भारतीय मीडिया  मोदी जी के करिश्माई नेतृत्व को देने लगा। शायद ही  वर्तमान विश्व में ऐसा कोई  राष्ट्रध्यक्ष हो जो इस तरह की धृष्टता करने  का साहस कर सके। अभी तक कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली है कि किसी भी देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति ने वैक्सीन की सर्टिफिकेट पर अपनी तस्वीर चस्पा कराई हो। अपनी नाकामियों को उपलब्धियां बता कर अपनी पीठ थपथपाने का रिकार्ड भारत में संघियों के ही नाम दर्ज है। जहां माफ़ी मांगने वाला वीर और मालिकों की गुलामी और स्वतंत्रता आंदोलन के साथ गद्दारी करने  वाला देशभक्त बन जाता है।

खैर, यहां  मोदी जी द्वारा बनाई गई उनकी अपनी ही इमेज ( यह मोदी है घर में घुसकर मारता है )का नुकसान भारत को उठाना पड़ रहा है। कूटनीतिक अक्षमता और अयोग्यता के दम्भी‌ महिमा मंडन ने भारत को दुनिया के मंच पर अकेला छोड़ दिया है।

जबकि भारत की सरजमीं में  ढाई सौ किलोमीटर अंदर घुसकर आतंकवादियों ने  बेगुनाह 26 नागरिकों की हत्या कर दी और हम विश्व प्लेटफार्म पर पाकिस्तान को कटघरे में भी नहीं खड़ा कर पा रहे हैं । पहलगाम में हुए जघन्य हत्याकांड से दुनिया में जो सहानुभूति भारत के प्रति उपजी थी। उसे गोदी मीडिया के द्वारा खड़ा किए गए युद्धोन्माद , संघियों की लफ्फाजी  और देश के अंदर मुस्लिम विरोधी माहौल खड़ा करने की कोशिश ने भारत को भारी राजनीतिक और कूटनीति के संकट में डाल दिया है।

पाकिस्तान ने भारत के प्रधानमंत्री द्वारा समय-समय पर  झाड़े गए अंध राष्ट्रवादी लफ्फाजियों को दुनिया को दिखाकर यह प्रमाणित करने में लगा है कि वह पीड़ित है। भारत से उसको खतरा है और भारत पहलगाम की घटना का इस्तेमाल कर पाकिस्तान पर हमला करना चाहता है । यहां तक कि पाकिस्तान यह समझाने में कामयाब होता दिखाई दे रहा है कि भारत उस पर बेवजह इल्जाम लगा रहा है। अपराधी मांग कर रहा है कि आतंकवादी घटना की विश्व स्तर पर निष्पक्ष जांच हो । ऐसा लगता है कि पाकिस्तान की इस मांग को विश्व मंच पर समर्थन मिलने लगा है। साथ ही पाकिस्तान इस घटना को भारत के अंदरूनी संकट से जोड़ रहा है।

