समकालीन जनमत
जनमत

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी नहीं, यह स्टैच्यू ऑफ डिस्प्लेसमेंट है

शशांक मुकुट शेखर

सरकार हजारों आदिवासियों की मृत्यु का जश्न मनाने की तैयारियों में तल्लीन है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण करने वाले हैं. प्रतिमा के भव्य अनावरण के लिए जोरशोर से तैयारियां चल रही है. हेलिकॉप्टर से फूलों की बारिश की जानी है. और भी तमाम तरह के तामझाम होने वाले हैं. देशभर से कलाकारों को बुलाया जा रहा है. सरकार अनावरण समारोह को एक जश्न की तरह मनाने के सारे जुगत करने में लगी है.

मगर इसी दिन इस प्रोजेक्ट की वजह से गंभीर रूप से प्रभावित करीब 72 गांवों के 75,000 आदिवासियों के घर चूल्हा नहीं जलेगा. आदिवासी समुदाय की परंपरा के अनुसार उस दिन भोजन नहीं पकाया जाता है जब वे किसी मृतक के लिए शोक मना रहे होते हैं. आदिवासी समुदाय के लिए यह दिन एक बड़े शोक का होगा. किसी के घर खाना नहीं पकेगा.

केंद्र की मोदी सरकार और गुजरात सरकार ने दुनिया की सबसे ऊंची सरदार पटेल की प्रतिमा के नाम पर हजारों आदिवासियों से उनकी जमीन छीन ली है. आदिवासियों की जमीन सरदार सरोवर नर्मदा परियोजना के साथ मूर्ति और अन्य सभी पर्यटन गतिविधियों के लिए ले ली गई है. आदिवासियों की उपजाऊ जमीन ले ली और बदले में जो जमीन दी है वो बंजर और अनुउपजाऊ है. साथ ही दर्जनों गांवों में तथाकथित रूप से पुनर्वास नहीं हुआ है. जमीन और नौकरी जैसे वादों को अभी तक पूरा नहीं किया गया है. और इन आदिवासियों द्वारा आपके हक़ की आवाज उठाने पर वहां की पुलिस द्वारा धमकियाँ दी जा रही है.

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी प्रोजेक्ट की वजह से गंभीर रूप से प्रभावित करीब 75,000 आदिवासी प्रधानमंत्री का और नर्मदा जिले के केवड़िया में प्रतिमा के अनावरण का विरोध करेंगे. उनके इस विरोध में गुजरात के कई आदिवासी समर्थन देने की घोषणा की है.

आदिवासियों का कहना है कि यहाँ के जल, जंगल और जमीन ने कई पीढ़ियों से इनका साथ दिया है. इन्हीं के बदौलत ये जिंदा हैं. मगर सरकार ने एक झटके में इनसे सबकुछ छीन लिया और इनकी बर्बादी का जश्न मनाने की तैयारियों जोर-शोर से चल रही है. उनका कहना है कि दरअसल सरकार हजारों आदिवासियों की मृत्यु का जश्न मनाने की तैयारियों में तल्लीन है. वहां के स्थानीय निवासी कहते हैं कि अगर सरदार पटेल नेचुरल रिसोर्सेस पर ऐसा भयानक हमला और आदिवासियों के जीवन पर ऐसा खतरा देखते तो निश्चित ही रो रहे होते.

आज स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के नाम पर स्टैच्यू ऑफ डिस्प्लेसमेंट के अनावरण की तैयारियां की जा रही है. आरएसएस और बीजेपी द्वारा देश में एकता और अखंडता के प्रतीक के तौर पर जाने जाने वाले सरदार पटेल की प्रतिमा की आड़ में आदिवासियों को अपनी जमीन और अधिकारों से वंचित करने का दमनकारी खेल खेला जा रहा है.यूनिटी के नाम पर डिस्प्लेसमेंट की राजनीति को बढ़ावा दिया जा रहा है. गरीब- आदिवासियों को उनकी जमीन से हटाया जा रहा है. उनके जीवन पर संकट पैदा किया जा रहा है.

यहाँ एक सवाल है कि क्या सरदार पटेल गरीब-मजदूरों का घर उजाड़कर अपनी प्रतिमा लगाने के पक्षधर होते ?

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion