दरभंगा। आज मशहूर इंक़लाबी कवि ओमप्रकाश वाल्मीकि की जयंती के अवसर पर प्राक परीक्षा प्रशिक्षण केंद्र, दरभंगा पर जनसंस्कृति मंच दरभंगा के तत्वावधान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत जनसंस्कृतिकर्मी एवं जनगायक राजू रंजन द्वारा ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविताओं के पाठ द्वारा हुई।
संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए जसम की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि सदियों से शोषित-पीड़ित एवं प्रताड़ित आम अवाम की आत्मपीड़ा, प्रतिरोध एवं सर्वहारा की वास्तविक मुक्ति के बड़े इंक़लाबी दलित साहित्यकार हैं। मौजूदा बर्बर फासीवादी दौर में ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद से लड़ने के लिए ओमप्रकाश वाल्मीकि का साहित्य हमारे लिए महत्वपूर्ण हथियार है। पूंजीवाद एवं फासीवादी बर्बता को ध्वस्त करने के लिए, ब्राह्मणवाद को ध्वस्त करना महत्वपूर्ण है जिस लड़ाई का आगाज़ ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य में मिलता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जसम दरभंगा के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. अवधेश सिंह ने कहा कि आजतक साहित्य और समाज में दलितों एवं शोषितों, पीड़ितों की उपेक्षा के साथ ही उस वर्गों के रचनाकारों की भी उपेक्षा होती रही है। आज वक़्त का तकाजा है कि हमारे युवा साथी ओमप्रकाश वाल्मिकि के सपनों का समाज बनाने के लिए तमाम परंपरागत रूढ़िवादी मान्यताओं को ध्वस्त करते हुए ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य से समाज में अलख जगाने का काम करें।
ओमप्रकाश वाल्मीकि का स्मरण करते हुए जसम जिलाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि सिर्फ बड़े दलित साहित्यकार ही नहीं थे बल्कि दलित साहित्य के बड़े सौन्दर्यशास्त्री भी थे। उन्होंने साहित्य के परंपरागत सौंदर्यशास्त्र के बरअक्स दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र प्रतिपादित किया।
जसम के जिलाउपाध्यक्ष कल्याण भारती ने ओमप्रकाश वाल्मीकि की विश्वप्रसिद्ध आत्मकथा ‛जूठन’ की विस्तार से चर्चा करते हुए जनकवि नागार्जुन की दलितों से एकाकार होने वाली जीवनशैली के मर्म को जूठन के नजरिये से प्रस्तुत किया।
ओमप्रकाश वाल्मीकि की जयंती के साथ ही हूल दिवस का स्मरण किया गया और उसे भारत की जनक्रांति के रूप में चिन्हित किया गया।
कार्यक्रम का संचालन जसम के जिलासचिव समीर ने किया। कार्यक्रम में भाकपा माले के जिलासचिव बैद्यनाथ यादव, आइसा के जिलासचिव मयंक कुमार, रूपक कुमार, टुनटुन कुमार, मुकेश कुमार, शशि शंकर, भोला जी, डॉ. आर.एन. कुशवाहा, एस.एस.ठाकुर सहित अनेक संस्कृतिकर्मी व छात्र उपस्थित रहे।