पाकिस्तान के इस तर्क को मजबूती  इस कारण मिल रही है कि पुलवामा की घटना के बाद  सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई जांच से आज तक दुनिया के समक्ष भारत कोई ठोस साक्ष्य और तथ्य  नहीं पेश कर सका है। यही नहीं तत्कालीन कश्मीर के गवर्नर ने पुलवामा की घटना के बाद घटित हुए घटनाक्रमों को जिस तरह से मीडिया और देश के सामने रखा है उससे मोदी सरकार की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़ा  हो गया हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए गोधरा में कार सेवकों की जलने से हुई मौत की घटना तथा उसकी प्रतिक्रिया की आड़ लेकर गुजरात में हुए नरसंहार जैसी  अनेकों ऐसी घटनाएं  हैं जिससे आरएसएस बीजेपी को लाभ पहुंचा है। वे सभी घटनाएं आज भी सवालों के घेरे में हैं। उसको लेकर भारत सहित दुनिया के एक  तबके में बहुत सारे सवाल हैं। जिनका उत्तर अभी मिलना बाकी है। क्योंकि लोकतंत्र की बुनियादी अवधारणा ” पारदर्शिता” मोदी सरकार में बुरी तरह से प्रभावित हुई है।
पहलगाम की घटना के बाद मोदी सरकार ने कई कठोर कदम उठाए हैं।
एक -सिंधु जल संधि को  निलंबित करना। वाटर स्ट्राइक।
दो – पाकिस्तानी चैनल सहित भारत के कुछ यूट्यूब चैनल को बंद करना। डिजिटल स्ट्राइक।
तीन -भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा पर आवाजाही पर प्रतिबंध लगाना। टूरिस्ट स्ट्राइक। या बार्डर स्ट्राइक।
चार-पाकिस्तानी नागरिकों को भारत छोड़ने का निर्देश देना। सिविलियन स्ट्राइक।
पांच-पाकिस्तानी हाईकमीशन की  संख्या को घटाना।  न्यूमेरिकल स्ट्राइक।
छ-व्यापार  बंद करना। ट्रेड स्ट्राइक।
सात- सांप्रदायिक नफरत को नई ऊंचाई पर पहुंचा कर  देश में युद्ध राष्ट्रवाद को गति देना। कम्युनल नेशनलिस्ट स्ट्राइक।
आठ-शहीद लेफ्टिनेंट विनय नरवाल और शुभम की पत्नियों द्वारा मुस्लिम समाज और कश्मीरी अवाम के खिलाफ फैलाए जा रहे नफरत के खिलाफ दिए गए बयान के बाद उन पर गाली गलौज और अभद्र टिप्पणी करवाना। कल्चरल  प्यूरीफायर स्ट्राइक।
नव- लोकगायिका नेहा सिंह राठौर, डॉक्टर माद्री काकोटी द्वारा उठाए गए सवालों पर देशद्रोह का मुकदमा करना । आंतरिक शत्रुओं पर  क्लीन स्ट्राइक।

ये पहलगाम की घटना के बाद आतंकवाद के सफाए के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदम हैं। इन  कठोर कदमों से आतंकवाद की कमर तोड़ने में मदद मिलेगी।

हम जानते हैं कि भारत सरकार एयर और सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाइयों में बहुत दक्ष है। हालांकि अभी चार दिन पहले पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाकर मोदी सरकार और मोदी भक्तों को उत्तेजित कर दिया है। भक्त कांग्रेस और चन्नी से देशभक्ति का प्रमाण  मांगने में जुट गए हैं।

भारत और पाकिस्तान के बीच भौगोलिक जनसांख्यिकीय आर्थिक और सामरिक शक्ति के क्षेत्र में बहुत बड़ा अंतर है। भारत के मुकाबले किसी भी पैमाने पर पाकिस्तान कहीं भी खड़ा होता नहीं दिखाई देता। भारत और पाकिस्तान के रक्षा बजट में लगभग आठ  गुना का अंतर है। पाकिस्तान का रक्षा बजट जहां 10 अरब डॉलर के करीब है। वहीं भारत का 80अरब डॉलर बैठता है। इसी तरह से सैनिकों की संख्या में तीन गुना का फर्क है । टैंक लड़ाकू विमान और अन्य गोला बारूद के मामले में भी भारत-पाकिस्तान से कई गुना आगे है। एक मोटे आंकड़े के अनुसार भारत के पास 14.5 लाख एक्टिव सैनिक और 11.55 लाख रिजर्व सैनिक हैं। वहीं पाकिस्तान के पास 5.5 लाख रिजर्व और 6.5 लाख का एक्टिव सैनिक है।

यही स्थिति वायु सेना और नौसेना में भी दिखाई देती है। जहां भारत की वायुसेना के पास 2239विमान है । वहीं पाकिस्तान के पास 1399 है। इसमें 513 लड़ाकू विमान भारत के पास है और पाकिस्तान के पास सिर्फ 328 है।

इसी तरह भारत के पास 4614 टैंक और एक लाख 51  248 व्हीकल तथा हजारों अन्य सहायक संसाधन है। वहीं पाकिस्तान के पास 2627 टैंक और  17.3 हजार व्हीकल है। इसके अलावा अन्य साजो समान भी पाकिस्तान के पास भारत की तुलना में बहुत कम है। नौसेना के क्षेत्र में भी भारत और पाकिस्तान के बीच में भारी अंतर है । अगर देखा जाए तो सैन्य ताकत के रूप में पाकिस्तान भारत के समक्ष कहीं नहीं ठहरता।
ऐसी स्थिति में किसी भी सीधे युद्ध में पाकिस्तान भारत के मुकाबले टिकने की स्थिति में नहीं है।

