25 जनवरी को कुम्भ परेड साइबर थाने से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के शोध छात्र मनीष कुमार के मोबाइल पर एक फोन आता है। फोन पर कहा जाता है कि लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (LIU) के गोपनीय जाँच के माध्यम से हमें आपके ख़िलाफ़ एक लेटर मिला है। आपने फेसबुक पर लिखा है कुम्भ में औरंगजेब भी शामिल हुआ था। आपने दूसरे पोस्ट में लिखा है कि शाहजहाँ के बेटे दाराशिकोह का कुम्भ में बड़ा योगदान था। एक अन्य पोस्ट में आप लिख रहे हैं सेक्टर 8 में पानी सड़क बिजली की मूलभूत सुविधाओं के लिए कल्पवासी परेशान हैं। तो आप इस पर क्या कार्रवाई चाहते हैं ?
इस तरह साइबर थानों और एलआईयू द्वारा शोधछात्रों के डराकर यह तय किया जा रहा है कि उनके शोध और सोशल मीडिया पर लिखने, बात रखने, जानकारी साझा करने की दिशा सत्ता की दिशा में हो ख़िलाफ़ में नहीं।
केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद के राजनीति विज्ञान के शोध छात्र मनीष कुमार बताते हैं ये पोस्ट उन्होंने 13 जनवरी को कुम्भ मेले की शुरुआत जिस दिन हुई थी उस दिन पोस्ट किया था। उस दिन उन्होंने अपने फेसबुक एकाउंट पर कुम्भ के संदर्भ को लेकर ही तीन पोस्ट लिखे थे। उन्होंने अपनी पहली पोस्ट में इतिहासकार और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से रिटायर प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी की किताब ‘ कुंभ: ऐतिहासिक वांग्मय ’ का हवाला देते हुए लिखा- “इतिहासकार हेरंब चतुर्वेदी अपनी किताब ‘ कुंभ: ऐतिहासिक वांग्मय’ में लिखते हैं- ‘शाहजहाँ ने बड़े बेटे दारा शिकोह को प्रयाग का सूबेदार बनाया था। वे कुंभ के दौरान यहाँ आते थे। संगम पर साधु-संतों की संगत में रहते थे। उन्होंने उपनिषदों का अध्ययन किया। संतों के बीच शास्त्रार्थ परंपरा शुरू की। हालाँकि उनके छोटे भाई औरंगजेब ने गद्दी हथिया ली। इससे साधु-संतों को काफ़ी तकलीफ़ पहुंची। औरंगजेब भी कुंभ में शामिल हुआ था। यहाँ के मंदिरों को ग्रांट भी दिया। उसने तो बनारस के कोतवाल को फ़रमान भी ज़ारी किया था कि जो हिंदू स्नान के लिए आ रहे हैं, उन्हें तंग मत करो। मुझे शिक़ायत मिली है कि तुम उन्हें परेशान कर रहे हो। हालाँकि बाद में उसने कर लेना शुरू कर दिया। 1665 में फ्रांसिसी यात्री जीन बैप्टिस्ट इलाहाबाद आया था। उसने लिखा है कि गंगा-यमुना के संगम पर बने किले में जाने के लिए टैक्स देना पड़ता था।”
अपने दूसरे फेसबुक फोस्ट में मनीष कुमार ने लिखा – “राजकीय अभिलेखागार के दस्तावेज़ों के मुताबिक़ औरंगजेब गंगाजल को स्वर्ग का जल मानते थे। एक बार वे बीमार पड़े तो उन्होंने पीने के लिए गंगाजल मँगवाया। फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है- ‘औरंगजेब कहीं भी जाता था तो अपने साथ गंगाजल रखता था। वह सुबह के नाश्ते में भी गंगाजल का इस्तेमाल करता था।”
प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी कहते हैं कि उन्हें केस दर्ज़ करना है तो मेरे खिलाफ़ दर्ज़ करें। बात करनी है तो मुझसे बात करें, मेरे छात्रों को न डरायें, धमकायें। वो आये हमारे पास और हमसे हमारी किताब और इतिहासकार बर्नियर की किताबें ले जाकर पढ़ें कि इतिहास क्या कहता है। प्रोफ़ेसर चतुर्वेदी बताते हैं कि गंगाजल पीने का सिलसिला मुहम्मद तुगलक़ से शुरु हुआ बहादुर शाह ज़फ़र तक चलता रहा। इब्ने बतूता ने अपनी किताब में लिखा है कि मुहम्मद बिन तुग़लक के लिए नियमित रूप से गंगाजल ताँबे के बड़े बड़े बर्तनों में भरकर दौलताबाद पहुँचाया जाता था। अबुल फ़जल की किताब आइने अक़बरी में ज़िक्र है कि अक़बर को गंगाजल से प्रेम था और वो सैनिकों से अपने लिए गंगाजल मँगवाया करता था। जब अक़बर आगरा और फ़तेहपुर सीकरी में होते तो सोरों से और पंजाब में होते तो हरिद्वार से गंगाजल लाया जाता था। वो बताते हैं कि दाराशिहोह ने हिंदू विद्वानों के लिए एक 9 दिवसीय कार्यक्रम आयोजित करवाया था।