लेकिन  वर्तमान विश्व में युद्ध सिर्फ जनसंख्या या‌ आर्थिक सैनिक और सामरिक शक्ति के बल पर ही नहीं लड़े जाते। इसके लिए कई अन्य आवश्यक शर्तें भी हैं ।जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से युद्ध में सफलता के लिए आवश्यक है। आज के ग्लोबल दुनिया में कोई भी देश एक दूसरे से अलग थलग निरपेक्ष टापू नहीं  हैं ।बल्कि विश्व के सभी देश किसी ने किसी रूप में एक दूसरे से अंतर्संबंधित व अंतर्गुथित होने के कारण एक दूसरे पर निर्भर है । साथ ही विश्व में ऐसी महा शक्तियां हैं जिनका रुख, समर्थन और सहयोग किसी भी युद्ध में जीतने के लिए आवश्यक होता है। आज के खगोलीय विश्व में तकनीक ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका ले ली है।

उदाहरण के बतौर  एक छोटा सा देश इजराइल है। जो जनसंख्या और भौगोलिक दृष्टि से बहुत छोटा होते हुए भी अपनी उन्नत तकनीक आधुनिक सैन्य साजो सामान तथा प्रशिक्षित सेना  और विश्व साम्राज्यवादी ताकते अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के सहयोग से 60 से ऊपर अरब देशों की नाक में दम कर रखा है । उसने लेबनान, जॉर्डन, सीरिया, मिश्र सहित कई देशों को पीछे खदेड़ते हुए उनके बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया है।

इसलिए आज दुनिया में हथियारों के साथ-साथ कूटनीतिक लड़ाई भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अभी यूरोपीय यूनियन तथा ब्रिटेन के रुख को देखते हुए भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने खीझ कर कहा कि किसी को हमें उपदेश देने की जरूरत नहीं है। सहयोग करना चाहे तो करें। अन्यथा  हमको उपदेश न दे।

पिछले कुछ वर्षों से खास कर मोदी सरकार आने के बाद भारत की विदेश नीति में भारी परिवर्तन देखा गया। इस समय भारत अमेरिका में रणनीतिक साझेदारी है और भारत अमेरिकी इजरायली गठजोड़ का अभिन्न अंग  है। जिस कारण से दुनिया के कई देशों के साथ भारत के संबंधों में पुरानी गर्माहट नहीं रह गई है। जो देश कभी भारत के नजदीकी सहयोगी और मित्र हुआ करते थे। आज वे भी तटस्थ हो गये हैं।

कल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जो बयान दिया है । उससे यह संदेश देने की कोशिश हुई है कि भारत युद्ध के दिशा में आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री ने अलग से वायुसेना अध्यक्ष और  मुख्य सुरक्षा सचिव के साथ बैठक की । उससे युद्ध की आशंका और बढ़ गई है। इस स्थिति में एक और जटिल प्रश्न हमारे सामने है। भारत और पाकिस्तान दोनों आणविक शक्तियां हैं इसलिए दुनिया में  एक सवाल खड़ा हो रहा है कि दो परमाणु संपन्न राष्ट्र अगर आपस में टकराते हैं तो उसके परिणाम क्या होंगे? यह कितना विनाशकारी हो सकता है। क्योंकि  परमाणु युद्ध में सैनिक ही नहीं मारे जायेंगे । इसमें आम नागरिकों के साथ प्राकृतिक संपदा और पर्यावरण का बड़े पैमाने पर  विनाश होगा । जिसका दुनिया के जलवायु प्राकृतिक वातावरण पानी और आबोहवा पर विनाशकारी असर पड़ेगा ।

वैसे यहां एक बात ध्यान में रखना चाहिए कि परमाणु हथियार युद्ध के हथियार नहीं है । यह विध्वंस के हथियार  हैं । इसलिए परमाणु हथियार संपन्न दो देश अगर  लड़ते हैं तो कोई भी इसमें विजयी नहीं होगा । परमाणु हथियार संपन्न देश के शासक  मूर्खतावश परमाणु हथियारों का प्रयोग कर दें तो दोनों देश बर्बाद हो जायेंगे।

चूंकि पाकिस्तान में सैन्य जुंटा के पास वास्तविक सत्ता है और भारत में कॉर्पोरेट हिंदूत्व गढ़जोड़ की फासीवादी प्रवृत्ति की सरकार है।इसलिए  यह खतरा  ज्यादा वास्तविक दिख रहा है। चूंकि सैन्य शासक जनता के प्रति जवाब  नहीं होते । पाकिस्तान में कॉर्पोरेट जमींदार और सैन्य गठजोड़ की सरकार है। जो साम्राज्यवादी ताकतों के निर्देशन में काम करती है। इसलिए उसकी सरकार से देश की जनता से मोहब्बत की उम्मीद नहीं की जा सकती है। ठीक यही बात फासीवादी निजाम पर भी लागू होती है।

इस समय पाकिस्तान में शाहबाज शरीफ की कमजोर सरकार है । मूल ताकत सेना के चीफ जनरल मुनीर अहमद  के हाथ में है । पाकिस्तान  गहरे आर्थिक राजनीतिक  संकट में है । इसलिए आंतरिक उथल-पुथल से गुजर रहा है । बलूचिस्तान से लेकर खैबर पख्तून  तक सरकार के खिलाफ  असंतोष चरम पर है। महंगाई और बेरोजगारी से देश घिरा है। सरकार के पास संकट से बच निकलने का  रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है।

ठीक यही बात भारत के साथ भी है । हिंदुत्व कॉरपोरेट गठजोड़ की मोदी सरकार चौतरफा सामाजिक आर्थिक विध्वंस के रास्ते पर चल पड़ी है । लोकतांत्रिक संस्थाओं को खत्म किया जा रहा है । बेरोजगारी चरम पर है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं । उद्योग धंधे बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।  बाजार ठहरा हुआ है। मध्य वर्ग जो जीडीपी का सबसे ज्यादा हिस्सा देता है आर्थिक संकट में फंस कर  सिकुड़ने लगा है। इस तरह भारत  भी  आर्थिक संकट में है ।

सत्ता का केंद्रीकरण  बढ़ते जाने से मणिपुर से लेकर कश्मीर और दक्षिण भारत तक राजनीतिक अस्थिरता के बादल मंडरा रहे हैं। मोदी सरकार जनता का विश्वास खोती जा रही है। वह जन विरोधी राजनीतिक दलों  के सहयोग पर किसी तरह से सत्ता में टिकी हुई है।

ऐसे वातावरण में दोनों देशों में संकट से निकलने की हताशापूर्ण कोशिश हो सकती है और यह युद्ध में बदल सकता है। जो सीमित युद्ध से लेकर विस्तारित युद्ध की तरफ  देश को ले जा सकता है।

इस समय साम्राज्यवादी देश गहरे आर्थिक राजनीतिक संकट से बाहर निकलने के लिए विकासशील देशों में युद्ध को हवा दे रहा है। क्योंकि साम्राज्यवाद  है तो युद्ध है। वह सीधे दो देशों के बीच युद्ध में उतर  सकता है। या प्राक्सी युद्ध के द्वारा अपने आर्थिक संकट का बोझ युद्ध रत देशों पर डाल सकता है। आज ही खबर आई है कि अमेरिका और यूक्रेन में समझौता हो गया है। यूक्रेन युद्ध में अमेरिका ने जो पैसा लगाया है । उसके बदले उसे यूक्रेन के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार मिलने जा रहा है।

ऐसी विकट परिस्थिति में में भारत में एक खास तरह का युद्धोन्माद खड़ा हो रहा है। जो दूरगामी दृष्टि से भारत के लिए नुकसानदेह साबित होगा ।युद्ध से आर्थिक संकट बढ़ेगा । जन धन की हानि होगी और सबसे बड़ा असर  लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और व्यवहारों पर होगा। जो इस समय दिखाई देने लगा है। असहमति की आवाज को दबाया जाएगा। विपक्ष का दमन होगा तथा शांति चाहने वालों को देशद्रोही घोषित कर अपमानित और दंडित किया जाएगा। लोकतांत्रिक संस्थाओं  की फंक्शनिंग रोक दी जाएगी। देश एक फासिस्ट निजाम की दिशा में आगे बढ़ जाऐगा।

इसलिए भारत-पाक दोनों देश के लोकतांत्रिक नागरिकों के लिए आवश्यक है कि युद्ध  के विरोध में सड़कों पर आए । प्रतिरोध करें । दोनों देशों  में आपसी विश्वास की बहाली के लिए काम करें और युद्ध रोकने के लिए पूरी ताकत दें!

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