औरंगजेब के सवाल पर प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी कहते हैं कि इतिहासकार बिशम्भर नाथ पांडेय कि किताबें उठाकर देखिए उसमें ज़िक्र है कि औरंगजेब ने अरैल में संगम के तट पर प्राचीन सोमेश्वर महादेव मंदिर के लिए भारी धन और ज़मीन का अनुदान दिया था। उसने उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, चित्रकूट के बालाजी मंदिर, गुवाहाटी के उमानंद मंदिर को ज़मीन और धन का अनुदान दिया था।
दरअसल इतिहासकार बिश्वभंर नाथ पांडेय ने अपनी किताब- ‘ भारतीय संस्कृति, मुग़ल विरासत: औरंगजेब के फ़रमान ’ में हर चीज़ बहुत विस्तर से लिखा है। 27 जुलाई 1977 को राज्यसभा में बिशम्भर नाथ पांडेय ने बताया था कि इलाहाबाद नगर पालिका का अध्यक्ष रहते उनके कार्यकाल के दौरान अरैल मंदिर की ज़मीन को लेकर एक विवाद हुआ था। जिसे निपटाने के लिए न्यायमूर्ति टी बी सप्रू की अध्यक्षता में एक समिति बनी थी। इस समिति ने उन सभी मंदिरों से दस्तावेज़ माँगे थे जिन्हें औरगंजेब से अऩुदान के रूप में ज़मीन और धन मिला था। जिसके जवाब में अरैल के सोमेश्वर महादेव मंदिर, उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, चित्रकूट के बालाजी मंदिर, गुवाहाटी के उमानंद मंदिर, सारंगपुर के जैन मंदिर, और दक्षिण भारत कुछ मंदिरों समेत कई मंदिरों ने न्यायमूर्ति सप्रू की अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष ऐसे सबूत पेश किए थे।
औरंगजेब के नाम और तस्वीर पर केस
शोध छात्र मनीष कुमार ने अपनी अपनी तीसरी फेसबुक पोस्ट में कुम्भ मेले में गंदगी और मेला क्षेत्र कल्पवासियों बिजली का वीडियो साझा करते हुए योगी सरकार के विज्ञापनों की आलोचना की थी। हालाँकि उनसे ज़्यादा सवाल जवाब पहले दो पोस्ट को लेकर ही किया गया, जिसमें औरंगजेब,कुम्भ और गंगाजल का जिक्र था। दरअसल मुग़ल शासक औरंगज़ेब को जब भी कोई कट्टर आक्रांता और मंदिर तोड़ने वाली छवि से अलग करके उसे उदार और साम्प्रदायिक सद्भाव क़ायम करने वाले शासक के तौर पर कोई पेश करने की कोशिश करता है तो सत्ता और उसकी गुप्तचर एजेंसियों के कान खड़े हो जाते हैं। कुम्भ से औरंगजेब का संरक्षक वाला संबंध स्थापित करना मौजूदा सत्ता की पोलिटिक्स के ख़िलाफ़ जाता है। इनकी सांप्रदायिक राजनीति को यह सूट नहीं करता है। वो चाहते हैं कि औरंगजेब की छवि हिंदू विरोधी आक्रांता की बनी रहे। जिसका उपयोग वो अपनी राजनीतिक हित में करते रहें। गौरतलब है कि 28 जून 2023 को सेंट्रल दिल्ली स्थित औरंगजेब लेन का नाम बदलकर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम लेन कर दिया गया। इससे पहले अगस्त 2015 में एनडीएमसी द्वारा औरंगजेब रोड का नाम बदलकर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम रोड कर दिया गया था।
इससे पहले 10 जून 2023 को महाराष्ट्र के नबी मुंबई के वाशी इलाक़े में रहने वाले अली मोहम्मद हुसैन नामक व्यक्ति द्वारा अपने वॉट्सअप डीपी पर मुग़ल बादशाह औरंगजेब की तस्वीर लगाने पर उसके ख़िलाफ़ 298 और 153ए के तहत केस दर्ज़ किया गया था।
5 जून 2023 को महाराष्ट्र के फकीरवाड़ा इलाक़े में जुलूस के दौरान औरंगजेब की तस्वीर लहारने पर चार लोगों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 505, 298, 34 के तहत केस दर्ज़ किया गया था।
8 अगस्त 2021 को चित्रकूट, रामघाट में मंदाकिनी तट पर स्थित प्राचीन यज्ञवेदी मंदिर के महंत सत्य प्रकाश दास, सहयोगी चरण दास और पुजारियों समेत कुल 3 लोगों के ख़िलाफ़ हिंदू युवा वाहिनी द्वारा कर्वी कोतवाली में धारा 151 के तहत केस दर्ज़ किया गया था। मंदिर में एक बैनर लगाया गया था जिसमें महंत, पुजारी के अलावा मुग़ल शासक औरंगजेब की तस्वीर भी थी। तब महंत सत्य प्रकाश ने बताया था कि मंदिर में औरंगजेब का ताम्रपत्र है। जिसमें जिक्र है कि इस मंदिर को औरंगजेब ने बनवाया था।
इससे पहले लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ भी औरंगजेब के मामले में एक एफआईआर् दर्ज़ किया गया था। क्योंकि 10 मई 2022 को उन्होंने एक न्यूज चैनल की डिबेट में पट्टाभि सीतारमैया की किताब फ़ेदर्स एंड स्टोन्स का हवाला देते हुए कहा था कि औरंगजेब ने वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर इसलिए ध्वस्त कर दिया क्योंकि वहाँ पर व्यभिचार हुआ था।